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    अदालत के गलती के कारण काटने पड़े चक्कर कोर्ट 41 साल तक



    उत्तरप्रदेश /समाचार 


    मिर्जापुर  की एक 80 साल की महिला को अदालत की एक छोटी सी गलती के कारण 43 साल तक कोर्ट के चक्कर काटने को मजबूर होना पड़ा। साल 1975 के एक मामले में 41 वर्ष पूर्व पक्ष में फैसला होने के बाद भी एक त्रुटि के कारण महिला को चार दशक तक अदालत के चक्कर काटने पड़े। 41 साल की मशक्कत के बाद शुक्रवार को मिर्जापुर  की सीनियर डिविजन जज लवली जायसवाल के सामने जब यह मामला जानकारी के मुताबिक मिर्जापुर  के शहर कोतवाली क्षेत्र निवासी गंगा देवी को कुर्की के एक मामले में अदालत ने बतौर कोर्ट फीस 312 रुपये जमा करने का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश पर 41 वर्ष पूर्व ही वादिनी ने अगली तारीख पर कोर्ट फीस भी चुका दिया, पर अदालती कार्यवाही में इसका जिक्र ना होने से वह अदालत का हर तारीख पर चक्कर लगाती रही। कोर्ट की चूक से 41 साल तक चलते रहे इस केस के दौरान 11 जजों के सामने से फाइल गुजरी लेकिन किसी ने अदालत की गलती पर ध्यान नहीं दिया। गंगा देवी के परिवार के मुताबिक उनके मकान को वर्ष-1975 में किसी कारणवश डीएम के निर्देश पर सदर तहसील के तहसीलदार ने कुर्क कर दिया था। 

    1977 में ही जमा कर दी गई थी फीस 
    प्रशासन के इस आदेश के खिलाफ गंगा देवी ने सिविल जज (सीनियर डिविजन) की अदालत में मामला दाखिल किया था, जिसपर कोर्ट ने 1977 ने वादिनी को 312 रुपये की कोर्ट फीस जमा करने का आदेश दिया था। अदालत के आदेश के बाद ही गंगा देवी ने फीस जमा कर दी थी, जिसके बाद अदालत ने गंगा देवी के पक्ष में इस मुकदमे का निस्तारण भी कर दिया। अदालत के इस फैसले के विरोध में राज्य सरकार ने सत्र न्यायालय में अपील दायर की थी। यहां सुनवाई के बाद सत्र न्यायधीश ने सरकार की याचिका खारिज कर दी थी। 

    11 जजों ने नहीं दिया गलती पर ध्यान 
    इसके बावजूद लिपिकीय और अदालती त्रुटि के कारण कोर्ट फीस की कमी का मामला बीते 41 वर्षों से अदालत में चलता रहा। मुकदमे की पैरवी करते-करते गंगा देवी भी वृद्ध हो गयी, लेकिन अदालत की कार्यवाही खत्म नहीं हो सकी। यही नहीं 41 वर्ष की सुनवाई के दौरान बदले 11 जजों में से किसी ने भी इस कमी पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद जब शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई हुई तो सिविल जज लवली जायसवाल ने पत्रावली का अध्ययन करते हुए गलती को पकड़ा। इसके बाद तत्काल मामले का निस्तारण कर गंगा देवी को तारीखों से मुक्ति दिलाई गई। 

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