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    पेमेंट विवाद पर डेड बॉडी नहीं रोक सकते अस्पताल; मरीजों के अधिकारों पर मानवाधिकार आयोग ने मांगे सुझाव

    नई दिल्ली /समाचार 

    नई दिल्ली.  इलाज के दौरान मरीज की मौत के बाद पेमेंट विवाद को लेकर डेड बॉडी नहीं सौंपना अपराध के दायरे में आ सकता है। देश में पहली बार मानवाधिकार आयोग ने मरीजों के अधिकारों का प्रारूप तैयार किया है।
    30 दिन के अंदर आम लोग भी इस पर अपनी राय दे सकते हैं। इसके बाद इसे अंतिम रूप दिया जाएगा। चूंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, लिहाजा प्रारूप राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को भेजा जाएगा। इसे लागू करना है या नहीं, यह फैसला राज्य ही करेंगे। प्रारूप के तहत हर सरकारी, गैर सरकारी अस्पताल को मरीजों की समस्या सुनने के लिए एक आंतरिक सिस्टम बनाना होगा। शिकायत के 24 घंटे के अंदर शिकायतकर्ता को शिकायत की स्थिति के बारे में बताना होगा। 15 दिनों के अंदर शिकायत पर की गई कार्रवाई का लिखित जवाब देना होगा। यदि मरीज संतुष्ट नहीं हुआ तब मरीज के पास स्टेट काउंसिल में अपील करने का विकल्प होगा। काउंसिल को तीन या पांच सदस्यीय कमेटी बनाने का अधिकार होगा। इस कमेटी को अनुशासनात्मक और दंडात्मक कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया है। इस कमेटी से भी मरीज को संतुष्टि नहीं मिलती है, तो स्टेट मेडिकल काउंसिल और कंज्यूमर फोरम में जाने का विकल्प होगा। प्रारूप तय करने के लिए लोग अपनी राय help.ceact2010@nic.in पर सितंबर माह तक भेज सकते हैं। उपयोगी सुझावों को स्वास्थ्य मंत्रालय की मंजूरी के बाद इसे प्रारूप में शामिल किया जाएगा।

     प्रारूप में मरीजों को दिए गए ये अधिकार
    - दूसरे डॉक्टर से ओपिनियन लेने के लिए केस हिस्ट्री तुरंत देनी होगी।
    - डिस्चार्ज होने के 72 घंटे में पूरी रिपोर्ट सौंपनी होगी।
    - रिपोर्ट के लिए डॉक्टर को फोटोकॉपी समेत अन्य खर्च देना होगा।
    - अटेंडेंट जिस भाषा का जानकार होगा, उसी भाषा में समझाना होगा।
    - इलाज का खर्च ज्यादा होगा तो उसका कारण भी बताना होगा।
    - मरीज किसी भी लैब से जांच और फार्मेसी से दवा खरीद सकेगा।
    - दवा और इंप्लांट एनपीपीए के दर पर ही दी जाएगी।

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