भारत को मिलेगी नाटो जैसी रक्षा तकनीक ,जानिए क्या है 'कॉमकासा' करार
नई दिल्ली /समाचार
नई दिल्ली। आजादी के बाद से ही अपनी रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर रहे भारत के लिए आने वाले दिन भारी बदलाव के होंगे। अब से आने वाले दिनों में अभिन्न रक्षा सहयोगी मित्र अमेरिका होगा। भारत और अमेरिका ने नई रक्षा संधि (कॉमकासा) पर हस्ताक्षर कर दिए हैं जो दोनों देशों को सबसे मजबूत रक्षा सहयोगी देश के तौर पर स्थापित करेगा।
इस समझौते के बाद अमेरिका के लिए भारत का महत्व एक नाटो देश की तरह हो गया है। भारत से पहले जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ ही इस तरह का समझौता अमेरिका ने किया है। सनद रहे कि एक दशक पहले तक भारत-अमेरिका के बीच बेहद कम रक्षा सहयोग होता था। लेकिन अब सालाना 10 अरब डॉलर के उपकरण खरीदे जा रहे हैं। इनका आकार आने वाले दिनों में और तेजी से बढ़ सकता है। रक्षा व विदेश मंत्रियों के बीच हॉट लाइन अमेरिका के साथ गुरुवार को हुई पहली टू प्लस टू वार्ता बेहद सफल रही।
इस दौरान पहली बार दोनों देशों के रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री के बीच हॉटलाइन स्थापित करने का फैसला लिया गया। इतना ही नहीं, भारत की रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए पेंटागन (अमेरिकी रक्षा मंत्रालय) में एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति भी होगी। वार्ता में भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन और अमेरिका की ओर से विदेश मंत्री माइक पोंपियो और रक्षा मंत्री जिम मैटिस शरीक हुए।
क्या है कॉमकासा : कॉमकासा यानी कम्युनिकेशंस एंड इंर्फोमेशन ऑन सिक्यूरिटी मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट अमेरिका ने नाटो समेत कुछ अन्य देशों के साथ किया हुआ है। यह अमेरिका की तरफ से उसके सहयोगी देशों को बेहद अत्याधुनिक रक्षा तकनीक देने और आपातकालीन स्थिति में उन्हें तत्काल मदद देने की राह निकालता है।
चिढ़ सकता है चीन :यह समझौता चीन को बेहद नागवार गुजर सकता है, क्योंकि भारत व अमेरिका ने टू प्लस टू वार्ता के बाद जारी साझा बयान में इस बात के संकेत दिए हैं कि वह पूरे क्षेत्र में द्विपक्षीय व त्रिपक्षीय सहयोग के साथ चार देशों के सहयोग को लेकर भी तैयार है। सनद रहे कि भारत, अमेरिका, जापान व आस्ट्रेलिया के बीच पिछले एक वर्ष में दो बार विमर्श हुआ जिसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक नए समीकरण के तौर पर देखा जा रहा है।
मेक इन इंडिया को बढ़ावा :कॉमकासा करार को हिंदी में संचार, सक्षमता, सुरक्षा समझौता कहा गया है। यह पूरी तरह से भारत की सैन्य जरूरत को ध्यान में रखते हुए किया गया है। अभी इसकी अवधि 10 साल के लिए होगी। यह रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया कार्यक्रम को भी बढ़ावा देगा, क्योंकि अब अमेरिकी निजी कंपनियों को रक्षा क्षेत्र की उच्च तकनीकी वाले हथियारों या उपकरणों का यहां निर्माण करने की इजाजत होगी

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