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    सीतामढ़ी :दंगे में कौन जीता राम जीता या रहीम जीता


    बिहार/सीतामढ़ी /समाचार 
    कैमरामैन पवन साह के साथ रिपोर्टर संजू गुप्ता 
    संपादक:दीपक कुमार 


    सीतामढ़ी:असामाजिक तत्वों के मंसूबों पर पानी तो फिर ही गया और अब आम जिन्दगी पटरी पर लौट रही है|शहर में बाजार और दुकाने खुलने लगा है| पर सोचने वाली बात है की इस दंगे में  कौन जीता राम जीता या रहीम जीता इस दंगे से किसका भला हुआ|

    हमारे ख्याल से किसी का नहीं कोई धर्म या मजहब हमें आपस में बैर करने के लिए नहीं सिखाता है | चाहे वो गीता और रामायण के मनाने वाले हो या बाइबल कुरान के मानने वाले किसी भी घर्म ग्रंथ में यह नहीं लिखा है हम एक दुसरे के धर्म के प्रति अपने मन में भेदभाव और घृणा रखे |जिससे हमारा समाजिक सद्भाव का ताना बाना तार-तार ना हो जाये |और हमारे आने वाली पीढ़ी को इसका कीमत न चुकाना पड़े | 

    संत कबीर का एक दोहा याद आ गया  ”हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना, आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।” इसका अर्थ ये है : हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और मुस्लिम को रहमान प्यारा है. इसी बात पर दोनों आपस में लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया की हम लड़े क्यों। 

    सीतामढ़ी में होने वाले दंगे में इन पंक्तियों की सच्चाई शहर में दिख रही थी। की लोग असामाजिक तत्वों द्वारा फैलाई गई नफरत की आग दोनों समुदाय के लोग जले पर शायद दोनों समुदाय के लोगो समझ नही आया होगा की हम आपस में लड़े क्यों ? 

    अब नफरत की आग बुझ गई । पर जिन असमाजिक तत्त्वों ने शहर को नफरत के आग के हवाले  माँ सीतामढ़ी के पावन धरती को झोककर सामजिक सद्भाव बिगाड़ने की जो कोशिश की अब वो लोग शहर से फरार है पुलिस की छापेमारी चल रही|

    पर इसका असर आमलोगों की जिन्दगी पर पड़ी और इसकी कीमत आम लोगों को चुकानी पड़ रही 
    है|अब कानून व्यव्य्स्था ने ठान ली है की कसूर वार चाहे कोई भी हो कही भी हो किसी को बक्शा नहीं जयेगा मतलब कानून का डंडा अब कसूरवार लोगो पर चल पड़ा है |कसूरवार भागे-भागे फिर रहे हैं। गांव और मोहल्ले सुनसान दिख रहा हैं। 

    लोगो में पछतावा के आंसू 

    अब लोगो में हर तरफ पश्चाताप के आंसू  लिए हुए । अपनी गलतियों काअहसास होने लगा है। इस घटना से गांव-समाज के लोग शर्मिंदगी महसूस कर रहे है की जो हुआ वो अच्छा नहीं हुआ।कल की शांति समिति बैठक में डिएम रंजित कुमार सिंह एक बहुत अच्छी बात कही की आग में कुत्ते नहीं जलते मतलब जो दंगा भड़काते है वो नहीं मरते मरते है मासूम लोग जिनकी कोई गलती नहीं होता|इस घटना से लोगो को सबक लेना चाहिए और  इस घटना में सबसे अधिक पिसने वाले मजदूर तबके के लोगों के घरो को चुल्हे की आंच धीमी पड़ने लगी है जो बेचारे रोज कुआ खोदते और रोज पानी पिटे है। लोगो  को आने वाले कल की चिंता सता रही थी ना जाने क्या होगा। अब लोग अपनी गलतियों को सुधारनेके लिए आपसी गिले-शिकवे दूर कर समाज में शांति व्यवस्था बनाने की कोशिश कर रहे हैं।


    सीतामढ़ी शहर तीन दिनों तक अशांत

    असामाजिक तत्वों की करतूतों के वजह से सीतामढ़ी शहर तीन दिनों तक अशांत,असहाय,मजबूर  दिखा। पुलिस-प्रशासन को भी बहुत परेशान होना पड़ा| पुलिस-प्रशासन के बार-बार शांति के  अपील करने के बावजूद दहशतगर्द अपना दरिंदगी दिखाते रहे प्रशासन की एक भी नहीं मान रहे थे।
    कुछअसामाजिक तत्वों के लोगो ने अफवाह भी फैलाईजिसके कारण माहोल बिगड़ता चला गया। लेकिन आखिर में जब प्रशासन ने सख्ती दिखाई तो असामाजिक तत्वों को मनसूबे फ़ैल हो गये । नहीं तो मंजर और भी भयानक हो सकता था|पुलिस प्रशासन और सीतामढ़ी के युवा डिएम की जितनी तारीफ की जाय उतनी कम् है |क्योकि उन लोगो ने बहुत ही धर्य और सयंम का परिचय दिया 

    लोगो को कानून समझ में आ रहा है 

    अब पुलिस उन लोगो को सबक सिखाने की ठान ली है |जिन्होंने पत्थरबाजी की झूठे अफवाह फैलाये  नफरत की आग भडकाने की कोशिश की उसके के खिलाफ पुलिस ने कमर कस ली है |अब लोगों को कानून का मतलब समझ में आ रहा है। सभी असमाजिक तत्व  जिला छोड़ कर फरार और अंडर ग्राउंड चल रहे हैं |और असामाजिक तत्व अपने पीछे अपना घर-बार तथा परिजन को छोड़ दर दर की खाक छान रहे हैं। घटना के बाद मुरलियाचक, मधुबन, गौशाला, जानकी स्थान और नोनिया टोली  के अधिकांश पुरुष घर छोड़ कर फरार हैं। घर में केवल महिलाएं, वृद्ध और बच्चे रह गए हैं। 


    आखिर में मै आपको हरिवंश राय के कविता के साथ छोड़े जा रहा हु 

    की इंसानियत के दरबार में सबका भला होता, तू भी इंसान होता, मैं भी इंसान होता। काश कोई धर्म ना होता। कोई मस्जिद ना होती, कोई मंदिर ना होता। 
    आखिर में एक बार ये पक्तियां जोड़ रहा हु मै भी ईन्सान हुँ तम भी ईन्सान हो ,तु पढ़ता है “वेद” हम पढ़ते “क़ुरान” है।
     और आप खुद ही सोचिये की इस दंगे में कौन जीता राम जीता या रहीम जीता ?


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