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    तृष्णा में जीता है मुनष्य, जानिए क्या करें?


    एक व्यापारी था, वह ट्रक में चावल के बोरे लिए जा रहा था। खराब सड़क पर ट्रक गड्ढों में निकला तो चावलों का एक बोरा खिसक कर वहीं गिर गया। वहां कुछ चीटियां आई और चावल का बोरा पड़े देखा तो खुशी से फूला नहीं समाईं।
    सभी चीटियों ने चावल के 10-20 दाने लिए और चली गईं। उसके बाद कुछ चूहे उधर पहुंचे तो चावल के बोरे को देखकर वहीं पहुंच गए। चूहों ने भी 100-50 ग्राम चावल खाए और वहां से चलते बने। कुछ पक्षियों की नजर बोरे पर पड़ी वे भी उधर हो लिए। पक्षी भी कुछ ग्राम चावल खाकर अपनी मंजिल की ओर रवाना हो गए।
    बाद में उस क्षेत्र में गाय पहुंची तो वे भी करीब 2-3 किलो चावल खाकर चली गईं। इसके बाद वहां से एक व्यक्ति गुजरा, उसने चावलों से भरा बोरा देखा तो मन ही मन बहुत खुश हुआ और बोरा उठाकर अपने घर की चला गया।
    शिक्षा: इससे साफ है कि अन्य प्राणी पेट के लिए जीते हैं लेकिन मनुष्य तृष्णा में जीता है। इसीलिए इसके पास सब कुछ होते हुए भी यह सर्वाधिक दुखी है। आवश्यकता के बाद इच्छा को रोकें अन्यथा यह अनियंत्रित बढ़ती ही जाएगी और दुख का कारण बनेगी।

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