बाबा गणिनाथ की सम्पूर्ण जीवन परिचय ,जानिए बाबा के जन्म से लेकर समाधि तक की कहानी
We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र / दीपक कुमार
नई दिल्ली :- शिवजी के मानस पुत्र परमपूज्य बाबा गणिनाथ जी इस भूलोक में धर्म कि रक्षा, मानवता का संदेश और आपस में बढ़ रही बैर और दुश्मनी को दूर करने के लिए इस धरती पर उनका आगमन हुआ . भगवान शिव के परम भक्त श्री मंशाराम महनार निवासी जो आज के वर्तमान में बिहार के वैशाली में स्थित गंगा के किनारे अपनी एक कुटिया में अपनी पत्नी के साथ रहते थे. मंशाराम बड़े ही सात्विक और धार्मिक विचारों के थे.वे अपने गृहस्थी के साथ- साथ शिवजी की सदैव उपसना करते थे. उनका कोई संतान नहीं था . मंशाराम की भक्ति से भोले बाबा खुश होकर एक रात उनके सपने आये और कहा कि जल्द ही आपको आपकी भक्ति और विश्वास का फल मिलेगा .
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बाबा गणिनाथ पीपल के पेड़ के नीचे मंशाराम जी को मिले
मंशाराम रोज की तरह लकड़ी लेने के लिए वन में गए. तो मंशाराम देखते है कि एक बालक पीपल के पेड़ के नीचे किलकारी कर रहा है, उसके चेहरे से अद्भुत अलौकिक दिव्य प्रकाश निकाल रहा है, बालक मंद- मंद मुस्करा रहा है, पीपल के पेड़ से मधु की बूंदे निकल कर बालक के मुँख में जा रही थी और वह बालक उस मधु का मधुपान कर रहे थे .मंशाराम जब इस नजारा को देखा तो अपनी सुध बुद्ध खो बैठे.तभी आकाशवाणी हुई कि मंशाराम ये है तुम्हारी भक्ति का फल, इस बालक को अपने अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर घर ले जाओ और और इसका लालन पालन करो”. मंशाराम उस बालक को अपने कुटिया में ले आया और पत्नी से बोले यह बालक अपना पुत्र है भोले बाबा ने तुम्हारी गोद भर दी. पुत्र पाने की खुशी में मंशाराम अपने स्वजनों को भोज में तसमई खिलाना चाहते थे .लेकिन निर्धन होने के कारण वो अपने इच्छा को पूरी नही कर पा रहे थे .
बाबा गणिनाथ ने कुम्हार को क्षमा किया
मंशाराम के पुत्र अपनी पिता की इस इच्छा पूरी करने के लिए सभी स्वजनों को निमंत्रण भेजा. मंशाराम ने भोज की तैयारी करने लगे. भोज को तैयार करने वास्ते पर्याप्त बर्तन भी मंशाराम के पास नहीं थे, और बर्तन के लिए वे कुम्हार के पास गए और बर्तन माँगा, कुम्हार मंशाराम की आर्थिक स्थिति जनता था . कुम्हार बर्तन देने से मना कर दिया.मंशाराम उदास हो गए, पिता की उदासी को देख कर बालक ने अपनी लीला दिखाई. कुम्हार जब अपने बर्तन को पकाने के लिए आवा लगाया तो वो आवा जला नहीं , लाख कोशिश के बावजूद आवा नही जला . कुम्हार थक हार कर अपने इष्ट को याद किया तब कुम्हार के इष्टदेव ने उसके द्वारा की गयी गलती को स्मरण कराया अपनी गलती को जानकर, कुम्हार भाग कर बाल स्वरूप बाबा गनिनाथ के चरणों में लेट कर क्षमा मांगने लगा बाबा ने कुम्हार को क्षमा किया . कुम्हार का आवा जल गया और बर्तन को मंशाराम को दिया.
बाबा गणिनाथ ने ग्वाला का आँख ठीक किया
बर्तन की व्यवस्था हो जाने के बाद मंशाराम दूध के लिए एक आँख खराब वाले ग्वाले के पास गए, ग्वाला भी बहाना बनाकर दूध देने से मना कर दिया जो गाय दूध नहीं देता था उसके तरफ इशारा कर कहा इसे दुह लो . फिर बाबा ने अपनी लीला दिखाई दूध नहीं देने वाली गाय ने इतना दूध दिया कि ग्वाला आश्चर्यचकित हो गया, और वह समझ गया कि यह बालक कोई साधारण बालक नहीं है, तुरंत बालक के चरणों में लेट गया,और क्षमायाचना की बालक ने क्षमा कर दिया और ग्वाला का आँख भी ठीक कर दिया .
बाबा का नाम गणिनाथ रखा गया
तय समय पर भोज में तसमई पकाई गयी और तसमई सभी लोगो को खिलाया गया तसमई की खुशबु से आस पास के गाँव के लोग भी आने लगे, पर तसमई खत्म नहीं हुआ . बालक की इस लीला को देख कर सभी लोग भोले बाबा की जयकरा लगाया और बालक का नाम गणिनाथ रखा गया . तब बालक गणिनाथ ने अपने पिता मंशाराम से तपस्या करने के अनुमति मांगी, अनुमति मिलने पर बालक गणिनाथ तपस्या के लिए हिमालय पर्वत पर गए और पूरे अठ्ठारह वर्षों तक तपस्या की.तपस्या और योग से गणिनाथ जी ने आठ सिद्धि और नौ निधि को प्राप्त किया. गणिनाथ जी तपस्या पूरी करने के बाद वापस अपने गांव आये और एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया.
यज्ञ के दौरान बाबा ने लोगो चार संदेश दिया जो इस प्रकार है -
1. वेदों का अध्यन करे.
2. सच्चाई और धर्म का पालन करे.
3. काम, क्रोध, लोभ, अभिमान और आलस्य का त्याग करे.
4. नारी का सम्मान और उसकी रक्षा करे.
बाबा गणिनाथ राजा बने
बाबा के इस उपदेश से लोगो का जीवन सरल और सुगम हो गया. बाबा गणिनाथ के उपदेश और जीवन संदेश से लोग बहुत प्रभावित हुए बाबा की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी ,पाटलिपुत्र के पालवंशी राजा के एकमात्र पुत्र धीरज कुमार की सर्प काटने से मृत्यु हो गयी. राजा धर्मपाल और उनकी रानी विलाप करते हुए बाबा के पास पहुंचे .बाबा गणिनाथ अपने शक्ति से राजा के बेटा को जीवित कर दिया .इस घटना से राजा धर्मपाल बहुत प्रभावित हुए और पलवैया के आस पास की सभी जमींन बाबा के चरणों में समर्पित कर दिया. और बाबा गणिनाथ को बिक्रम संवत 1060 विजय दशमी को पलवैया का राजा घोषित कर दिया.
माता क्षेमा,( खेमा ) से बाबा गणिनाथ का विवाह
आगे चलकर बाबा गणिनाथ का विवाह चंदेल राजा धंग की पुत्री क्षेमा ( खेमा ) से हुआ.बाबा गणिनाथ के जैसे ही माता क्षेमा भी धर्म का पालन करती थी. बाबा जी और माता क्षेमा जी के जीवन बहुत ही खुशहाली में व्यतीत हो रहा था . बाबा गणिनाथ के परिवार में पांच संतान का आगमन हुआ जिनका नाम इस प्रकार है पहला पुत्र रायचंद्र दूसरा पुत्र श्रीधर तीसरा पुत्र गोबिंद जी चौथा पुत्री सोनमती और पांचवी पुत्री शीलमती है. बाबा गणिनाथ बताये रास्ते पर चलकर पांचो भाई-बहन वेद, शस्त्र के ज्ञाता बन गए. आपके जानकारी के लिए बता दू की बाबा गणिनाथ जी का राज्य चौदह कोस में फैला हुआ था.
कदली वन में डाकुओं का आंतक
एक बार की बात है .राज्य के कदली वन में डाकुओं ने बसेरा बना ली और वन से आने जाने वाले को लूट कर मार देते थे. इन डाकूओं का आंतक मिटने के लिए रायचन्द्र और श्री धर ने अपने सेना के साथ गए और डाकूओं का खात्मा कर दिया .
नैना मैना के काले जादू का आंतक
भारत में 10 वीं सदी में काला जादू तथा तंत्र-मंत्र का अत्यधिक बोलबाला था ,कहा जाता है कि वर्तमान असम के कामरूप कामाख्या में उस समय दो दुष्ट योगिनी बहने नैना मैना और हिरिया जिरिया ने काले जादू के माया के बल पर मनुष्यों, बड़े-बड़े साधकों एवं यहां तक कि देवी देवताओं को भी अपने मंत्र के बल पर परेशान कर रखा था ,वह किसी को तोता मैना भेड़ बकरा बकरा बनाने का भय दिखाकर अपने स्वार्थ की सिद्धि किया करती थी। काले जादू के बल पर ऐसे देवी-देवताओं से भी अधिक वे दोनों बहने ताकतवर हो गई थी . तथा उनको अपने बस में कर रखा था।
गोविंद जी ने हिरिया जिरिया के काले जादू से निजात दिलाया
गणिनाथ के राज्य में इस तरह के जादू टोना करने वालों से लोग बहुत परेशान थे. राज्य के लोगों को जादू टोना करने वालों से मुक्ति दिलाने के लिए बाबा गणिनाथ जी ने गोविंद महाराज को भेजा .गोविन्द महाराज के एक हाथ में आग का खपर दिखाया गया है तो दूसरे हाथ में वेत की छड़ी है आग की खपर बाबा गोविंद जी ने अपने योग तपोबल से सभी मायावी शक्तियों का नाश किया। कहा जाता है कि बाबा गोविंद जी के पास भी मायावी शक्तियां थी जिससे वे विभिन्न पशु पक्षियों का रूप धारण कर उन दुष्ट मायावी शक्तियों से संघर्ष किए और उन्हें पराजित किए नैना मैना और हिरिया जिरिया का अत्याचार का अंत हुआ ।गोविंद जी नैना मैना को बंदी बनाकर बाबा गणिनाथ के पास ले आए बाबा गणिनाथ ने उन दोनों के सारे गुण एक चावल के ढेर में डाल दिया और उनको मुक्त कर दिया।
यवनों का पलवैया राज्य पर आक्रमण
बाबा गणिनाथ जी वृद्ध हो चुके थे तथा साधू -सन्त स्वभाव और वेश ये दुष्ट लोग धर्मपुर राज्य पलवैया को कमजोर राज्य समझ बैठे थे।और अगल बगल के जागीरदारों में ललचाई कुदृष्टि पलवैया पड़ गयी थी । ये लोग पलवैया को पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहते थे । इसमें से मुख्यतः लाल ख़ाँ , किश्ती खाँ , बक्कर खाँ , सुल्तान खाँ आदि यवनो जगिरदारो के सेनापतियों ने पलवैया राज्य पर आक्रमण कर दिया ।
गोविन्द जी ने धर्मयुद्ध कर यवन को पराजित किया
शान्ति , प्रेम अहिंसा का सदैव पाठ पढानेवाले बाल ब्रह्मचारी श्री गोविन्द जी महाराज ने पलवैया के शांतिप्रिय नागरिको को धर्म और राष्ट्र की रक्छा के लिए शस्त्र उठाने के लिए ललकारा , उनकी ओजस्वी धर्म शिक्छा या उपदेश से जनता मरने मारने पर तैयार हो गयी । इस युद्ध को गोविन्द जी ने " धर्मयुद्ध " का नाम दिया । कुछ लोगो को गढ़ (किला) के अंदर रक्षा के लिए छोड़ दिया और शेष को श्रीधर जी , रायचंद्र जी के साथ स्वयं के नेतृत्व में यवनो से लोहा लेने के लिए युद्ध छेत्र के लिए प्रस्थान किये ।आज भी गढ़ बाहर और गढ़ भीतर की चर्चा होती है ।
बाबा गणिनाथ समाधि ली
बाबा गणिनाथ जी ने श्री रायचन्द्र और श्रीधर के नीलकंठ महाराज को छोड़कर बाबा गणिनाथ माता क्षेमा पुरे परिवार के साथ-साथ गंगा में समाधी ली. और आज उस स्थान एक देव स्थान धर्मपुर राज्य पलवैया रूप में पूजनीय स्थल है ! आज वो जगह बिहार के वैशाली में स्थित है जिसका पता प्राचीन पलवैया धाम पोस्ट हसनपुर महनार ,ज़िला-वैशाली बिहार
बाबा गणिनाथ पर जारी हुआ डाक टिकट
यूपी के गाजीपुर लंका मैदान में 23 सितम्बर 2018 को रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने संत गणिनाथ महाराज के नाम से स्मारक डाक टिकट को जारी किया .
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