महाकुंभ पर्व 2025, जानिए कुंभ महाकुंभ और नागा साधु बनने की परंपरा की कहानी जो शायद आप नहीं जानते ?
We News 24 Hindi / दीपक कुमार
नई दिल्ली :- सनातन होने पर गर्व है ,महाकुम्भ का पर्व है . नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका वी न्यूज 24 पर। आज हम आपको लेकर चलेंगे प्रयागराज, जहाँ इस समय महाकुंभ का आयोजन पूरे वैभव और श्रद्धा के साथ हो रहा है। आज हम आपको कुंभ और महाकुंभ की पौराणिक कथा, नागा साधुओं और महिला नागा साधुओं की दीक्षा प्रक्रिया, और कुंभ की शुरुआत कैसे और कब हुई, इन सभी विषयों पर विस्तार से जानकारी देंगे। तो चलिए, इस पवित्र यात्रा को शुरू करते हैं।
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यंहा देखे महाकुम्भ का वीडियो
महाकुंभ एक अत्यंत पवित्र और भव्य धार्मिक आयोजन है, जो हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है। यह कुंभ मेले का सबसे बड़ा रूप है और हर 12 कुंभ के बाद 144 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। इस बार महाकुंभ प्रयागराज में लगा है जिसकी शुरुआत 13 जनवरी 2025 से हो चुकी है, जिसका समापन 26 फरवरी 2025 को होगा. अगर आपने इस बार के महाकुम्भ चुके तो हमे इस जीवन में और हमारे आने वाले पीढ़ी को भी ये अवसर प्राप्त नहीं होगा .
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अगला महाकुंभ 2169 में प्रयागराज में अयोजित होगा.महाकुंभ का आयोजन 12 साल के लंबे अंतराल के बाद होता है, जिससे इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है,साथ ही इस बीच कुंभ, अर्धकुंभ और पूर्ण कुंभ भी हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज में होते रहेंगे. आपको बता दें कि अगला कुंभ 2027 में नासिक में लगेगा, 2028 में उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ होगा और 2030 में प्रयागराज में अर्धकुंभ का आयोजन होगा.
कुंभ मेले की परंपरा भारत की प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में से एक है, जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। इसका प्रारंभ समुद्र मंथन की घटना से जुड़ा हुआ है।
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कुंभ और महाकुंभ की पौराणिक कथा
कुंभ मेले की परंपरा का आधार समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ा है।
पुराणों के अनुसार, देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। इस मंथन के दौरान विष भी निकला जो भगवान शिव ने पान किया उसके बाद भगवान धन्वंतरि ने अमृत से भरा हुआ कलश यानि कुंभ लेकर प्रकट हुए। आपको बता दू की कलश को ही कुम्भ कहते है इस अमृत कलश को लेकर देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष छिड़ गया। अमृत की सुरक्षा के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया और अमृत कलश को सुरक्षित रखने की योजना बनाई। उन्होंने इसे इंद्रदेव के पुत्र जयंत को सौंपा।
जब जयंत अमृत कुंभ लेकर आकाश मार्ग से जा रहे थे, तब दानवों ने उनका पीछा किया। इस दौरान 12 दिनों तक देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष चलता रहा। इन 12 दिनों को पृथ्वी पर 12 वर्षों के बराबर माना जाता है। इसी संघर्ष के दौरान, अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरीं
- प्रयागराज (गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम)
- हरिद्वार (गंगा नदी)
- उज्जैन (क्षिप्रा नदी)
- नासिक (गोदावरी नदी)
इन्हीं स्थानों पर हर 12 साल में कुंभ का आयोजन किया जाता है, और जब यह आयोजन 12 कुम्भ के बाद प्रयागराज में होता है, तो इसे महाकुंभ कहा जाता है। अगला महाकुंभ 2169 में प्रयागराज में अयोजित होगा.महाकुंभ का आयोजन 12 साल के लंबे अंतराल के बाद होता है, जिससे इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है,साथ ही इस बीच कुंभ, अर्धकुंभ और पूर्ण कुंभ भी हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज में होते रहेंगे. आपको बता दें कि अगला कुंभ 2027 में नासिक में लगेगा, 2028 में उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ होगा और 2030 में प्रयागराज में अर्धकुंभ का आयोजन होगा.
नागा साधु कैसे बनते हैं?
नागा साधु बनना एक कठिन और अनुशासन से भरी प्रक्रिया है। यह उनके त्याग, तपस्या, और वैराग्य का प्रतीक है।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया:
अखाड़े में प्रवेश:
नागा साधु बनने के इच्छुक व्यक्ति को सबसे पहले किसी मान्यता प्राप्त अखाड़े (जैसे जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा) में शामिल होना पड़ता है।वैराग्य का जीवन:
व्यक्ति को अखाड़े में कई वर्षों (5-10 साल तक) तक ब्रह्मचारी और तपस्वी जीवन जीना होता है। इस दौरान उसे सांसारिक जीवन, मोह-माया, परिवार और समाज से पूरी तरह मुक्त होना पड़ता है।गुरु दीक्षा और तर्पण:
इच्छुक साधु को गुरु से दीक्षा दी जाती है। दीक्षा के दौरान उसे यह समझाया जाता है कि उसने अपना पुराना जीवन समाप्त कर दिया है।- इसके प्रतीक रूप में उसका तर्पण (श्राद्ध) किया जाता है, जो यह दर्शाता है कि वह अब नया जीवन शुरू कर रहा है।
- उसे नया नाम दिया जाता है।
नग्न जीवन:
पुरुष नागा साधु पूरी तरह नग्न रहते हैं, जो उनकी सांसारिक वस्त्रों और भौतिकता से मुक्ति का प्रतीक है।गंगा स्नान और शुद्धिकरण:
नागा साधु बनने की प्रक्रिया में इच्छुक व्यक्ति को पवित्र गंगा में स्नान कर शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए तैयार किया जाता है।
महिला नागा साधु:
- महिला नागा साधुओं की दीक्षा प्रक्रिया भी पुरुषों के समान होती है।
- लेकिन अखाड़ों की परंपरा के अनुसार, महिला नागा साधु वस्त्र पहनती हैं।
कुंभ की शुरुआत कब और कैसे हुई?
कुंभ मेले की परंपरा का महत्व:
कुंभ मेला न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है, जिसमें लाखों-करोड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
कुंभ मेले का आयोजन 12 वर्षों के अंतराल पर इन चार स्थानों में बारी-बारी से होता है।यह आयोजन ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है। जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में , तब कुंभ मेला आयोजित होता है, बृहस्पति को अपनी कक्षा में प्रवेश करने में 12 साल का समय लगता है, इसलिए कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है.
हिंदू ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां होती हैं, और जब बृहस्पति और सूर्य इन राशियों में आते हैं, तब यह मेला आयोजित होता है. स्थितियां इन स्थानों पर बनती हैं, तब वहां कुंभ का योग माना जाता है।कुंभ मेले में स्नान करने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसा विश्वास है।
महाकुंभ 2025 की तैयारी:
प्रयागराज में 2025 का महाकुंभ, भारत का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन किया गया । इसमें करोड़ों श्रद्धालुओं के साथ-साथ साधु-संत, नागा साधु, और अखाड़ों के महंत शामिल होंगे। अनुमान है की महाकुम्भ में तक़रीबन 40 करोड़ लोग पवित्र स्नान करेंगे .और अभीतक
तो दोस्तों, यह थी महाकुंभ, नागा साधु, और कुंभ मेले से जुड़ी विस्तृत जानकारी। अगर आप भी इस महापर्व में जाने की योजना बना रहे हैं, तो इस पावन नगरी की यात्रा जरूर करें।
मैं हूँ दीपक कुमार, और आप देख रहे हैं वी न्यूज 24। धर्म, आस्था, और पौराणिक कथाओं से जुड़ी ऐसी ही रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियों के लिए हमारे साथ जुड़े रहें। अगर आपको हमारी जानकारी अच्छी लगी हो, तो हमारे यूट्यूब चैनल को लाइक, सब्सक्राइब, और शेयर जरूर करें।
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😊 जय गंगा मैया! हर हर महादेव
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