"पाकिस्तानी सेना की फिर गीदड़ भभकी: सिंधु हमारी रेड लाइन, हिंदुस्तान के आगे नहीं झुकेंगे"
नई दिल्ली – भारत की कूटनीतिक दृढ़ता और क्षेत्रीय जल नीति के स्पष्ट रुख के बाद पाकिस्तान की सरकार और सेना में बेचैनी साफ देखी जा रही है। भारत द्वारा सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार की मंशा जताने और समझौते के अनुपालन को लेकर सख्त रवैया अपनाने के बाद, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनीर ने एक बार फिर भारत को "आंखें दिखाने" की कोशिश की है।
पाकिस्तानी अख़बार डॉन के मुताबिक़, पाक सेना के मीडिया विंग ISPR के हवाले से मुनीर ने कहा, "पानी पाकिस्तान की रेड लाइन है और हम 24 करोड़ पाकिस्तानियों के हक से कोई समझौता नहीं करेंगे। पाकिस्तान कभी हिंदुस्तान के आगे नहीं झुकेगा।"
यह बयान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान के भीतर ही उसकी नीति और आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था सवालों के घेरे में है – विशेषकर बलूचिस्तान में तेज़ होते विद्रोह के कारण।
🔥 बलूच विद्रोह: भारत पर प्रॉक्सी युद्ध का आरोप
जनरल मुनीर ने आरोप लगाया कि बलूच विद्रोही भारत के इशारों पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "बलूचिस्तान में एक्टिव टेररिस्ट भारत के प्रॉक्सी हैं। ये बलूच नहीं हैं और इनका नाता बलूचिस्तान से नहीं है।"
हालांकि यह बयान भारत की विदेश नीति की पारदर्शिता और उसकी 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति के बिल्कुल विपरीत प्रतीत होता है, जो क्षेत्रीय स्थायित्व और विकास पर केंद्रित है।
भारत लगातार यह रुख दोहराता रहा है कि वह किसी भी संप्रभु देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता।
🌊 सिंधु जल संधि – 1960 की ऐतिहासिक संधि अब पुनरावलोकन की राह पर?
सिंधु जल संधि, जिसे वर्ष 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित किया था, अब भारत के लिए कूटनीतिक पुनर्विचार का विषय बन गया है।
इस समझौते के तहत:
भारत को तीन पूर्वी नदियों – रवि, ब्यास, सतलुज – पर पूर्ण नियंत्रण मिला।
पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम, चिनाब – का उपयोग मिला, लेकिन भारत कुछ सीमित जल परियोजनाओं के लिए इनका सीमित उपयोग कर सकता था।
हाल के वर्षों में पाकिस्तान बार-बार भारत की नदियों पर बनने वाली परियोजनाओं पर आपत्ति जताता रहा है, जिसे भारत ने तकनीकी व वैधानिक तौर पर झूठा बताया है।
अब भारत के नीति निर्माताओं द्वारा यह संकेत दिया गया है कि समझौते की समीक्षा हो सकती है – खासकर जब पाकिस्तान आतंकवाद और कश्मीर के मुद्दे को बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भड़काता है।
🕊️ भारत की नीति – संयम, सख्ती और संतुलन
भारत सरकार अब स्पष्ट कर चुकी है कि आतंकवाद और कूटनीति एक साथ नहीं चल सकते। जहां एक ओर भारत संयम और शांति के लिए प्रतिबद्ध है, वहीं राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं किया जाएगा।
हालिया ऑपरेशन "सिंदूर" में भारत की रणनीतिक चतुराई और सैन्य-सामरिक क्षमता ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बैकफुट पर ला दिया है। इसके बाद पाकिस्तान द्वारा सीजफायर की पेशकश, और अब सिंधु जल संधि पर आक्रामक बयानबाज़ी – यह दिखाता है कि इस्लामाबाद अब रणनीतिक दबाव में है।
🌍 अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण – वैश्विक समुदाय भारत की नीति को समझ रहा है
भारत की पारदर्शी और नियम-आधारित विदेश नीति को विश्व समुदाय से समर्थन मिलता रहा है। अमेरिका, यूरोपीय संघ और विश्व बैंक जैसे निकाय पाकिस्तान को जल नीति और आंतरिक आतंकी संरचनाओं को लेकर बार-बार चेतावनी दे चुके हैं।
अब जबकि पाकिस्तान में आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता अपने चरम पर है, सेना द्वारा ऐसे भड़काऊ बयान केवल आंतरिक असंतोष से ध्यान हटाने की रणनीति प्रतीत होते हैं।
✍️ निष्कर्ष: पाकिस्तान की "पुरानी फितरत", लेकिन भारत अब बदल चुका है
भारत अब सिर्फ "जवाब" नहीं देता, वह रणनीतिक विकल्प बनाता है। पाकिस्तान की पुरानी शैली – पहले उकसाना और फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर "शांति की दुहाई" देना – अब बेअसर होती जा रही है। सिंधु जल संधि पर भारत का रुख यही संदेश देता है कि जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा, संसाधन नियंत्रण और क्षेत्रीय स्थायित्व की होगी, तब भारत संयम के साथ-साथ संप्रभुता का अधिकार भी पूरी मजबूती से जताएगा।
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✒️ लेखक: दीपक कुमार
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