सीतामढ़ी की सड़कें टूटी, नदियाँ मरीं, अपराध चरम पर: सुनील कुमार पिंटू ने सीतामढ़ी को क्या दिया? जनता इन्हें वोट क्यों करे ?
We News 24 :डिजिटल डेस्क » लेखक ,वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार
सीतामढ़ी, 08 नवंबर 2025: "भइया, हमरा सीतामढ़ी तो अब बस जाम, गंदगी और मौत का शहर बन गइल बा। दादा-बाबू से लेकर पिंटू जी तक, सबके राज में हमरा के का मिलल? बस वोट मांगने आइले, फिर अमेरिका चले गइले!" ये शब्द हैं कोट बाजार के 17 नंबर वार्ड के रहने वाले रामू के। एक साधारण मजदूर, जो रोजाना घर से निकलते ही गंदे नालों के पानी में डूब जाता है। रामू जैसे हजारों सीतामढ़ीवासी आज सवाल उठा रहे हैं: बीजेपी के प्रत्याशी सुनील कुमार पिंटू, "परिवार को बार-बार मौके मिले, लेकिन विकास नहीं हुआ", आखिर शहर को क्या दे गए? शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क—हर तरफ नाकामी। और ऊपर से वायरल अश्लील वीडियो का साया! 11 नवंबर को वोटिंग से पहले, आइए सुनें जनता की असली आवाज और खंगालें हकीकत।
परिवार की 'राजनीतिक विरासत': दादा से पिता तक, वोट तो मिले, विकास कहाँ?
सीतामढ़ी की राजनीति में पिंटू परिवार का नाम तो सुनते ही गूंजता है, लेकिन विकास की बात करें तो खाली हाथ। आजादी के कुछ साल बाद ही, 1962 में सुनील के दादा किशोरी लाल शाह ने कांग्रेस के टिकट पर सीतामढ़ी विधानसभा जीती। 1967 तक वे प्रतिनिधित्व करते रहे, लेकिन टिकट कटने पर परिवार की डोर थम गई। फिर 1990 में पिता हरिशंकर प्रसाद निर्दलीय लड़े, हारे। 1995 में बीजेपी से जीते, लेकिन 2000 में महज 35 वोटों से हार गए। मामला कोर्ट गया, 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें विजेता घोषित किया—लेकिन कुछ दिनों बाद उनका निधन हो गया।
फिर बीजेपी ने 'परिवारवाद विरोधी' टैग के बावजूद 2005 में बेटे सुनील कुमार पिंटू को टिकट थमा दिया। पिंटू ने 2005 के दोनों चुनाव जीते, 2010 में भी विधायक बने और पर्यटन मंत्री तक। 2015 में हार गए, लेकिन 2019 में लोकसभा पहुँचे—अमित शाह के इशारे पर JDU टिकट लिए बिना, बाद में पार्टी जॉइन की। चार बार विधायक, एक बार सांसद—फिर भी सीतामढ़ी की जनता सवाल कर रही: "इतने मौके मिले, फिर शहर क्यों मर रहा है?"
'चौमुखी विकास' का दावा, लेकिन हकीकत: जाम, बाढ़ और गंदगी का राज
सीतामढ़ी को 'चौमुखी विकास' का दावा किया जाता है, लेकिन सड़क से लेकर स्वास्थ्य तक सब जर्जर। शहर का लाइफलाइन कहलाने वाली लखनदेई नदी अब गंदे नालों का डंप। बाढ़ का मौसम आते ही बागमती नदी का तटबंध टूट जाता है—2024 में ही मधकौल गाँव में ब्रेक हुआ, जिससे बेलसुंड ब्लॉक डूब गया। कोटबाजार के 17 नंबर वार्ड में आज भी घरों में पानी घुसा रहता है। ट्रैफिक व्यवस्था? भूल जाइए! बायपास रोड पिछले 7-8 सालों से जर्जर, पैदल चलना भी मुश्किल। दिनभर जाम, रिंग रोड टूटा—निकलना किसी युद्ध से कम नहीं।
नई जानकारी के मुताबिक, 2025 में भी बाढ़ की मार जारी है। बागमती और कोसी नदियों के तटबंधों में कई जगह ब्रेक हो चुके, जिससे सीतामढ़ी के रुन्नी सैदपुर, बेलसुंड और मधुबनी जैसे इलाके डूबे हुए हैं। 16 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित, लेकिन राहत कार्य ठप। ड्रेनेज सिस्टम तो नाम मात्र का—नालों का गंदा पानी सड़कों पर बहता, बीमारियाँ फैलाती। अपराध? चरम पर। हर दूसरे-तीसरे दिन हत्या की खबर। बाढ़ के बीच लूटपाट बढ़ गई, महिलाओं पर अत्याचार आम।
स्वास्थ्य? जिला अस्पताल से लेकर PHC तक डॉक्टरों की किल्लत। इलाज के नाम पर खानापूर्ति। शिक्षा? कॉलेजों में प्रोफेसर नहीं, स्कूलों में बिल्डिंग नहीं—छात्र पेड़ों की छाँव में पढ़ते। यूनिवर्सिटी की सख्त जरूरत, लेकिन न सत्ता न विपक्ष बोलता। छात्रों को 70-80 किमी दूर मुजफ्फरपुर या दरभंगा जाना पड़ता। और रेलवे ओवरब्रिज? 2009 में शिलान्यास हुआ, 2025 में भी अधूरा! हालाँकि जनवरी 2025 में भवदेपुर और बसवरिया में नए ओवरब्रिज बनाने का ऐलान हुआ, लेकिन पुराने जाम से राहत कब? पारसौनी-सीतामढ़ी ROB का अप्रोच रोड दिसंबर तक बन सकता है, लेकिन जाम में फँसे लोग रोज़ हादसों का शिकार। कितने अपनों को खो चुके, क्योंकि समय पर अस्पताल न पहुँच पाए!
अयोध्या का 'कलंक न लगे' बहाना: मंदिर बन रहा, लेकिन सड़क-सुविधा क्यों नहीं?
हाल ही में अमित शाह ने 8 नवंबर को पूर्णिया रैली में कहा कि उन्होंने और नीतीश कुमार ने मिलकर सीतामढ़ी में 850 करोड़ की लागत से जानकी मंदिर का फाउंडेशन रखा—अयोध्या राम मंदिर की तर्ज पर। बात तो अच्छी है, क्योंकि मंदिर का डिजाइन जून 2025 में फाइनल हो चुका, और 882 करोड़ का मास्टर प्लान अप्रूव्ड। लेकिन रामू जैसे वोटर पूछते हैं: "मंदिर बनवावे से हमरा घर में पानी नहीं घुसेगा , सड़क सडक ठीक हो जायेगा ? अयोध्या वाला 'कलंक' न लग जाये, ये डर दिखा के वोट मांगत रहे है , लेकिन बुनियादी सुविधा का क्या? ड्रेनेज, बाढ़ कंट्रोल, जाम—ये कलंक तो हम लोग रोज झेलत बानी!" समर्थक X पर लिखते हैं कि मंदिर से सीतामढ़ी की पहचान बचेगी, लेकिन जनता कहती: "मंदिर भक्ति बा, लेकिन रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा—ये विकास कहाँ?"
8 तारीख का 'पाहुना' डायलोग: मोदी-अमित का दौरा, लेकिन विकास की बात गायब
8 नवंबर को PM मोदी ने सीतामढ़ी रैली में 'पाहुना' (मेहमान) डायलोग चिपकाया—बिहार को 'कट्टा सरकार' न बनने का उपदेश दिया, विपक्ष पर तंज कसे। अमित शाह ने भी बेतिया-पूर्णिया रैलियों में पिंटू को 'बड़ा आदमी' बनाने का वादा किया। लेकिन रामू हंसते हुए कहते: "मोदी जी आइले, शाह जी आइले, लेकिन सड़क, अस्पताल, स्कूल की बात कौन करत बा? बस हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद के मुद्दा! सीतामढ़ी वासी को पाहुना समझ के आइले, लेकिन हमरा दर्द कौन सुणब?" चुनावी सभाओं में विकास गायब, सिर्फ ध्रुवीकरण। जनता का दोष? कुछ पैसे की लालच में बच्चों का भविष्य दांव पर लगाते हैं—जात-पहचान से ऊपर उठें, तभी सही उम्मीदवार चुने जाएंगे, तभी विकास होगा।
वायरल वीडियो का साया: असली या नकली? FIR हुई, लेकिन फोरेंसिक रिपोर्ट गायब
चुनावी हलचल के बीच सुनील पिंटू का कथित अश्लील वीडियो वायरल। दावा है दो साल पुराना, जब वे सांसद थे। पिंटू कहते हैं, "ये पुराना सर्कुलेशन है, एडिटेड है, टिकट कटवाने की साजिश।" लेकिन 6 नवंबर 2025 को साइबर थाने में FIR दर्ज हुई, पुलिस जाँच कर रही। फोरेंसिक रिपोर्ट? अभी तक सार्वजनिक नहीं। विपक्ष चुटकी ले रहा: "सांसद जी तो काफ़ी शौकीन!" सोशल मीडिया पर बवाल—जनता का कहना: "असली लगत बा, वरना इतना छुपाव क्यों?" वी न्यूज 24 पुष्टि नहीं करते, लेकिन संदेह साफ है—ऐसे उम्मीदवार को वोट क्यों? अमित शाह ने 8 नवंबर को बेतिया-सीतामढ़ी रैली में पिंटू के लिए वोट माँगे, लेकिन वीडियो ने हलचल मचा दी।
वर्तमान सांसद देवेश ठाकुर का ऑडियो: 'रद्दी बिहारी' गाली, जनता का अपमान!
और ऊपर से वर्तमान सांसद देवेश चंद्र ठाकुर का जुलाई 2025 का वायरल ऑडियो। आधी रात कॉल पर भड़क गए, बिहारियों को 'रद्दी', 'हर@मखोर' जैसी गालियाँ! JDU सांसद, जिन्हें जनता ने चुना, वही अपमान। रामू पासवान कहते: "हमरा वोट से संसद गइले, फिर गाली? ये कइसे प्रतिनिधि?" ठाकुर ने सफाई दी कि 'भावुकता में बोल दिया', लेकिन जनता भूल नहीं रही। पहले भी 2024 में मुस्लिम-यादव वाले बयान से विवाद, अब ये।
जनता की पुकार: अबकी बार सोचिए, वोट से पहले!
रामू जैसे सैकड़ों ने कहा: "पिंटू जी का परिवार पेट भरत बा, हमरा के सड़क, स्कूल, अस्पताल तक ना मिलल। जाम में अपना खोए, बाढ़ में घर डूबे—फिर वही पुराने चावल क्यों थोपें? मंदिर अच्छा बा, लेकिन रोज की जिंदगी का क्या?" X पर पोस्ट्स में लोग पूछ रहे: "मोदी जी रैली कर रहे, लेकिन विकास कहाँ?" सीतामढ़ी ने मौके दिए, बदले में मिला दर्द। 11 तारीख को वोट डालने से पहले सोचें: जीत से भला होगा या वही वादे, वही जाम? अगर हराते हैं, तो शायद बदलाव की शुरुआत हो। सही उम्मीदवार चुनें—लालच छोड़ें, भविष्य बचाएँ।
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