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    क्षेत्रीय पार्टी और पारिवारिक पार्टी सत्ता सुख भोगने के लिए एकजुट हो रहे है ? क्या -कांग्रेस बीजेपी से दूर रहकर ये अपनी साख बचा पाएंगे ?

     

    क्षेत्रीय पार्टी और पारिवारिक पार्टी सत्ता सुख भोगने के लिए एकजुट हो रहे है ? क्या -कांग्रेस बीजेपी से दूर रहकर ये अपनी साख बचा पाएंगे ?





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    We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र / प्रियंका जयसवाल 

    नई दिल्ली : अगले साल लोकसभा चुनाव होने है सभी क्षेत्रीय पार्टी और पारिवारिक पार्टी सत्ता सुख भोगने की जुगाड़ में लग गए जो पार्टी एक दुसरे को निचा दिखाते एक दुसरे को भला बुरा कहते आज वो एक से गलबंहियां करते नजर आ रहे की कि कैसे को कुर्सी से उखाड़ फेके इनका एक वजह ये भी है की इन पार्टियों को लग रहा है की इस बार मोदी प्रधानमंत्री बन गया तो इनकी अस्त्तिव खतर में आ जएगी इसलिए  मोदी के पक्ष या विरोध के नाम पर लड़ने की तैयारी में सभी पार्टी जुट गयी है . और सभी गोलबंद होने हो रहे है या  गोलबंद करने का प्रयास किया जा रहा है . इसलिए यूपी में BSP, ओडिशा में BJD, आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की पार्टी सहित कई दलों के लिए अलग राह पर चलना आसान नहीं दिख रहा है.


    साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए 65 पार्टियों ने NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) या नवनिर्मित INDIA में आस्था दिखाई है. लेकिन 11 ऐसी पार्टियां हैं, जिन्होंने अलग रहकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. इन दलों के पास 91 सांसद हैं और इनका तटस्थ रहना आगामी हाई प्रोफाइल लोकसभा चुनाव में काउंटर प्रोडक्टिव भी हो सकता है. ऐसे में अभी तक कांग्रेस और BJP गठबंधन से अलग राह तलाशने वाली पार्टियों के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में सीटें जीत पाना आसान नहीं रहने वाला है.


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    आध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा की सरकार में काबिज ये ऐसी पार्टियां हैं, जिन्हें विपक्षी एकता की मीटिंग में आमंत्रित नहीं किया जा सका था. ये तीनों राज्यों में काबिज दलों की असली अदावत कांग्रेस के साथ है, इसलिए कांग्रेस के साथ गठबंधन में जाना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है. ओडिशा के नवीन पटनायक, तेलंगाना के केसीआर या फिर आंध्र प्रदेश के जगन मोहन रेड्डी के पास इस लोकसभा में कुल 63 सांसद हैं. इन तीनों दलों की असली चुनौती लोकसभा चुनाव में दो प्रमुख गठबंधन से अलग राजनीति कर अपनी पकड़ मजबूत कायम रखने की है.


    नवीन पटनायक की पार्टी BJD पिछले 25 सालों से ओडिशा में सत्ता में बनी हुई है. BJD के मुखिया नवीन पटनायक ओडिशा की राजनीति पर मजबूत पकड़ कायम रखते हुए केंद्र सरकार के साथ बेहतर संबंध बनाए रखने में भरोसा रखते हैं. इसलिए केंद्र सरकार की जरूरत के मुताबिक BJP के पक्ष में संसद में वोट करते रहे हैं. साल 2019 में अश्विनी वैष्णव के लिए राज्यसभा में समर्थन देकर BJD ने BJP के साथ मजबूत रिश्ते का खुलकर परिचय दिया था. लेकिन राज्य में BJP की मजबूत हो रही स्थिति के बाद BJD के लिए BJP को भी रोके रखना जरूरी हो गया है. जाहिर है ओडिशा में पिछले लोकसभा में 8 सीटें जीतने वाली BJP को BJD इस बार और कमजोर करने की चाहत से मैदान में उतरेगी, लेकिन कांग्रेस के लिए राज्य में स्पेस न तैयार हो जाए इसकी पूरी तैयारी BJD लगातार करती रही है. कांग्रेस की स्थिती मजबूत होने पर अल्पसंख्यकों के वोट कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है. इसलिए नवीन पटनायक कांग्रेस विरोध की राजनीति को कायम रखने में भरोसा करते हैं.



    यही हाल BRS का है. ताजा प्रकरण में दिल्ली के मसले पर BRS, आम आदमी पार्टी के समर्थन में कांग्रेस के साथ खड़ी दिख रही है. वैसे विपक्षी एकता की दोनों मीटिंग में BRS को आमंत्रित नहीं किया गया था. राहुल गांधी BRS को अपने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान BJP की बी टीम बता चुके हैं. BRS देश के लेवल पर राजनीति करने की मंशा रखती है, इसलिए राज्य के अलावा देश स्तर पर कांग्रेस के साथ जाना BRS के लिए आसान नहीं है. दरअसल BRS अल्पसंख्यक और दलितों की राजनीति कर सत्ता में बनी हुई है. कांग्रेस भी इन्हीं वोटों के सहारे कभी इन इलाकों में मजबूत रहा करती थी. जाहिर है BRS कांग्रेस को स्पेस देने की पक्षधर नहीं है. वहीं BJP के साथ जाने पर अल्पसंख्यक वोटों से हाथ धोने का खतरा बना हुआ है. आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी साल 2010 में पिता राजशेखर रेड्डी के गुजरने के बाद सीएम बने हैं. वो सीएम नहीं बनाए जाने को लेकर कांग्रेस से अलग हुए हैं. जगन मोहन रेड्डी के लिए कांग्रेस के साथ बने रहना कई मायनों में आसान नहीं है.



    जगन मोहन रेड्डी, नवीन पटनायक की तरह ही राजनीति करने में विश्वास रखते हैं. जगन मोहन रेड्डी भी केंद्र के साथ बेहतर रिश्ते बनाए रखने के लिए केंद्र का समर्थन संसद में करते रहे हैं. जाहिर तौर पर दो ध्रुवीय राजनीति की तरफ बढ़ रहे आगामी लोकसभा चुनाव में तटस्थ रहने वाली इन पार्टियों के लिए अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना आसान नहीं है. दरअसल BJD सहित BRS और जगन मोहन रेड्डी की पार्टी YSRCP पर कांग्रेस, BJP की बी टीम कहकर आरोप लगाती रही है. इसलिए कांग्रेस और BJP से समान दूरी बनाकर चलना इन दलों के लिए आगामी चुनाव में गंभीर चुनौती बन गई है.


    JDS, BSP, शिरोमणी अकाली दल और INLD क्या करने वाले हैं?

    पंजाब की शिरोमणी अकाली दल साल 2020 तक NDA की सरकार में घटक दल रह चुकी है. केंद्र सरकार द्वारा कृषि बिल लाए जाने के बाद पंजाब में इसके विरोध में तेज होती राजनीति को देखकर पंजाब की शिरोमणी अकाली दल NDA से अलग हो गई थी. अकाली दल का ‘INDIA’ गुट में शामिल होना आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की वजह से संभव नहीं दिख रहा है. अकाली कृषि बिल लाए जाने के बाद BJP के खिलाफ पंजाब में पैदा हुए रोष के आकलन में जुटी हुई है. BJP की सबसे पुरानी सहयोगी रही शिरोमणी अकाली दल के लिए NDA में जाना सहज और सुगम रहा है. जाहिर तौर पर वर्तमान राजनीति में अलग-थलग पड़ चुके अकाली दल के लिए BJP के साथ गठजोड़ की वजह से हिंदू वोटों में इजाफा हो सकता है.


    उत्तर प्रदेश में मायावती के लिए अकेले राजनीति करना इकलौता विकल्प दिख रहा है. मायावती को विपक्षी एकता की मीटिंग में आमंत्रित नहीं किया गया था. इसलिए 9 सांसदों वाली मायावती यूपी सहित मध्य प्रदेश, राजस्थान और छ्त्तीसगढ़ में अकेले राजनीति करने का ऐलान कर रही हैं. मायावती दलित और मुस्लिम के गठजोड़ की राजनीति पर काम करने में जुटी हैं. इसलिए BJP के साथ NDA में जाना उनकी राजनीति को सूट नहीं करता है.


    कर्नाटक में JDS के लिए भी तटस्थ रहना आसान नहीं रह गया है. JDS के गढ़ दक्षिण कर्नाटक में कांग्रेस JDS के वोटों में सेंधमारी कर चुकी है. वहीं वोकालिंगा समाज से ताल्लुक रखने वाले देवेगौड़ा की पार्टी के मतदाताओं पर भी डी के शिवकुमार की पकड़ मजबूत होती जा रही है. डी के शिवकुमार भी वोकालिंगा समाज से आते हैं, इसलिए JDS के नेता और देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी के लिए सियासत बचाए रखना सियासी मजबूरी बन गई है. कहा जा रहा है कि कर्नाटक की राजनीति में प्रासंगिकता कायम रखने के लिए JDS, NDA के खेमे में जा सकती है.


    वहीं हरियाणा की INLD तीसरे फ्रंट की पक्षधर है. INLD, NDA के साथ वाजपेयी सरकार का हिस्सा थी. INLD का एक हिस्सा JJP हरियाणा में NDA सरकार का हिस्सा है, वहीं INLD, कांग्रेस और BJP के खिलाफ तीसरे मोर्चे की पक्षधर नजर आती है.


    TDP, AIMIM, AIUD जैसी पार्टियों का रुख क्या होगा?

    TDP साल 2019 में मोदी विरोध की राजनीति का खामियाजा भुगत चुकी है. कहा जा रहा है कि TDP, NDA के पाले में कभी भी जा सकती है. AIMIM और AIUD के लिए NDA विरोधी गठबंधन के रास्ते बंद हैं. AIMIM पहले कांग्रेस के साथ गंठबंधन कर चुकी है, लेकिन तेलांगना के निर्माण के बाद इसकी नजदीकी BRS के साथ हो चुकी है. AIMIM मुस्लिम परस्त राजनीति के लिए जानी जाती है. इसलिए BJP के खिलाफ राजनीति करना उसकी प्राथमिकता है. वहीं AIUD साल 2021 में कांग्रेस से अलग होने के बाद असम में अलग-थलग पड़ गई है. कांग्रेस अब इसे BJP की बी टीम करार दे रही है.


    न्यूट्र्ल पार्टियों के लिए सियासी जमीन बचाए रखना चुनौती?

    पिछले दिनों NDA और INDIA की मीटिंग में 65 दलों के शामिल होने के बाद आगामी लोकसभा चुनाव दो ध्रुवीय होता दिख रहा है. ऐसे में न्यूट्रल रहने वाली पार्टियों के लिए सियासी जमीन बचाए रखना आसान नहीं रहने वाला है. कांग्रेस जिस तरह 26 दलों के साथ और BJP 39 दलों के साथ सीटों का तालमेल कर मैदान में उतरने की योजना बना रही है, उससे तटस्थ पार्टियों के लिए अपनी सियासी जमीन बचाए रखना चुनौती भरा होने वाला है.

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