Chhath Puja 2023:छठ पूजा को लेकर दिल्ली में तैयारियां जोरों पर हैं, क्या है पूजा विधि और जानें नहाय खाय, सूर्य पूजा और अर्घ्य देने का शुभ समय.
We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र / दीपक कुमार
नई दिल्ली :-छठ पूजा को लेकर हर तरफ तैयारी जोरो पर है पर्व को लेकर गांवों से लेकर शहर तक छठ घाटों को बनाने सजाने और संवारने में लोग लग गए है . वैसे तो छठ पूजा का शुभारंभ नहाय-खाय से होती है, लेकिन इसकी तैयारि दीपावली के बाद से ही शुरू हो जाती है । गाँव इलाके में छठ पर्व को लेकर लोग बाग गेहूं धोने व सुखाने का काम शुरू हो गया है।पर्व को लेकर खरीदारी भी तेज हो गई है। बाजारों में लोगों की भीड़ भी बढ़ती जा रही है। 17 नवंबर को नहाय खाय से प्रारंभ होकर 21 नवंबर को समाप्त होने वाले छठ महापर्व को देखते हुए छठी मईया के गीत भी बजने लगे हैं। इससे पूरा वातावरण भी छठमय दिखने लगा है।
अगर बात करे राजधानी दिल्ली की तो यंहा भी हर क्षेत्र में छठ पूजा समिति के लोग पार्को में घाट बनाने का कार्य युद्ध स्तर पर शुरू कर दिया है .महरौली छठ पूजा मछली वाला पार्क समिति इस बार बाबा लटुरिया मंदिर प्रांगन में छठ पूजा का आयोजन कर रही है आपको बताते चले की महरौली छठ पूजा मछली वाला पार्क समिति पिछले दो दशक से मछली वाला पार्क में छठ पूजा का आयोजन करता आ रहा है कुछ राजनीती कारणों के वजह से वो घाट का बली चढ़ गया . कालकाजी छठ पूजा समिति जन्माष्टमी पार्क चितरंजन पार्क वार्ड ग्रेटर कैलाश विधानसभा में, पिछले 15 वर्षों से पूजा करता आ रहा है। और यंहा भी घाट बनाने कार्य जोरो पर है .इसी प्रकार संगम विहार बेगम पुर छत्तरपुर मे भी घाट बनाने का काम शुरू हो गया है .वैसे तो सादगी और पवित्रता भक्ति एवं आध्यात्म छठ पूजा की पहचान है। इसकी उपासना का तरीका सरल है। इसमें किसी पंडित की आवश्यकता नहीं होती ।
महरौली छठ पूजा मछली वाला पार्क
महाभारत काल से प्रचलित है छठ व्रत
हिंदू धर्म के अधिकांश व्रत-त्योहार महिलाएं ही करती हैं, पर छठ व्रत में पूरा परिवार शामिल हो जाता है। छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से मानी जाती है। पांडव जब वनवास काट रहे थे, तब द्रौपदी ने कुल पुरोहित की आज्ञा प्राप्त होने पर युधिष्ठिर के साथ छठ व्रत-पूजन किया था। सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर युधिष्ठिर को अद्भुत ताम्रपात्र प्रदान किया। इसमें मधुर, स्वादिष्ट भोजन हमेशा उपलब्ध रहता था। द्रौपदी के व्रत-पूजन से प्रसन्न होकर सूर्य भगवान (छठ माता) ने युधिष्ठिर को राज-पाट, धन-दौलत, वैभव, मान-सम्मान, यश, कीर्ति पुन: प्रदान किया।
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षष्ठी व्रत को लेकर क्या कहते हैं पुराण
ज्योतिषाचार्य अरविन्द झा बताते हैं कि ब्रह्मवैवर्त पुराण में षष्ठी देवी के महात्म्य, पूजन विधि एवं पृथ्वी पर इनके पूजा प्रसाद इत्यादि के विषय में चर्चा की गई है। किंतु सूर्य के साथ षष्ठी देवी के पूजन का विधान तथा सूर्यषष्ठी नाम के व्रत की चर्चा नहीं की गई है। इस विषय में भविष्य पुराण में प्रतिमास के तिथि व्रतों के साथ षष्ठीव्रत का उल्लेख स्कंद षष्ठी के नाम से किया गया है। परंतु इस व्रत के विधान और सूर्यषष्ठी व्रत के विधान में पर्याप्त अंतर है।
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उन्होंने बताया कि मैथिल ग्रंथ वर्षकृत्यविधि में प्रतिहार षष्ठी के नाम से बिहार में प्रसिद्ध सूर्यषष्ठी की चर्चा की गई है। इस ग्रंथ में व्रत पूजा की पूरी विधि कथा तथा फलश्रुति के साथ तिथियों के क्षय एवं वृद्धि की दशा में कौन सी तिथि ग्राह्य है, इस विषय पर भी धर्मशास्त्रीय दृष्टि से सांगोपांग चर्चा हुई है। अनेक प्रामाणिक स्मृति ग्रंथों से प्रमाण भी दिए गए हैं। कथा के अंत में इति श्री स्कंद पुराणोक्त प्रतिहार षष्ठी व्रत कथा समाप्ता लिखा है। इससे ज्ञात होता है कि स्कंद पुराण के किसी संस्करण में इस व्रत का उल्लेख अवश्य हुआ होगा। इससे इस व्रत की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता भी परिलक्षित होती है।
छठ पूजा कार्यक्रम पर एक नजर
- नहाय-खाय : छठ पर्व का प्रथम दिन नहाय-खाय से शुरू होता है। नहाय-खाय 17 नवंबर को है।
- खरना : छठ व्रत का दूसरा दिन खरना 18 नवंबर को है। इस दिन पंचमी तिथि है। इसके बाद षष्ठी शुरू होगी।
- सायंकालीन अर्घ्य : छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को पूर्ण उपवास होता है। यह व्रत 19 नवंबर को है।
- प्रात:कालीन अर्घ्य : षष्ठी व्रत की पूर्णाहुति चतुर्थ दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होती है। 20 नवंबर को प्रात:कालीन अर्घ्य दिया जाएगा।
छठ पूजा की विधि
- षष्ठी के दिन यानी 19 नवंबर अपराह्न घाट पर वेदी के पास जाएं
- पूजन सामग्री वेदी पर चढ़ाएं व दीप जलाएं।
- सूर्यास्त के समय अस्ताचलगामी सूर्य को दीप दिखाकर प्रसाद अर्पित करें, दूध व जल चढ़ाएं तथा दीप जल में प्रवाहित करें।
- 20 नवंबर को ब्रह्म बेला (भोर) में स्वजन के साथ निकल जाएं और घाट पर पहुंचें।
- पानी में खड़ा होकर सूर्य उदय की प्रतीक्षा करें।
- सूर्य का लाल गोला जब दिखने लगे तो दीप अर्पित कर उसे जल में प्रवाहित करें, अंजलि से जल अर्पित करें, दूध चढ़ाएं और प्रसाद भगवान सूर्य को अर्पित करें।
- स्वयं भी प्रसाद अपने आंचल में लें और आंचल का प्रसाद किसी को न दें।
- प्रसाद वितरण करें, घर आकर हवन करें और ओठगन, काली मिर्च तथा गन्ने के रस या शरबत से व्रत तोड़ें।
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