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    !!करवा चौथ की कथा के बिना अधूरा है व्रत,सुने मां करवा की कहानी!!

         







    We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र / विवेक श्रीवासतव 

    नई दिल्ली :- करवा चौथ व्रत  से एक पौराणिक कथा जुड़ी है। कथा के अनुसार,  एक साहूकार के सात पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम वीरावती था। सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे।जब वीरावती का विवाह हुआ तो ,उस समय अपनी ससुराल से मायके आई हुई थी। 



    अपनी सभी भाभियों के साथ वीरावती ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। पूरे दिन निर्जल उपवास के कारण वीरावती अत्यधिक व्याकुल हो गई। भाईयों को अपनी बहन की व्याकुल देखी नहीं गई। जब सारे भाई जब खाना खाने बैठे तो अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे,  लेकिन बहन ने कहा कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है। वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भोजन या जल ग्रहण नहीं कर सकती।


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    अपनी बहन की ऐसी हालत देखर छोटे भाई ने दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया जिससे ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। उसने वीरवाती से कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।




    जैसे ही वीरावती पहला कौर मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरे कौर में बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा कौर मुंह में डालने जाती है तब तक ससुराल से उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे आ जाता है। यह दुखद समाचार सुनकर वीरावती सुध-बुध खो देती है,और विलाप करने लगती है। जब वीरावती अपने पति की मृत्यु पर विलाप कर रही होती है कि तभी संयोग से इंद्राणी वहांआती हैं और उसे सारी सच्चाई से अवगत करवाती हैं। इसके बाद इंद्राणी कहती हैं कि तुमने बिना चंद्रमा को अर्घ्य दिए व्रत तोड़ लिया इसी कारण तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। जिसके बाद वीरावती अपने पति को जीवित करे का निश्चय करती हैं और इंद्राणी से इसका उपाय पूछती हैं। 




    इंद्राणी कहती हैं कि तुम्हें पूरे बारह मास तक प्रत्येक चौथ का व्रत रखना होगा और अगले वर्ष करवा चौथ पर पुनः व्रत रखना होगा। इसके बाद वीरावती वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। अगले वर्ष एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो वह उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।




    सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। वीरवाती  उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। वीरवाती का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम और  करवा माता की कृपा से  वीरावती को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।


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