जापानी संस्था निचरेंन शोशु के लोग कथित तौर पर नेपाल भारत के हिंदू समुदायों को बना रहे है निशाना
काठमांडू:- भारत और नेपाल में निचिरेन शोशू जैसे संगठनों की धर्मांतरण गतिविधियों के बढ़ते आरोपों और उनकी कार्यप्रणाली पर जो सवाल उठ रहे हैं, वे बेहद गंभीर हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, जापानी नागरिक जो निचिरेन शोशु के सदस्य है उनके द्वारा कथित तौर पर हिंदू और बौद्ध समुदायों को निशाना बनाकर धर्मांतरण कराने और नेपाल में केंद्र स्थापित करने के आरोप सामने आए हैं। यह मामला न केवल धार्मिक भावनाओं बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा है।
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निचिरेन शोशू की गतिविधियां और रणनीति
भारत और नेपाल में विस्तार:
- 2013 में जापान से कोह्जी ओकुरा और उनके सहयोगी "सामाजिक कार्य" और "बौद्ध शिक्षा" के नाम पर भारत आए।
- प्रारंभ में ये लोग छोटे सामाजिक कार्यों और बुद्ध धर्म की शिक्षा के प्रचार के नाम पर लोगों को आकर्षित करते थे।
- धीरे-धीरे, स्थानीय समुदायों को धर्मांतरण के लिए प्रभावित करने की उनकी गतिविधियां सामने आईं।
नेपाल को हब बनाने का प्रयास:
- नेपाल की धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता और भारत के साथ खुली सीमा का लाभ उठाकर, ये संगठन नेपाल को धर्मांतरण का केंद्र बनाने में लगे हैं।
- रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में 10-15 जापानी नागरिक काठमांडू और भक्तपुर क्षेत्रों में सक्रिय हैं और अरबों की फंडिंग से अपने अभियानों को बढ़ावा दे रहे हैं।
फंडिंग और खर्च:
- इन संगठनों की सबसे बड़ी ताकत विदेशी फंडिंग मानी जा रही है।
- सवाल उठता है कि इन गतिविधियों के लिए फंड कहां से आता है और कौन उन्हें आर्थिक मदद दे रहा है।
- उनके कार्यों में पांच सितारा होटलों में बैठकें, विशाल मंदिर निर्माण, और सामाजिक सेवा के नाम पर बड़े आयोजन शामिल हैं, जिनका खर्च करोड़ों में है।
लालच और प्रभाव:
- आरोप है कि निचिरेन शोशू पैसों का लालच देकर या प्राकृतिक आपदाओं के समय मदद का बहाना बनाकर कमजोर वर्गों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रभावित करता है।
- 2015 के नेपाल भूकंप के दौरान, उन्होंने राहत कार्यों की आड़ में हिंदू और बौद्ध धर्म के लोगों को अपने धर्म में शामिल करने का प्रयास किया।
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प्रमुख चिंताएं और सवाल
धर्मांतरण पर रोक के बावजूद गतिविधियां कैसे जारी हैं?
- भारत और नेपाल दोनों में धर्मांतरण पर सख्त कानून हैं। नेपाल में धर्मांतरण कराने पर 3-5 साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।
- बावजूद इसके, इन संगठनों की गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं, जिससे स्थानीय प्रशासन और सरकार की निगरानी पर सवाल उठता है।
फंडिंग का स्रोत कौन है?
- ये संगठन विदेश से करोड़ों की फंडिंग प्राप्त कर रहे हैं।
- सवाल है कि क्या यह फंडिंग धार्मिक संगठनों, एनजीओ, या अन्य देशों की सरकारों से आ रही है?
सामाजिक और धार्मिक प्रभाव:
- हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायियों में आक्रोश और असुरक्षा बढ़ रही है।
- यह गतिविधियां सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को प्रभावित कर रही हैं, जिससे तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
समस्या का समाधान: क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
कानूनी कार्रवाई और निगरानी:
- भारत और नेपाल सरकार को इन संगठनों की गतिविधियों की गहन जांच करनी चाहिए।
- विदेशी फंडिंग की जांच कर उसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
स्थानीय जागरूकता:
- धर्मांतरण से संबंधित खतरों के प्रति जनता को जागरूक करना जरूरी है, खासकर गरीब और कमजोर वर्गों को, जो सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
- धार्मिक और सामाजिक संगठनों को इस मुद्दे पर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
धार्मिक संगठनों की भागीदारी:
- हिंदू और बौद्ध संगठनों को मिलकर इन गतिविधियों का विरोध करना चाहिए और लोगों को अपने धर्म और परंपराओं से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग:
- नेपाल और भारत को मिलकर इन गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए कदम उठाने चाहिए।
- विदेशी संगठनों पर नजर रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करना आवश्यक है।
मीडिया की भूमिका:
- इस मुद्दे को उजागर करने और जनता को सचेत करने के लिए मीडिया को निष्पक्ष और सक्रिय रहना होगा।
निष्कर्ष
निचिरेन शोशू जैसे संगठनों की गतिविधियां धार्मिक, सामाजिक, और कानूनी दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण हैं। भारत और नेपाल की सरकारों और समाज को मिलकर इन गतिविधियों का सामना करना होगा, ताकि क्षेत्रीय स्थिरता और धार्मिक सहिष्णुता बनी रहे।
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