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    दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा विवाद में घिरे, सरकारी बंगले में नकदी मिलने के बाद इस्तीफे की मांग

    दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा विवाद में घिरे, सरकारी बंगले में नकदी मिलने के बाद इस्तीफे की मांग



    हाइलाइट्स:

    1. जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले में आग लगने के बाद भारी मात्रा में नकदी मिली।
    2. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनका स्थानांतरण इलाहाबाद उच्च न्यायालय में किया।
    3. न्यायपालिका के कुछ सदस्य इस्तीफे या इन-हाउस जांच की मांग कर रहे हैं
    4. इन-हाउस प्रक्रिया के तहत जांच की मांग की जा रही है।
    5. यह घटना न्यायपालिका की पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिए एक बड़ी चुनौती है।






    We News 24 Hindi /  अविनाशव कुमार  



    नई दिल्ली :- दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, जस्टिस यशवंत वर्मा, हाल ही में एक विवाद में घिर गए हैं। 15 मार्च 2025 को होली के दिन जस्टिस वर्मा के सरकारी बंगले में अचानक आग लग गई। आग बुझाने के दौरान फायर ब्रिगेड को एक कमरे में भारी मात्रा में नकदी मिली, जिससे न्यायपालिका में खलबली मच गई। उस समय जस्टिस वर्मा शहर से बाहर थे।


    इस घटना के बाद, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा का स्थानांतरण इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कर दिया है। हालांकि, न्यायपालिका के कुछ सदस्यों का मानना है कि केवल स्थानांतरण पर्याप्त नहीं है। वे जस्टिस वर्मा से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं और यदि वे इनकार करते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट की 1999 में स्थापित इन-हाउस प्रक्रिया के तहत उनके खिलाफ जांच शुरू करने की बात कह रहे हैं।




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    जस्टिस वर्मा का करियर और विवाद:

    जस्टिस यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की और रीवा विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक किया। 8 अगस्त 1992 को उन्होंने वकालत शुरू की और संवैधानिक, औद्योगिक विवाद, कॉर्पोरेट, कराधान और पर्यावरण कानून जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल की। वह 2006 से 2014 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विशेष वकील रहे। 13 अक्टूबर 2014 को उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया, और 1 फरवरी 2016 को स्थायी न्यायाधीश बने। 11 अक्टूबर 2021 को उनका स्थानांतरण दिल्ली उच्च न्यायालय में किया गया था।


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    इन-हाउस प्रक्रिया:

    सुप्रीम कोर्ट की 1999 में स्थापित इन-हाउस प्रक्रिया संवैधानिक न्यायालयों के न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार, कदाचार या अनुचित व्यवहार के आरोपों की जांच के लिए बनाई गई है। इस प्रक्रिया के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश को शिकायत मिलने पर वे संबंधित न्यायाधीश से जवाब मांगते हैं। यदि जवाब संतोषजनक नहीं होता या गहन जांच की आवश्यकता होती है, तो एक जांच पैनल गठित किया जाता है, जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और दो उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं।



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    न्यायपालिका की साख पर सवाल:

    इस मामले में, कुछ न्यायाधीशों का कहना है कि केवल स्थानांतरण से न्यायपालिका की साख पर सवाल उठ सकते हैं, इसलिए जस्टिस वर्मा का इस्तीफा लिया जाना चाहिए या उनके खिलाफ इन-हाउस जांच शुरू की जानी चाहिए। 

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