कलवार विवाह संस्कार में अनूठी आस्था: ' बलभद्र मनावन' (मानाने ) की परंपरा
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नई दिल्ली :- भारत की सांस्कृतिक विविधता में विवाह केवल एक रस्म नहीं, बल्कि परंपराओं का जीवंत उत्सव है।विवाह सिर्फ दो आत्माओं का मिलन नहीं होता, बल्कि उसमें जुड़ी होती हैं अनेक परंपराएं और सांस्कृतिक विरासतें, जो समाज की पहचान बनाती हैं। ऐसी ही एक अनूठी और गौरवशाली परंपरा है — 'बलभद्र मनावन'। यह परंपरा विशेष रूप से कलवार समाज के ब्याहुत वर्ग द्वारा विवाह से पहले निभाई जाती है, जिसमें भगवान बलभद्र जी को प्रसन्न कर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
उत्तर बिहार और सीमावर्ती नेपाल क्षेत्र में कलवार समाज के 'व्याहुत' वर्ग में निभाई जाने वाली 'बलभद्र मनावन' की परंपरा है . इसका सुंदर उदाहरण है। यह अनोखी रस्म विवाह से पहले आशीर्वाद लेने और दिव्य स्वीकृति पाने की एक धार्मिक प्रक्रिया है, जो आज भी पूरी आस्था और उल्लास के साथ निभाई जाती है।
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पौराणिक कथा से जुड़ी मान्यता

विवाह के दौरान बनाई जाने वाली बलभद्र जी की पारंपरिक मूर्ति
बलभद्र पूजा और मनावन की विधि
इस परंपरा के अंतर्गत:
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बलभद्र जी की मिट्टी की प्रतिमा कुम्हार के घर से लाई जाती है, जिसे बाजे-गाजे के साथ महिलाएं घर लाती हैं।
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प्रतिमा को जौ से सजाया जाता है और पूजा स्थान पर कुलदेवता के रूप में स्थापित किया जाता है।
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उपवास रखकर, शुद्धता के साथ पूजा की जाती है।
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चना दाल और घी से बनी मीठी बुंदिया से भरे चुकिया कलश (ढक्कन वाले पात्र) और एक पात्र में सरबत रखा जाता है।
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'कच्ची रसोई' — जैसे भात, दाल, बजका, बरी, अदौरी, फुलौरा आदि व्यंजन बनाकर भोग अर्पित किया जाता है।
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विशेष भूमिका पांच कुलपुरुष निभाते हैं, जो 'बलभद्र मनावन' के पाँच विशेष प्रश्नों-उत्तरों के माध्यम से बलभद्र जी को जागृत, स्नान, भोजन, कुल्ला और पान ग्रहण कराते हैं।
पाँच प्रश्नों की परंपरा: जब बलभद्र जी को 'मनाया' जाता है
बलभद्र मनावन की पूजा में एक विशेष भाग होता है जहाँ कुल के पाँच पुरुष मिलकर भगवान बलभद्र जी के दैनिक क्रियाकलापों का प्रश्न-उत्तर रूपी स्वांग करते हैं। यह प्रक्रिया दर्शाती है कि बलभद्र जी अब हमारे बीच उपस्थित हैं और विवाह को स्वीकृति देने के लिए तैयार किए जा रहे हैं।
इस रस्म के दौरान एक थाली में भोग के साथ चना-घी की मीठी बुंदिया, पान, सरबत, दांत सफा करने के लिए 'खरिक्का' (सूखा ताड़फल), और अन्य पारंपरिक वस्तुएं रखी जाती हैं। फिर यह पाँचों व्यक्ति थाली को पकड़े हुए, क्रमशः निम्नलिखित प्रश्न करते हैं:
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"बलभद्र जी उठलें?" — उत्तर आता है: "हाँ उठलें!"
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"बलभद्र जी मुंह धोवलें?" — उत्तर: "हाँ धोवलें!"
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"बलभद्र जी खाना खइलन?" — उत्तर: "हाँ खइलन!"
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"बलभद्र जी कुल्ला कइलन?" — उत्तर स्वांग के साथ: "हाँ कुल्ला कइलन!"
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"बलभद्र जी पान खइलन?" — उत्तर सभी पान खाने का स्वांग करते हुए देते हैं: "हाँ खइलन!"
यह हर्षोल्लास और भावनात्मक जुड़ाव से भरी प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि बलभद्र जी अब 'मान' गए हैं, और विवाह का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
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प्रतिमा विसर्जन
विवाह सम्पन्न होने के बाद, 'चौठारी' के दिन — यानी जब दूल्हा-दुल्हन के मंगल बंधन खोले जाते हैं — बड़ी श्रद्धा के साथ बलभद्र जी की प्रतिमा को नजदीकी नदी में विसर्जित किया जाता है। यह विसर्जन बलभद्र जी के आशीर्वाद और नई जोड़ी के मंगल भविष्य की कामना के साथ किया जाता है।
परंपरा का सांस्कृतिक महत्व
सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, मोतीहारी, पूर्वी चंपारण सहित उत्तर बिहार के अनेक जिलों में और नेपाल के तराई क्षेत्र सहित हर जगह के ब्याहुत कलवार के बिच यह परंपरा आज भी जीवित है। विवाह संस्कार में 'बलभद्र मनावन' सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों की विरासत और सामाजिक एकता की सजीव धरोहर है, जिसे कलवार समाज गर्व से निभाता आ रहा है।
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