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    क्या भारत ने सीजफायर मानकर एक रणनीतिक चूक की है?

    क्या भारत ने सीजफायर मानकर एक रणनीतिक चूक की है?



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    🗓️ प्रकाशन तिथि: 10 मई 2025

    ✍️ वरिष्ठ पत्रकार: दीपक कुमार

    नई दिल्ली:- भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चला आ रहा तनाव एक बार फिर सीजफायर के रूप में थमता दिख रहा है। 12 मई को दोनों देशों के डीजीएमओ स्तर की वार्ता के बाद सीजफायर की सहमति बनी। लेकिन इस फैसले ने आम जनता, विश्लेषकों और देशभक्त नागरिकों के बीच कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

    जब पाकिस्तान कूटनीतिक, सैन्य और वैश्विक मोर्चे पर पूरी तरह से घिरा हुआ था — ऐसे समय भारत का पीछे हटना, कई लोगों को एक अधूरी जीत की तरह महसूस हो रहा है। खासकर तब जब भारत की सेना का मनोबल ऊँचा था, सीमाओं पर हमारी स्थिति मज़बूत थी, और पाकिस्तान आंतरिक अस्थिरता से जूझ रहा था।



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    क्या यह मौका पाकिस्तान को सबक सिखाने का नहीं था?

    इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान ने हर बार शांति का हाथ बढ़ाने के बाद पीठ में छुरा घोंपा है — चाहे वो करगिल हो, उरी हो या पुलवामा। अब जबकि भारत स्पष्ट रणनीतिक बढ़त में था, यह आर-पार की स्थिति बन चुकी थी। यह वही समय था जब भारत पाकिस्तान को यह अहसास दिला सकता था कि आतंकवाद की हर हरकत की कीमत उसे चुकानी होगी — और सिर्फ बयानबाज़ी से नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई से।


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    पाकिस्तान की फितरत – “धोखा देना”

    पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी ISI की मंशा पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता। अभी तक न आतंकवादी ठिकानों को खत्म किया गया, न आतंक का समर्थन करने वाले ढाँचों को खत्म किया गया। ऐसे में सीजफायर पर भरोसा करना, भविष्य में एक और "बड़े हमले" की जमीन तैयार करने जैसा हो सकता है।


    क्या भारत की यह नीति कूटनीतिक समझदारी है?

    कुछ जानकार मानते हैं कि यह फैसला अंतरराष्ट्रीय दबाव, कूटनीतिक संतुलन और सीमित सैन्य रणनीति के तहत लिया गया है। लेकिन सवाल यह है — क्या पाकिस्तान को हर बार "एक और मौका" देना भारत की स्थायी नीति बन चुकी है? क्या हमने यह तय कर लिया है कि सिर्फ हमला होने के बाद ही हम जागेंगे?

    निष्कर्ष

    भारत को हर मोर्चे पर मजबूती से खड़ा रहना होगा — कूटनीतिक, सैन्य और नैतिक। अगर पाकिस्तान की धरती से आतंकी गतिविधियां नहीं रुकतीं, तो सीजफायर की कोई अहमियत नहीं रह जाती। यह समय था जब भारत को अपनी सैन्य श्रेष्ठता और आतंक के खिलाफ ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ की नीति को और मजबूती से दुनिया के सामने रखना था।


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    भारत ने जो फैसला लिया, वह फिलहाल एक शांति का संकेत हो सकता है, लेकिन यह अंतिम समाधान नहीं है। पाकिस्तान की हर हरकत पर पैनी नजर रखने की ज़रूरत है और देश को यह भी तैयार रहना चाहिए कि अगर फिर धोखा हुआ, तो जवाब पहले से भी ज्यादा कठोर होगा।


    आपका पत्रकार, आपकी आवाज़
    दीपक कुमार

    वरिष्ठ पत्रकार, We News 24 

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