📢 इस्राइल-ईरान संघर्ष पर बोले मौलाना शहाबुद्दीन रजवी: "इस्लाम का टकराव हिंदुओं से नहीं, दमन से है"
नई दिल्ली | 15 जून 2025
मध्य-पूर्व में इस्राइल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के बीच, भारत से एक शांति और इंसानियत की बात सामने आई है। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने शनिवार को इस संवेदनशील मुद्दे पर नर्म लहजे में लेकिन स्पष्ट राय रखी।
🕊️ “इस्लाम का संघर्ष कभी हिंदुओं या बौद्धों से नहीं रहा”
मौलाना शहाबुद्दीन ने कहा कि इस्लाम का संघर्ष किसी धर्म विशेष से नहीं, बल्कि जुल्म और दमनकारी ताकतों से रहा है।
"न तो इस्लाम कभी दबा था, न आज दबेगा। चंगेज़ खान जैसे आक्रमणकारी भी इस्लाम को मिटा नहीं सके," – उन्होंने दोहराया।
उनके मुताबिक, हिंदू, बौद्ध और अन्य धर्मों के साथ इस्लाम का कोई टकराव नहीं है, बल्कि ये सभी धर्म शांति और सह-अस्तित्व की बातें करते हैं।
🔥 “इस्राइल को इंटरनेशनल आतंकी देश घोषित किया जाए”
मौलाना ने अपने बयान में इस्राइल को आतंक और हिंसा फैलाने वाला देश बताते हुए इंटरनेशनल मंच से उसे आतंकी देश घोषित करने की मांग की।
उन्होंने आरोप लगाया कि:
इस्राइल ने दशकों से फलस्तीन के मुसलमानों पर जुल्म, बमबारी और घर उजाड़ने का सिलसिला जारी रखा है।
जिन यहूदियों को मुसलमानों ने हिटलर के अत्याचारों से बचाकर शरण दी, वही आज मुसलमानों पर जुल्म ढा रहे हैं।
📦 “भारत की भूमिका होनी चाहिए संतुलित और शांतिपूर्ण”
मौलाना ने भारत सरकार से भी अपील की कि देश को किसी एक पक्ष के साथ खड़े होने की बजाय, वैश्विक मंच पर शांति और बातचीत का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।
"भारत के ईरान, इस्राइल और फलस्तीन तीनों से अच्छे संबंध हैं। ऐसे में भारत को युद्ध नहीं, सुलह और समाधान का संदेश देना चाहिए।"
📉 मौजूदा हालात: बढ़ता तनाव और बढ़ती चिंता
मौजूदा समय में इस्राइल और ईरान के बीच हवाई हमले, सैन्य कार्रवाई और राजनीतिक बयानबाज़ी का दौर चल रहा है।
अब तक की रिपोर्ट्स के मुताबिक:
इस्राइल ने ईरान के 150 से अधिक ठिकानों पर हमला किया है
इसमें 138 ईरानी नागरिकों और 11 इस्राइली नागरिकों की मौत की पुष्टि हुई है
यह तनाव सिर्फ इन दो देशों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर पूरे मध्य-पूर्व, एशिया और वैश्विक कूटनीति पर पड़ सकता है।
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🤝 धार्मिक टकराव नहीं, राजनीतिक जटिलता
मौलाना शहाबुद्दीन का बयान धार्मिक एकता और इंसानियत की ओर इशारा करता है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि इस्लाम की बुनियाद दया, न्याय और शांति पर है, न कि धर्मों से टकराव पर।
भारत जैसे बहुधार्मिक देश में इस प्रकार के बयान सामाजिक समरसता को बल देते हैं और यह उम्मीद जगाते हैं कि धर्मों के नाम पर नहीं, बल्कि न्याय के नाम पर संवाद और समाधान हो।
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