तुर्की की खतरनाक चाल: बांग्लादेश के जरिए भारत की 'गर्दन' पर वार की तैयारी?
By: काजल कुमारी | We News 24
दक्षिण एशिया में बदलते सामरिक समीकरणों के बीच भारत के लिए एक नई चिंता उभर कर सामने आई है। तुर्की, जो अब तक खुद को मुस्लिम दुनिया का रहनुमा मानता रहा है, अब भारत की पूर्वी सीमा को अस्थिर करने की साजिश में कथित रूप से जुट गया है।
खुफिया सूत्रों के अनुसार, तुर्की की खुफिया एजेंसियां बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामी संगठन जमात-ए-इस्लामी को न केवल वैचारिक समर्थन दे रही हैं, बल्कि सीधा आर्थिक और रसद सहयोग भी प्रदान कर रही हैं।
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🧨 जमात-ए-इस्लामी को तुर्की से फंडिंग, भारत की सीमाओं के लिए खतरा
रिपोर्ट्स के अनुसार, ढाका के मोघबाजार स्थित जमात कार्यालय के जीर्णोद्धार में तुर्की की खुफिया एजेंसियों से जुड़ी संस्थाओं की भूमिका सामने आई है।
यह कोई सामान्य सहयोग नहीं, बल्कि संगठनात्मक ताकत को बढ़ाने की एक रणनीतिक योजना मानी जा रही है।
इसके साथ-साथ, तुर्की अधिकारियों द्वारा बांग्लादेशी इस्लामी नेताओं को तुर्की में स्थित हथियार निर्माण इकाइयों का दौरा कराना भी एक और गंभीर संकेत है।
📡 तुर्की का पैन-इस्लामिस्ट एजेंडा: कट्टरपंथ को अंतरराष्ट्रीय जामा पहनाने की कोशिश
राष्ट्रपति एर्दोगान के नेतृत्व में तुर्की का पैन-इस्लामिस्ट एजेंडा अब केवल वाणी तक सीमित नहीं है।
तुर्की के धार्मिक और शैक्षणिक संस्थान दक्षिण एशियाई मुसलमानों को लक्षित करके सेमिनार व वर्कशॉप्स आयोजित कर रहे हैं।
इनका उद्देश्य वैचारिक प्रशिक्षण के ज़रिए कमज़ोर तबकों को कट्टरपंथ की ओर मोड़ना है।
भारत की सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि यह एक दीर्घकालिक और सुनियोजित योजना है, जो भारत की सामाजिक और क्षेत्रीय स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकती है।
🛑 बांग्लादेश में गुप्त रक्षा गठजोड़?
बांग्लादेश निवेश विकास प्राधिकरण (BIDA) के प्रमुख मोहम्मद आशिक चौधरी द्वारा तुर्की की रक्षा निर्माता कंपनी MKE की गुप्त यात्रा, बिना सैन्य अधिकारियों की उपस्थिति के की गई।
सूत्रों का कहना है कि यह कोई व्यापारिक दौरा नहीं, बल्कि छिपे हुए सैन्य समझौतों की भूमिका हो सकता है।
इसके अलावा, बांग्लादेश के कुछ वरिष्ठ सलाहकारों द्वारा तुर्की में बंद कमरे की सैन्य ब्रीफिंग्स में भाग लेने की बात भी सामने आई है।
⚠️ भारत की पूर्वी सीमा पर म्यांमार विद्रोहियों को समर्थन?
सूत्रों के मुताबिक, तुर्की की मदद से अराकान आर्मी जैसे म्यांमार के विद्रोही संगठनों को भी हथियारों की आपूर्ति कराए जाने की आशंका है।
यह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, खासकर मणिपुर, नागालैंड और मिज़ोरम के लिए एक गंभीर सुरक्षा चुनौती बन सकता है।
🧬 पाकिस्तान की ISI और तुर्की-जमात गठबंधन: भारत विरोधी त्रिकोण?
सबसे बड़ा खुलासा यह है कि तुर्की, पाकिस्तान की ISI और जमात-ए-इस्लामी ने कथित तौर पर एक रणनीतिक गठबंधन बनाया है, जिसका मकसद है –
भारत में धन और हथियारों की आवाजाही
कट्टरपंथी विचारधारा का प्रचार
और सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना
यह गठजोड़ भारत को तीनों मोर्चों — पूर्व, पश्चिम और वैचारिक स्तर पर कमजोर करने की कोशिश है।
🏴 जमात-ए-इस्लामी: बांग्लादेश का विवादित संगठन
यह पार्टी 1971 में पाकिस्तान समर्थक रही थी और बांग्लादेश की आजादी का विरोध किया था।
शेख हसीना सरकार के दौरान इस पर प्रतिबंध लगा था और कई नेता सजा पाए थे।
अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंजीकरण बहाल किए जाने के बाद यह फिर से राजनीतिक रूप से सक्रिय हो रही है।
📌 भारत को रहना होगा सतर्क और रणनीतिक
तुर्की की यह कथित गतिविधियाँ अब केवल राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर सक्रिय खतरा बनती जा रही हैं।
भारत को अपने पूर्वोत्तर क्षेत्रों की सुरक्षा, बांग्लादेश के भीतर कट्टरपंथी गतिविधियों पर निगरानी, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुर्की की इन गतिविधियों का विरोध करने की दिशा में तत्काल कदम उठाने होंगे।
🛡️ क्या भारत इस रणनीतिक चाल को मात दे पाएगा?
इसपर आने वाले दिनों में सरकार की प्रतिक्रिया और कार्रवाई पर सभी की निगाहें होंगी।
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