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    'लिपुलेख पर नेपाल का दावा ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं', भारत ने दिया करारा जवाब

    'लिपुलेख पर नेपाल का दावा ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं', भारत ने दिया करारा जवाब


    फटाफट पढ़े 

    खबर का सार :भारत ने लिपुलेख दर्रे पर नेपाल के दावे को खारिज करते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया कि लिपुलेख के जरिए भारत-चीन व्यापार 1954 से चला आ रहा है। नेपाल ने इसे अपने क्षेत्र का हिस्सा बताते हुए विरोध जताया, लेकिन भारत ने कूटनीति के जरिए विवाद सुलझाने की प्रतिबद्धता दोहराई।



    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » प्रकाशित: 21 अगस्त 2025, 03:05 IST

    रिपोर्टिंग : अमरेन्द्र कुमार पाठक 


    नई दिल्ली, भारत ने लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत-चीन सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर नेपाल की आपत्ति को सिरे से खारिज कर दिया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि नेपाल का लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा पर दावा न तो उचित है और न ही ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। भारत और चीन ने मंगलवार को लिपुलेख दर्रे सहित तीन व्यापारिक बिंदुओं के जरिए सीमा व्यापार बहाल करने पर सहमति जताई थी। नेपाल के इस दावे ने एक बार फिर दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को सुर्खियों में ला दिया है।



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    भारत का स्पष्ट रुख

    विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने नेपाल के दावों को खारिज करते हुए कहा, “लिपुलेख दर्रे के जरिए भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार 1954 से चला आ रहा है। कोविड-19 महामारी और अन्य कारणों से यह व्यापार कुछ समय के लिए बाधित हुआ था, जिसे अब दोनों देशों ने फिर से शुरू करने का फैसला किया है। नेपाल के क्षेत्रीय दावे ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित नहीं हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी भी एकतरफा क्षेत्रीय विस्तार को भारत स्वीकार नहीं करेगा।


    नेपाल का दावा और प्रतिक्रिया

    नेपाल के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को बयान जारी कर कहा कि लिपुलेख, कालापानी, और लिंपियाधुरा नेपाल का अभिन्न हिस्सा हैं। नेपाल ने 2020 में एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था, जिसमें इन क्षेत्रों को अपने हिस्से में दिखाया गया था। नेपाल के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लोक बहादुर छेत्री ने कहा, “महाकाली नदी के पूर्व में स्थित ये क्षेत्र नेपाल के हैं, और इसे आधिकारिक तौर पर हमारे नक्शे और संविधान में शामिल किया गया है।” उन्होंने यह भी दावा किया कि नेपाल ने चीन को इस क्षेत्र में किसी भी गतिविधि से बचने के लिए पहले ही सूचित किया था।


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    ऐतिहासिक और कूटनीतिक संदर्भ

    लिपुलेख दर्रा उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा पर स्थित है, लेकिन नेपाल इसे अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है। 1816 की सुगौली संधि के आधार पर नेपाल का दावा है कि महाकाली नदी के पूर्वी क्षेत्र, जिसमें लिपुलेख, कालापानी, और लिंपियाधुरा शामिल हैं, नेपाल के हैं। भारत ने हमेशा इस दावे को खारिज किया है, यह कहते हुए कि ये क्षेत्र ऐतिहासिक और प्रशासनिक रूप से भारत के अधीन हैं। भारत ने नेपाल से कूटनीति और बातचीत के जरिए सीमा विवाद सुलझाने की पेशकश की है, लेकिन नेपाल का रुख आक्रामक बना हुआ है।


    भारत-चीन व्यापार समझौता

    भारत और चीन ने मंगलवार को लिपुलेख दर्रे के साथ-साथ दो अन्य बिंदुओं—शिपकिला और नाथुला—के जरिए सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर सहमति जताई। यह कदम दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यह व्यापारिक गतिविधि 1954 से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है और इसमें कोई नया क्षेत्रीय दावा शामिल नहीं है।


    नेपाल की रणनीति और भारत का जवाब

    रिपोर्ट्स के अनुसार, नेपाल अपनी घरेलू राजनीति में भारत विरोध को भुनाने के लिए लिपुलेख विवाद को बार-बार उठाता है। भारत ने इस मुद्दे पर संयमित लेकिन सख्त रुख अपनाया है। रणधीर जायसवाल ने कहा, “भारत नेपाल के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को महत्व देता है और सीमा विवाद को कूटनीति के जरिए हल करने के लिए प्रतिबद्ध है।” उन्होंने नेपाल को याद दिलाया कि ऐतिहासिक तथ्य और साक्ष्य भारत के पक्ष में हैं।


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    सामाजिक और कूटनीतिक प्रभाव

    लिपुलेख विवाद ने एक बार फिर भारत-नेपाल संबंधों में तनाव को उजागर किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल की यह रणनीति उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग कर सकती है। भारत ने बार-बार दोहराया है कि वह बातचीत के दरवाजे खुले रखना चाहता है, लेकिन नेपाल के एकतरफा दावों को स्वीकार नहीं करेगा। यह विवाद क्षेत्रीय स्थिरता और भारत-चीन व्यापारिक संबंधों पर भी असर डाल सकता है।


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