माता सीता: भूमिजा से धरती माता तक – एक पवित्र जीवन यात्रा
फटाफट पढ़े-
कहानी की सार :- माता सीता, हिंदू धर्म में लक्ष्मी जी का अवतार, आदर्श नारी और पतिव्रता की प्रतीक हैं। उनकी जीवन यात्रा बिहार के सीतामढ़ी में जन्म से शुरू होती है, जहां वे राजा जनक को खेत जोतते समय भूमि से प्रकट हुईं। नेपाल के जनकपुर में भगवान राम के साथ उनका स्वयंवर हुआ, जहां शिव धनुष टूटा। विवाह के बाद, सीता ने राम के साथ 14 वर्ष का वनवास सहा, रावण द्वारा अपहरण और अग्निपरीक्षा का सामना किया। अंत में, प्रजा के संदेह पर वे वाल्मीकि आश्रम गईं और लव-कुश को जन्म दिया। अपनी निर्दोषता सिद्ध करने के बाद, वे उत्तर प्रदेश के भदोही (सीता समाहित स्थल) में धरती में समा गईं। सीतामढ़ी और आसपास के स्थल जैसे पुनौरा धाम, हलेश्वर नाथ, पंथपाकर, देकुली, और नेपाल के जनकपुर, मटिहानी, धनुषाधाम उनके जीवन से जुड़े हैं। यह लेख उनकी कथा और इन तीर्थों का वर्णन करता है, जो सत्य, त्याग और प्रेम का संदेश देता है।
लेखक: वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार
जय सिया राम! हिंदू धर्म में माता सीता को आदर्श नारी, पतिव्रता और भूमि की देवी के रूप में पूजा जाता है। वे लक्ष्मी जी की अवतार हैं, जो कृषि, उर्वरता और समृद्धि की प्रतीक हैं। रामायण महाकाव्य में वर्णित उनका जीवन त्याग, धैर्य और धर्म की मिसाल है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, माता सीता का जन्म, विवाह, वनवास और अंत में धरती में समाहित होना एक दिव्य कथा है, जो हमें जीवन के उतार-चढ़ाव में सत्य और पवित्रता का पाठ पढ़ाती है। यह लेख उनके जीवन की विस्तृत यात्रा और सीतामढ़ी (बिहार) तथा आसपास के पवित्र स्थलों पर आधारित है, जहां राम-सीता की लीला आज भी जीवंत है। इन स्थलों में नेपाल के जनकपुर धाम, मधुबनी, मटिहानी, धनुषा जैसे स्थान शामिल हैं, जहां स्वयंवर के दौरान टूटे शिव धनुष के टुकड़ों की कथा जुड़ी है। आइए, इस धार्मिक यात्रा को समझें।
माता सीता का जन्म: भूमि से दिव्य अवतार
माता सीता का जन्म सामान्य नहीं था – यह एक चमत्कार था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मिथिला नरेश राजा जनक अकाल से पीड़ित थे। ब्राह्मणों की सलाह पर उन्होंने यज्ञ के लिए खेत जोतना शुरू किया। जैसे ही हल की नोंक भूमि में लगी, वहां से एक स्वर्ण कलश में एक कन्या प्रकट हुई। राजा जनक ने उन्हें गोद लिया और नाम दिया "सीता" (जो संस्कृत में "हल की नोंक" या "खेत की रेखा" से निकला है)। उन्हें "भूमिजा" (भूमि से जन्मी) और "जानकी" (जनक की पुत्री) भी कहा जाता है। यह घटना बिहार के सीतामढ़ी जिले के पुनौरा धाम में हुई, जिसे सीता की जन्मस्थली माना जाता है। माता सीता लक्ष्मी जी का अवतार थीं, जो सरस्वती जी के शाप के कारण मानव रूप में अवतरित हुईं। उनका जन्म वैशाख शुक्ल नवमी को हुआ, जिसे "सीता नवमी" के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सीतामढ़ी में विशाल मेले लगते हैं, जहां भक्त संतान प्राप्ति की कामना से जानकी कुंड में स्नान करते हैं।
विवाह: स्वयंवर और राम-सीता का मिलन
सीता के युवा होने पर राजा जनक ने उनका स्वयंवर रचा। शर्त थी कि जो राजकुमार शिव जी के पिनाक धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा सकेगा, वही सीता से विवाह करेगा। अयोध्या के राजकुमार राम ने धनुष उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। यह घटना नेपाल के जनकपुर धाम में हुई, जो प्राचीन मिथिला की राजधानी थी। विवाह मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को संपन्न हुआ, जिसे "विवाह पंचमी" कहते हैं। जनकपुर में हर साल यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है, जहां राम की बारात का स्वागत होता है।
विवाह से पहले मैथिल परंपरा में "मटकोर पूजा" होती है, जहां दुल्हन की मिट्टी खोदकर पूजा की जाती है। यह पूजा मटिहानी (नेपाल-भारत सीमा पर) में हुई, जहां सीता जी की मिट्टी ली गई। मधुबनी (बिहार का जिला, मिथिला क्षेत्र) भी विवाह से जुड़ा है, जहां मैथिली संस्कृति और चित्रकला राम-सीता की कथा को जीवंत रखती है।
शिव धनुष के टुकड़ों की कथा
स्वयंवर में टूटे शिव धनुष के टुकड़े विभिन्न स्थानों पर गिरे, जो आज पवित्र तीर्थ हैं:
एक टुकड़ा जनकपुर धाम में गिरा, जहां जानकी मंदिर में इसका अवशेष रखा है।
दूसरा टुकड़ा धनुषा (धनुषाधाम, नेपाल) में गिरा, जो जनकपुर से 18 किमी उत्तर-पूर्व में है। यहां धनुष मंदिर है, जहां भक्त धनुष के टुकड़े की पूजा करते हैं।
कुछ कथाओं में अन्य टुकड़े बालेश्वर (बिहार) या अन्य स्थानों पर गिरे, लेकिन मुख्य रूप से धनुषाधाम प्रमुख है। इन स्थलों पर राम नवमी और विवाह पंचमी पर विशेष पूजा होती है।
वनवास: त्याग और परीक्षा की घड़ी
विवाह के बाद सीता अयोध्या आईं, लेकिन कैकेयी के वरदान से राम को 14 वर्ष का वनवास मिला। सीता ने पति के साथ जाना चुना और लक्ष्मण भी साथ गए। वन में उन्होंने चित्रकूट, दंडकारण्य और पंचवटी में समय बिताया। रावण ने सीता का अपहरण किया, लेकिन उन्होंने पतिव्रता धर्म निभाया। हनुमान जी की मदद से राम ने लंका पर चढ़ाई की, रावण वध किया और सीता को मुक्त कराया। अयोध्या लौटकर दीपावली मनाई गई। लेकिन प्रजा के संदेह पर सीता ने अग्निपरीक्षा दी, जो उनकी पवित्रता सिद्ध करती है।
धरती में समाहित: अंतिम विदाई
वनवास के बाद सीता गर्भवती हुईं और लव-कुश को जन्म दिया। लेकिन प्रजा के संदेह से राम ने उन्हें त्याग दिया। वे वाल्मीकि आश्रम में रहीं। जब लव-कुश राम से मिले और सीता की निर्दोषता सिद्ध हुई, तो राम ने उन्हें स्वीकार किया। लेकिन सीता ने कहा, "मैंने कभी कोई पाप नहीं किया, यदि यह सत्य है तो माता भूमि मुझे गोद ले लें।" धरती फटी और सीता उसमें समा गईं। यह घटना उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के सीतामढ़ी (सीता समाहित स्थल) में हुई, जहां आज मंदिर है।
सीतामढ़ी और आसपास के धार्मिक स्थल: राम-सीता की लीला के साक्षी
सीतामढ़ी बिहार का पवित्र जिला है, जो माता सीता से जुड़ा है। यहां के प्रमुख स्थल:
जानकी मंदिर, सीतामढ़ी: शहर में स्थित, जहां सीता जी की मूर्ति है।
पुनौरा धाम: जन्मस्थली, 5 किमी दूर। यहां जानकी कुंड और मंदिर है।
हलेश्वर नाथ: 3 किमी उत्तर-पश्चिम में शिव मंदिर। राजा जनक ने यहां हल से शिव पूजा की।
पंथपाकर: विवाह के बाद राम-सीता यहां रुके। एक प्राचीन बरगद का पेड़ साक्षी है।
देकुली (देओकुली): 19 किमी दूर, राम-सीता से जुड़ा मंदिर।
अन्हारी: सीतामढ़ी के पास एक पवित्र स्थान, जहां सीता की कथाएं जुड़ी हैं। (यह कम प्रसिद्ध है, लेकिन स्थानीय मान्यताओं में महत्वपूर्ण।)
नेपाल के जनकपुर से जुड़े स्थल ऊपर वर्णित हैं, जो मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर हैं।
सीता का संदेश
माता सीता का जीवन हमें सिखाता है कि विपत्तियों में भी धर्म का पालन करना चाहिए। वे भूमि से आईं और भूमि में लीन हो गईं, लेकिन उनकी कथा अमर है। सीतामढ़ी और जनकपुर जैसे स्थलों की यात्रा से भक्तों को आध्यात्मिक शांति मिलती है। यदि आप इन तीर्थों की यात्रा करें, तो राम नाम जपते हुए जाएं। जय जानकी! जय राम! यह लेख रामायण की शिक्षाओं पर आधारित है – सत्य, त्याग और
सीता माता के 108 नाम
माता सीता, जो भगवान राम की पत्नी और मिथिला की राजकुमारी हैं, हिंदू धर्म में पवित्रता, भक्ति और पातिव्रत्य की प्रतीक मानी जाती हैं। उनकी महिमा का वर्णन रामायण और विभिन्न पुराणों में मिलता है। सीता अष्टोत्तर शतनामावली में उनके 108 नामों का उल्लेख है, जो उनके गुणों, रूपों और महत्व को दर्शाते हैं। यहाँ इन नामों को सरल हिंदी में प्रस्तुत किया गया है ताकि सभी भक्त इन्हें आसानी से समझ सकें और जप सकें। इन नामों का पाठ करने से माता सीता की कृपा प्राप्त होती है और मन में शांति व भक्ति का संचार होता है।
1. ॐ सीतायै नमः
2. ॐ जनकनन्दिन्यै नमः
4. ॐ मिथिलेशसुतायै नमः
5. ॐ वैदेही नमः
6. ॐ जानक्यै नमः
7. ॐ राघवप्राणवल्लभायै नमः
8. ॐ मैथिल्यै नमः
9. ॐ भूभारहरणप्रियायै नमः
10. ॐ पातिव्रत्यपरायणायै नमः
11. ॐ रघुकुलनन्दिन्यै नमः
12. ॐ धरणीतनयायै नमः
13. ॐ अयोनिजायै नमः
14. ॐ पवित्रायै नमः
15. ॐ सर्वलोकैकसुन्दर्यै नमः
16. ॐ रमायै नमः
17. ॐ हरिण्यै नमः
18. ॐ लक्ष्मीस्वरूपायै नमः
19. ॐ विशालाक्ष्यै नमः
20. ॐ सर्वमंगलदायिन्यै नमः
21. ॐ धर्मपत्न्यै नमः
22. ॐ सौम्यरूपायै नमः
23. ॐ सौभाग्यदायिन्यै नमः
24. ॐ रघुनाथप्रियायै नमः
25. ॐ शान्तायै नमः
26. ॐ करुणामय्यै नमः
27. ॐ दयार्द्रायै नमः
28. ॐ सर्वदेवमायायै नमः
29. ॐ सत्यरूपायै नमः
30. ॐ सौम्यदृष्ट्यै नमः
31. ॐ सुशीलायै नमः
32. ॐ अनघायै नमः
33. ॐ सर्वसौभाग्यदायिन्यै नमः
34. ॐ रमणीयायै नमः
35. ॐ रसिकायै नमः
36. ॐ सर्वसिद्धिप्रदायिन्यै नमः
37. ॐ पुण्यरूपायै नमः
38. ॐ पुण्यदायिन्यै नमः
39. ॐ सर्वज्ञायै नमः
40. ॐ सर्वलोकपूजितायै नमः
41. ॐ राघवसङ्गिन्यै नमः
42. ॐ तपस्विन्यै नमः
43. ॐ तपोमय्यै नमः
44. ॐ यशस्विन्यै नमः
45. ॐ यशोदायै नमः
46. ॐ सर्वलोकनमस्कृतायै नमः
47. ॐ कमलायै नमः
48. ॐ कमलाक्ष्यै नमः
49. ॐ कमलवासिन्यै नमः
50. ॐ श्रीमत्यै नमः
51. ॐ श्रीसहितायै नमः
52. ॐ रघुकुलोद्वहायै नमः
53. ॐ राघवरञ्जिन्यै नमः
54. ॐ सर्वलोकहितायै नमः
55. ॐ सर्वदेवनमस्कृतायै नमः
56. ॐ सर्वदुःखनिवारिण्यै नमः
57. ॐ भक्तवत्सलायै नमः
58. ॐ भक्तिप्रदायै नमः
59. ॐ भक्तिपालिन्यै नमः
60. ॐ सर्वकामदायिन्यै नमः
61. ॐ सर्वदेवसेवितायै नमः
62. ॐ सर्वलोकशरण्यायै नमः
63. ॐ परमायै नमः
64. ॐ परमेश्वर्यै नमः
65. ॐ परमसुन्दर्यै नमः
66. ॐ परमप्रियायै नमः
67. ॐ सर्वलोकमातायै नमः
68. ॐ सर्वलोकदायिन्यै नमः
69. ॐ सर्वलोकप्रियायै नमः
70. ॐ सर्वलोकाश्रितायै नमः
71. ॐ सर्वलोकनायिकायै नमः
72. ॐ सर्वलोकसुन्दर्यै नमः
73. ॐ सर्वलोकमोहिन्यै नमः
74. ॐ सर्वलोकपालिन्यै नमः
75. ॐ सर्वलोकसम्मानितायै नमः
76. ॐ सर्वलोकसुखदायिन्यै नमः
77. ॐ सर्वलोकसहायिन्यै नमः
78. ॐ सर्वलोककृपायै नमः
79. ॐ सर्वलोकधर्मायै नमः
80. ॐ सर्वलोकसाक्षिण्यै नमः
81. ॐ सर्वलोकनन्दिन्यै नमः
82. ॐ सर्वलोकप्रकाशिन्यै नमः
83. ॐ सर्वलोकसर्वस्वायै नमः
84. ॐ सर्वलोकमहेश्वर्यै नमः
85. ॐ सर्वलोकसौभाग्यदायिन्यै नमः
86. ॐ सर्वलोकनमस्यायै नमः
87. ॐ सर्वलोकप्रियङ्कर्यै नमः
88. ॐ सर्वलोकसुखप्रदायै नमः
89. ॐ सर्वलोकसौम्यरूपायै नमः
90. ॐ सर्वलोकसुशीलायै नमः
91. ॐ सर्वलोकसौम्यदृष्ट्यै नमः
92. ॐ सर्वलोकसौम्यवचनायै नमः
93. ॐ सर्वलोकसौम्यचरितायै नमः
94. ॐ सर्वलोकसौम्यकान्तायै नमः
95. ॐ सर्वलोकसौम्यरञ्जिन्यै नमः
96. ॐ सर्वलोकसौम्यसुन्दर्यै नमः
97. ॐ सर्वलोकसौम्यरूपिण्यै नमः
98. ॐ सर्वलोकसौम्यदायिन्यै नमः
99. ॐ सर्वलोकसौम्यप्रियायै नमः
100. ॐ सर्वलोकसौम्यनन्दिन्यै नमः
101. ॐ सर्वलोकसौम्यसहायिन्यै नमः
102. ॐ सर्वलोकसौम्यकृपायै नमः
103. ॐ सर्वलोकसौम्यसर्वस्वायै नमः
104. ॐ सर्वलोकसौम्यनायिकायै नमः
105. ॐ सर्वलोकसौम्यसाक्षिण्यै नमः
106. ॐ सर्वलोकसौम्यपालिन्यै नमः
107. ॐ सर्वलोकसौम्यसम्मानितायै नमः
108. ॐ सर्वलोकसौम्यसुखदायिन्यै नमः
उपयोग और महत्व:
- इन 108 नामों का जप या पाठ करने से भक्तों को माता सीता की कृपा प्राप्त होती है।
- यह नामावली भक्ति, पवित्रता, धैर्य, और पातिव्रत्य के गुणों को दर्शाती है, जो माता सीता का प्रतीक हैं।
- इसे विशेष रूप से रामनवमी, सीता जयंती, या अन्य शुभ अवसरों पर पढ़ा जा सकता है।
- प्रत्येक नाम के साथ "ॐ" और "नमः" जोड़कर इसे मंत्र के रूप में जप करने से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।
डिस्क्लेमर
इस लेख में दी गई जानकारी वाल्मीकि रामायण, अन्य पौराणिक ग्रंथों, और सामान्य रूप से उपलब्ध ऐतिहासिक व धार्मिक स्रोतों पर आधारित है। लेख का उद्देश्य माता सीता के जीवन और संबंधित तीर्थस्थलों की धार्मिक व सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाना है। इसमें व्यक्त विचार और विवरण विभिन्न धार्मिक मान्यताओं और स्थानीय परंपराओं पर आधारित हैं, जो अलग-अलग स्रोतों में भिन्न हो सकते हैं। लेखक या प्रकाशक किसी भी ऐतिहासिक या धार्मिक दावे की पूर्ण सत्यता की गारंटी नहीं लेते। पाठकों से अनुरोध है कि वे इस जानकारी को आध्यात्मिक और शैक्षिक दृष्टिकोण से ग्रहण करें। किसी भी धार्मिक स्थल की यात्रा से पहले स्थानीय नियमों और दिशानिर्देशों का पालन करें।
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