बिहार में वोटर लिस्ट से कटे 48 लाख नाम: 7.41 करोड़ मतदाता तय करेंगे नई सरकार का भविष्य, SIR के बाद जारी अंतिम सूची
📝We News 24 :डिजिटल डेस्क »
पटना, 30 सितंबर 2025 – बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय लिखा गया है। विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद आज चुनाव आयोग ने अंतिम मतदाता सूची जारी कर दी, जिसमें कुल 7.41 करोड़ मतदाता दर्ज हैं। ड्राफ्ट सूची से 17.86 लाख नाम बढ़े हैं, लेकिन जून 2025 की मूल सूची से करीब 48 लाख नाम कट गए हैं। यह बदलाव बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए मील का पत्थर साबित होगा, जहां ये 7.41 करोड़ वोटर नई सरकार चुनेंगे। लेकिन इस प्रक्रिया ने लाखों लोगों को परेशान भी कर दिया है – परिवार के सदस्यों को अलग-अलग बूथों पर शिफ्ट करने से असुविधा हो रही है। विपक्ष इसे "वोट चोरी" का आरोप लगा रहा है, जबकि आयोग इसे "सूची शुद्धिकरण" बता रहा है। कल्पना कीजिए: गांव-गांव में मतदाता कार्ड चेक करने की होड़, और अब अंतिम सूची के साथ चुनावी बिगुल बजने को तैयार।
यह सूची 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा के लिए तैयार की गई है, जहां वर्तमान कार्यकाल 22 नवंबर 2025 को समाप्त हो रहा है। चुनाव आयोग की टीम 4-5 अक्टूबर को पटना दौरे पर आएगी, और अगले हफ्ते चुनाव कार्यक्रम की घोषणा संभावित है। पहला चरण छठ पूजा के बाद – अक्टूबर अंत या नवंबर के पहले हफ्ते – शुरू हो सकता है। लेकिन सवाल यह है: क्या यह पुनरीक्षण लोकतंत्र को मजबूत बनाएगा या वोटरों की आवाज दबाएगा?
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SIR का सफर: 7.89 करोड़ से 7.41 करोड़ तक – क्या बदला?
बिहार में SIR प्रक्रिया जून 2025 में शुरू हुई, जो 20 साल बाद एक बार फिर चली। 24 जून को जारी मूल सूची में 7.89 करोड़ मतदाता थे। ड्राफ्ट सूची (1 अगस्त 2025) में 65 लाख नाम काटे गए – जिनमें 22 लाख मृत और 4 लाख अयोग्य शामिल थे। इसके बाद फॉर्म-6 के जरिए 21 लाख नए योग्य मतदाता जोड़े गए, लेकिन अतिरिक्त 3.66 लाख अयोग्य नाम हटाए गए। नतीजा: अंतिम सूची में 7.41 करोड़ (कुछ स्रोतों में 7.42 करोड़) मतदाता।
यह प्रक्रिया आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों पर आधारित नहीं थी, बल्कि 11 वैकल्पिक दस्तावेजों की मांग ने कई प्रवासी मजदूरों को परेशान किया। अनुमान है कि 75 लाख बिहारी अन्य राज्यों में काम के सिलसिले में रहते हैं, जिनकी सूची में अनुपस्थिति ने विवाद खड़ा किया। आयोग का दावा है कि इससे "घोस्ट वोटर" हटे, लेकिन विपक्ष असहमत है।
आंकड़ों की झलक: पुनरीक्षण का नजरिया
यह तालिका दर्शाती है कि कैसे SIR ने सूची को "शुद्ध" किया, लेकिन कुल संख्या में 48 लाख की कमी आई।
विवाद का केंद्र: परिवार बंटे,
वोटर परेशान सबसे बड़ी शिकायत यह है कि एक ही परिवार के सदस्यों को अलग-अलग बूथों पर शिफ्ट कर दिया गया। अगर परिवार में चार सदस्य हैं, तो पति का एक बूथ, पत्नी का दूसरा – इससे बुजुर्गों और महिलाओं को असुविधा हो रही है। पटना, मुजफ्फरपुर और भागलपुर जैसे जिलों में सैकड़ों शिकायतें दर्ज हुई हैं। एक मतदाता ने कहा, "घर के सभी को एक साथ वोट डालने का मजा ही खो गया।" आयोग ने ऑनलाइन आपत्ति दर्ज करने का विकल्प दिया है, लेकिन अंतिम सुनवाई 7 अक्टूबर को होगी।
विपक्ष ने तीखा हमला बोला। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे "बीजेपी का वोट चोरी अभियान" बताया, जबकि आरजेडी के तेजस्वी यादव ने "वोटर अधिकार यात्रा" शुरू की। तेजस्वी का नाम कटने का दावा आयोग ने खारिज कर दिया, इसे "फर्जी" बताते हुए सबूत मांगे। जन सुराज के प्रशांत किशोर ने भी प्रवासन और बेरोजगारी पर जोर दिया। दूसरी तरफ, जेडीयू और बीजेपी इसे "लोकतंत्र की मजबूती" बता रहे हैं।
चुनावी बिसात: तारीखें कब, कैसे?
चुनाव आयोग का पटना दौरा 4-5 अक्टूबर को होगा, जहां मतदान केंद्रों, सुरक्षा और ईवीएम की तैयारी जांचेगा। कार्यक्रम घोषणा 6-7 अक्टूबर के आसपास संभावित, जिसके बाद मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू हो जाएगा। बिहार के 243 विधानसभा क्षेत्रों में बहु-चरणीय चुनाव होंगे – पहला चरण नवंबर के पहले हफ्ते में। पीएम मोदी ने मोतिहारी और सीवान में रैलियां कीं, जहां हजारों करोड़ के प्रोजेक्टों का ऐलान किया। तेजस्वी ने पिछड़ी जातियों पर फोकस किया, जबकि राहुल-प्रियंका की संयुक्त रैलियां अगस्त-सितंबर में हुईं।
बिहार का भविष्य: एकता या विभाजन?
यह वोटर लिस्ट न केवल आंकड़ों की किताब है, बल्कि बिहार की सियासी दिशा तय करेगी। प्रवासन, बेरोजगारी और जातिगत समीकरणों के बीच, 7.41 करोड़ मतदाता फैसला लेंगे कि बिहार की सत्ता नीतीश कुमार के पास रहेगी या तेजस्वी यादव की लहर चलेगी। लेकिन परिवारों की परेशानी और नाम कटने का विवाद चुनाव को गरमा सकता है। आयोग ने सभी राष्ट्रीय और राज्य दलों को मुफ्त कॉपी दी है, जबकि क्षेत्रीय दलों को शुल्क देना पड़ेगा।
क्या यह SIR बिहार के लोकतंत्र को मजबूत बनाएगा? या वोटरों की आवाज दबाएगा? पाठकों,
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