यमुना के घाटों पर फिर जागेगी आस्था की लहर: पांच साल के वनवास के बाद छठ पूजा को अनुमति, पूर्वांचलियों में खुशी की बाढ़
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नई दिल्ली, 30 सितंबर 2025 – यमुना के किनारे सूर्योदय की पहली किरणें, महिलाओं के हाथों में ठेकुआ और फलाहार, और वातावरण में भक्तों के गीतों की धुन – "हे छठ मईया, हे सुरज देव बाबा..."। पांच लंबे वर्षों के बाद, दिल्ली के पूर्वांचल वासियों के चेहरों पर वही मुस्कान लौट आई है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की ऐतिहासिक घोषणा ने यमुना घाटों पर छठ पूजा की मनाही हटा दी है। यह केवल एक फैसला नहीं, बल्कि आस्था का पुनरागमन है – एक ऐसा पल जो लाखों बिहारी-पूर्वी यूपी के प्रवासियों के दिलों को छू गया। आयोजकों की आंखों में आंसू हैं, लेकिन खुशी के; वे इसे "सूर्य पुत्री के वनवास का अंत" बता रहे हैं।
यह घोषणा 29 सितंबर को आई, जब सीएम गुप्ता ने दिल्ली सचिवालय में उच्च स्तरीय बैठक बुलाई। "इस बार छठ महापर्व यमुना के दोनों किनारों पर धूमधाम से मनाया जाएगा," उन्होंने कहा। पल्ला से ओखला तक अस्थायी घाट बनेंगे, स्वच्छता, सुरक्षा और सुविधाओं का पूरा इंतजाम होगा। लेकिन साफ शब्दों में चेतावनी भी दी – "यमुना में स्नान या विसर्जन निषेध है, क्योंकि यह छठ की परंपरा का हिस्सा भी नहीं।" यह फैसला न केवल आस्था को सम्मान देता है, बल्कि पर्यावरण की चिंता को भी संतुलित करता है। पूर्वांचलियों की बढ़ती आबादी को देखते हुए, सरकार ने मुनक नहर, मुंगेशपुर ड्रेन और कृत्रिम तालाबों पर भी 929 स्थलों पर इंतजाम किए हैं।
पांच साल का दर्द: प्रदूषण, महामारी और अदालती रोक से उपजी चुनौतियां
छठ पूजा – सूर्य देव और छठी माई की आराधना का यह पावन पर्व – दिल्ली में हमेशा से पूर्वांचल का प्रतीक रहा। लेकिन 2020 में कोविड महामारी ने घाटों को बंद करा दिया। उसके बाद प्रदूषण का साया छा गया। 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने यमुना की विषाक्त फोम और दूषित पानी का हवाला देकर स्नान पर पूर्ण रोक लगा दी, जो 2024 तक चली। भक्तों को पार्कों में कृत्रिम तालाबों में पूजा करनी पड़ी – आस्था तो बनी रही, लेकिन यमुना की गोद से वंचित रहना दुखद था। आयोजकों ने विरोध किया, लेकिन अदालत ने साफ कहा: "भक्त बीमार पड़ सकते हैं।" सरकार ने 1,000 से ज्यादा वैकल्पिक स्थल बनाए, लेकिन दिल की पुकार यमुना घाट ही थी।
अब, 2025 में बदलाव आया। सिंचाई विभाग को जलकुंभी हटाने के आदेश दिए गए, विशेष प्रकाश व्यवस्था होगी, और हरियाणा से पानी मंगाने की योजना है। यह न केवल छठ को जीवंत करेगा, बल्कि पूर्वांचलियों को अपनी जड़ों से जोड़ेगा।
आयोजकों की भावुक प्रतिक्रिया: "वनवास समाप्त, अब भव्य आयोजन"
छठ पूजा समिति दिल्ली के अध्यक्ष शिवाराम पांडेय की आवाज कांप उठी जब उन्हें खबर मिली। 1980 में पंजीकृत यह दिल्ली की पहली समिति है, जो वर्षों से इस पर्व को जीवंत रख रही है। "पांच साल से मां यमुना से वनवास चल रहा था," उन्होंने भरे गले से कहा। "यह प्रकृति पूजा का पर्व है – सूर्य, जल, वायु की आराधना। प्रदूषण का बहाना बनाकर रोक लगाना अन्याय था। हमने तीव्र विरोध किया, और 10 दिन पहले ही सीएम को पत्र लिखा था।" पांडेय जी ने कृत्रिम घाटों पर आस्था और सुरक्षा की चिंता जताई – "वहां पूजा में मन नहीं लगता।"
दिल्ली भोजपुरी मैथिली अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष अजीत दुबे ने इसे भावुक क्षण बताया। "एक तरफ पीएम नरेंद्र मोदी का प्रयास कि छठ को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल किया जाए, दूसरी तरफ यमुना घाटों पर अनुमति – यह पूर्वांचल वासियों के लिए दोहरी खुशी है।" वाकई, 28 सितंबर को 'मन की बात' में पीएम मोदी ने कहा, "सरकार छठ महापर्व को यूनेस्को सूची में शामिल करने के लिए प्रयासरत है। इससे दुनिया इसकी दिव्यता महसूस कर सकेगी।" यह कोलकाता की दुर्गा पूजा की तर्ज पर एक वैश्विक मान्यता की ओर कदम है।
पूर्वांचलियों में खुशी की लहर है। सोशल मीडिया पर #YamunaChhath और #Chhath2025 ट्रेंड कर रहा है, जहां भक्त आशीर्वाद दे रहे हैं: "रेखा दीदी को सूर्य देव का आशीष।"
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छठ पूजा: पूर्वांचल की आत्मा, दिल्ली की धड़कन
छठ – कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी से अष्टमी तक – बिहार, झारखंड और पूर्वी यूपी का सांस्कृतिक रत्न है। निर्जला व्रत, नदी किनारे अर्घ्य, पर्यावरण संरक्षण का संदेश – यह पर्व आस्था और प्रकृति का संगम है। दिल्ली में लाखों प्रवासी इसे मनाते हैं, जो शहर की विविधता को दर्शाता है। इस बार का आयोजन ऐतिहासिक होगा: दोनों किनारों पर घाट, स्वच्छता अभियान, और पूर्ण सुरक्षा। सीएम गुप्ता ने खुद घाटों का निरीक्षण करने का वादा किया है।
एक नई सुबह: आस्था और पर्यावरण का संतुलन
यह अनुमति न केवल छठ को पुनर्जीवित करेगी, बल्कि यमुना सफाई अभियान को गति भी देगी। पूर्वांचल वासी, जो दिल्ली की रीढ़ हैं, अब बिना बाधा के अपनी परंपरा निभा सकेंगे। क्या यह फैसला छठ को वैश्विक मंच पर और मजबूत करेगा? पाठकों,
आपकी क्या राय है? कमेंट्स में बताएं – क्योंकि आस्था सबकी साझा विरासत है।
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