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    ऐतिहासिक क्षण: पीएम मोदी ने किया दिल्ली भाजपा कार्यालय का उद्घाटन – जनसंघ की गाथा से लेकर एकता की नई मिसाल तक

    ऐतिहासिक क्षण: पीएम मोदी ने किया दिल्ली भाजपा कार्यालय का उद्घाटन – जनसंघ की गाथा से लेकर एकता की नई मिसाल तक

    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » 

    वरिष्ठ  संवाददाता,दीपक कुमार   , प्रकाशित तिथि:30 सितंबर, 2025


    नई दिल्ली, 30 सितंबर 2025 – दिल्ली के दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर आज सुबह सूरज की किरणों के बीच भगवा झंडों की लहर और "भारत माता की जय" के नारों के साथ एक नया इतिहास रचा गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भव्य पांच मंजिला दिल्ली प्रदेश कार्यालय का 29 सितंबर 2025 को  उद्घाटन किया। यह कोई साधारण  समारोह नहीं था; यह उस पार्टी की घर-वापसी थी, जो 45 साल तक दिल्ली की तंग गलियों में बिना स्थायी छत के संघर्ष करती रही। हजारों कार्यकर्ताओं की तालियों के बीच यह इमारत केवल ईंट और गारे का ढांचा नहीं, बल्कि दृढ़ता और समर्पण की कहानी है – 1980 के दशक की किराए की कोठरियों से लेकर आज अपनी जमीन पर खड़े इस भव्य भवन तक। जैसे ही शाम ढली और नया कार्यालय सुनहरी रोशनी में नहाया, हर किसी के दिल में एक ही अहसास था – यह अंत नहीं, बल्कि नई शुरुआत है।


    कल्पना कीजिए: यह नया कार्यालय, दिल्ली की शहरी भीड़ में गर्व से उभरता हुआ, केवल एक इमारत नहीं, बल्कि उस संकल्प का प्रतीक है, जिसने आपातकाल की काली रातों को झेला और राम मंदिर आंदोलन की आग में तपकर निखरा। पीएम मोदी, जो हमेशा अपनी कहानियों से दिल जीतते हैं, ने 1980 के दशक की यादें ताजा कीं, जब जनसंघ दिल्ली की विविधता भरी गलियों में एक छोटा सा बीज था। "दिल्ली भारत का लघुरूप है," उन्होंने भगवावस्त्रधारी कार्यकर्ताओं की भीड़ से कहा। "यहां देश के हर कोने से लोग बसते हैं। उनके त्योहारों में शामिल हों – चाहे केरल का ओणम हो या असम का बिहू। यही है 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' का रास्ता – एक अटूट परिवार।" उनके शब्द मानो सूखी धरती पर मॉनसून की बूंदों जैसे थे, जो याद दिलाते हैं कि राजनीति केवल मतपेटियों की नहीं, बल्कि दिलों की जीत है।



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    अतीत की गूंज: जनसंघ की आत्मा जिसने रचा दिल्ली का भगवा इतिहास

    आज की खुशी को समझने के लिए हमें 21 अक्टूबर 1951 को लौटना होगा, जब दिल्ली के एक साधारण स्कूल हॉल में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ (बीजेएस) की नींव रखी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राजनीतिक शाखा के रूप में जनसंघ हिंदू राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक गौरव और पंडित दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद से प्रेरित था। अनुच्छेद 370 की समाप्ति और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर अडिग, जनसंघ ने कांग्रेस के दबदबे को चुनौती दी।


    1980 के दशक में, दिल्ली की गलियों में जनसंघ के कार्यकर्ता – आज के भाजपा के सिपाहियों के पुरखे – शाखाएं, घर-घर प्रचार और सांस्कृतिक मेलों के जरिए संगठन को मजबूत कर रहे थे। वह दौर कच्चे जुनून का था: कोई वातानुकूलित कार्यालय नहीं, बस किराए की कोठरियां, जहां राष्ट्र की एकता पर बहसें गूंजती थीं। 1975 का आपातकाल उनके लिए अग्निपरीक्षा था, लेकिन वे और मजबूत होकर उभरे। 1977 में जनता पार्टी में विलय के बाद वैचारिक मतभेदों के चलते 6 अप्रैल 1980 को दिल्ली में ही भाजपा का जन्म हुआ। गांधीवादी समाजवाद, मूल्य-आधारित राजनीति और राष्ट्रवाद जैसे "पांच संकल्पों" के साथ भाजपा ने राम जन्मभूमि आंदोलन के जरिए लाखों लोगों को जोड़ा।



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    दिल्ली में भी यही कहानी थी। 1980 में पार्टी के साथ जन्मा स्थानीय संगठन किराए के दफ्तरों में शुरू हुआ। आज, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गर्व से कहा, "जब मैं हिमाचल में विपक्ष का नेता था, तब पीएम मोदी की दूरदर्शिता ने न सिर्फ वहां भाजपा सरकार बनवाई, बल्कि अपनी जमीन पर कार्यालय भी बनवाया।" उन्होंने बताया कि आज देशभर में 600 से ज्यादा भाजपा कार्यालय अपनी जमीन पर खड़े हैं – किराए की बेंचों से बहुत दूर की यात्रा।


    रेखा गुप्ता का श्रद्धांजलि: दीनदयाल का प्रकाश और मोदी का मार्गदर्शन

    उत्साह के बीच दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता – जिनकी भगवा सरकार ने 2025 के चुनावों में शानदार जीत हासिल की और जनता का  दिल जीत लिया। "पंडित दीन दयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद कोई किताबी सिद्धांत नहीं, हमारा दिशासूचक है," उन्होंने भावुक होकर कहा। मोदी की ओर देखते हुए उन्होंने कह, "हमारे प्रधानमंत्री सिर्फ नेतृत्व नहीं करते, वे प्रेरित करते हैं। हर कार्यकर्ता के भीतर जोश भरते हैं।" यह सत्ता का मानवीय चेहरा था – एक नेता का दूसरे को श्रेय देना, जो सुबह दरवाजों पर दस्तक देने वाले कार्यकर्ताओं के जुनून को पहचानता है।


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    मोदी और दिल्ली: आरएसएस प्रचारक से भगवा वास्तुकार तक

    पीएम मोदी ने जैसे ही मंच संभाला, माहौल और जीवंत हो उठा। उनकी आवाज़ में पुरानी यादों की गर्माहट और भविष्य की ऊर्जा दोनों झलक रही थीं। उन्होंने कहा:दिल्ली भाजपा से रिश्ता यमुना की धारा जितना गहरा है। युवावस्था में आरएसएस प्रचारक रहे मोदी 1985 में भाजपा में शामिल हुए और 1998 तक राष्ट्रीय महासचिव बने। दिल्ली में उनकी छाप? गहरी और स्थायी। उन्होंने 2014 और 2019 के चुनावों में दिल्ली के लिए रणनीति बनाई, "एके-49" जैसे नारों से प्रतिद्वंद्वियों को चित किया और युवा-प्रौद्योगिकी के साथ अनुभवी वैचारिक कार्यकर्ताओं का संगम तैयार किया। आज के भाषण में मोदी ने इस इतिहास को याद करते हुए नए कार्यालय को "सेवा का मंदिर" बताया – जहां जनसंघ के सपने भाजपा की सच्चाई से मिलते हैं। उनके नेतृत्व में दिल्ली भाजपा विपक्ष से सत्ता तक पहुंची, 2025 में रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाकर आलोचकों को चुप कर दिया। 

    “दिल्ली भारत का लघुरूप है। यहां देश के हर कोने से लोग आते हैं, रहते हैं, त्योहार मनाते हैं। यही ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की असली ताक़त है। चाहे  बिहार का छठ पूजा हो केरल का ओणम हो या असम का बिहू – हर उत्सव में शामिल होना ही भाजपा की संस्कृति है। यही है अटूट परिवार का रास्ता।”

    उनके शब्द कार्यकर्ताओं के दिलों पर ऐसे उतरे जैसे सूखी धरती पर पहली बारिश। उन्होंने नए कार्यालय को ‘सेवा का मंदिर’ बताया और कहा कि यह वही जगह होगी, जहां जनसंघ के सपने भाजपा की सच्चाई से मिलते हैं।



    दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष: 45 साल, 12 धरोहर

    45 साल में 12 नेताओं ने दिल्ली भाजपा की कमान संभाली, प्रत्येक ने अपनी छाप छोड़ी। शुरुआती संघर्षों से लेकर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने तक, यहां उनके योगदान की झलक:

    ऐतिहासिक क्षण: पीएम मोदी ने किया दिल्ली भाजपा कार्यालय का उद्घाटन – जनसंघ की गाथा से लेकर एकता की नई मिसाल तक

    भगवा हृदयभूमि का नया सवेरा

    जैसे ही सूरज ढला और नया कार्यालय सुनहरी रोशनी में नहाया, एक अहसास उभरा: यह अंत नहीं, बल्कि नई शुरुआत है। 3 करोड़ सपनों की दिल्ली में, जहां दीवाली की आतिशबाजी ईद के चांद से मिलती है, मोदी का सांस्कृतिक एकता का आह्वान पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक है। जनसंघ के पालने से लेकर आज के विशालकाय रूप तक, भाजपा केवल सत्ता की नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण की कहानी है। 600 से ज्यादा अपने कार्यालयों के साथ, संदेश स्पष्ट है: भगवा लहर रुकने वाली नहीं, यह नए किनारे गढ़ रही है।

    आप क्या सोचते हैं, पाठकों? क्या यह "सेवा का मंदिर" 2029 में भाजपा को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा? अपनी राय नीचे साझा करें – जैसा मोदी कहते हैं, राजनीति भागीदारी से जीवंत होती है।


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