Nepal Population: हमारे पड़ोसी देश नेपाल की हालत चीन और जापान जैसी है, क्या भारत भी प्रभावित होगा?
सारांश: नेपाल की जनसंख्या वृद्धि दर 2011-2021 में 0.92% प्रति वर्ष रही, जो ऐतिहासिक रूप से सबसे कम है। कुल आबादी 2.92 करोड़ पहुंची, लेकिन प्रजनन दर 1.94 प्रति महिला तक गिर गई। जीवन प्रत्याशा 71.3 वर्ष हो गई, लेकिन पलायन और छोटे परिवारों से संकट गहरा रहा है—चीन और जापान जैसी स्थिति की ओर इशारा। यह रिपोर्ट आर्थिक और सामाजिक प्रभावों पर चेतावनी देती है।
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लेखक: आदित्य श्रेष्ठ , नेपाल संवाददाता,प्रकाशित: 05 सितंबर 2025
काठमांडू/नई दिल्ली – भारत आज दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, लेकिन हमारे पड़ोसी नेपाल में स्थिति बिलकुल उलट है। यहां जनसंख्या वृद्धि इतनी धीमी हो गई है कि यह एक गंभीर संकट का रूप ले रही है। कल्पना कीजिए, एक ऐसा देश जहां युवा पीढ़ी विदेशों की ओर पलायन कर रही है, परिवार छोटे हो रहे हैं, और अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर पड़ रहा है। नेपाल के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की हालिया रिपोर्ट ने इस समस्या को उजागर किया है, जो जापान और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की याद दिलाती है। लेकिन क्या यह नेपाल तक सीमित रहेगा, या भारत जैसे पड़ोसी देशों पर भी असर डालेगा? आइए गहराई से समझते हैं।
नेपाल में आबादी का संकट: आंकड़ों की जुबानी
नेपाल की जनसंख्या वृद्धि दर पिछले दशक में औसतन 0.92% प्रति वर्ष रही है, जो पिछले आठ दशकों में सबसे कम है। 2011 की जनगणना में नेपाल की आबादी लगभग 2.65 करोड़ थी, जो 2021 तक बढ़कर 2.92 करोड़ (29,164,578) हो गई। यानी 10 सालों में सिर्फ 27 लाख की बढ़ोतरी—एक ऐसी संख्या जो कई बड़े शहरों की आबादी से भी कम है। NSO के निदेशक धुंडी राज लामिछाने ने कहा, "यह वृद्धि दर ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर है, और हमें इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर विचार करना होगा।"
घटती वृद्धि दर: 2011-2021 के बीच जनसंख्या में सिर्फ 0.92% सालाना बढ़ोतरी, जो वैश्विक औसत से काफी कम है।
कुल आबादी: 2021 जनगणना के अनुसार 2.92 करोड़, जिसमें पुरुष 1.43 करोड़ और महिलाएं 1.49 करोड़ हैं।
प्रजनन दर में गिरावट: प्रति महिला औसतन 1.94 बच्चे, जो 2011 के 2.1 से कम है। इससे भविष्य में आबादी और कम होने की आशंका है।
जीवन प्रत्याशा में सुधार: औसत जीवन प्रत्याशा 71.3 वर्ष पहुंच गई—महिलाओं के लिए 73.8 वर्ष और पुरुषों के लिए 68.2 वर्ष। पिछले चार दशकों में 21.5 वर्ष की बढ़ोतरी।
शिशु मृत्यु दर: 2011 में प्रति 1000 शिशुओं पर 40 से घटकर 2021 में 17 हो गई—स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार का संकेत।
जीवन प्रत्याशा बढ़ी, लेकिन चुनौतियां बरकरार
रिपोर्ट बताती है कि नेपाल के विभिन्न प्रांतों में जीवन प्रत्याशा में अंतर है। करनाली प्रांत में यह सबसे अधिक 72.5 वर्ष है, जबकि लुंबिनी प्रांत में 69.5 वर्ष। यह स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश का नतीजा है, लेकिन प्रजनन दर की गिरावट चिंताजनक है। करनाली में महिलाओं की औसत बच्चे जन्म देने की उम्र 26.9 वर्ष है, जबकि बागमती में 28.4 वर्ष—शहरीकरण और शिक्षा का प्रभाव साफ दिखता है।
नेपाल 1911 से हर 10 साल में जनगणना कराता आ रहा है, और ये आंकड़े दिखाते हैं कि देश धीरे-धीरे "घटती आबादी" की समस्या की ओर बढ़ रहा है। चीन की "एक बच्चा नीति" और जापान की उम्रदराज आबादी की तरह, नेपाल में भी युवा पलायन, महंगाई और नौकरी की कमी प्रमुख कारण हैं।
नेपाल के लोगों की जुबानी
इस समस्या को सिर्फ आंकड़ों से नहीं समझा जा सकता। मैंने काठमांडू में रहने वाली 28 साल की शिक्षिका रीता थापा से बात की, जो कहती हैं, "हमारे यहां अब परिवार छोटे हो रहे हैं। महंगाई इतनी है कि दो बच्चे पालना भी मुश्किल लगता है। मेरे कई दोस्त कनाडा या ऑस्ट्रेलिया चले गए हैं नौकरी के लिए। गांवों में बुजुर्ग अकेले रह जाते हैं—यह दुखद है।" रीता की कहानी लाखों नेपाली युवाओं की है, जो बेहतर जीवन की तलाश में देश छोड़ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा, तो नेपाल की अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ेगा—कम कामकाजी लोग, ज्यादा पेंशन और स्वास्थ्य खर्च।
भारत के लिए भी सबक: हमारे यहां भी कुछ राज्यों में प्रजनन दर 2 से नीचे जा रही है। क्या हम तैयार हैं?
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