ट्रंप का नया 'टैरिफ बम': दवाओं पर 100% शुल्क से भारत का फार्मा उद्योग हिल सकता है, अमेरिकी मरीजों की जेब पर भी बोझ
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ब्यूरो रिपोर्ट
वॉशिंगटन 26 सितंबर 2025:- कल्पना कीजिए, एक साधारण अमेरिकी परिवार का मुखिया, जो कैंसर की दवा पर निर्भर है। हर महीने की दवा का बिल पहले से ही हजारों डॉलर का होता है, और अब अगर वह दोगुना हो जाए, तो क्या होगा? ठीक यही डर अब हकीकत बनने की कगार पर है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दवाओं के आयात पर 100 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया है। यह फैसला न सिर्फ अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए महंगाई का नया दौर ला सकता है, बल्कि भारत के फार्मा उद्योग को गहरी चोट पहुंचा सकता है – वह उद्योग जो लाखों परिवारों की आजीविका का आधार है।
ट्रंप का यह कदम व्यापार युद्ध की पुरानी किताब से निकला लगता है। गुरुवार को उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर पोस्ट किए गए संदेश में उन्होंने साफ कहा कि 1 अक्टूबर से दवाओं से लेकर भारी ट्रकों तक हर आयातित सामान पर नए शुल्क लगेंगे। दवाओं पर 100 फीसदी, किचन कैबिनेट और बाथरूम वैनिटी पर 50 फीसदी, गद्देदार फर्नीचर पर 30 फीसदी, और भारी ट्रकों पर 25 फीसदी। ट्रंप का तर्क है कि इससे अमेरिकी बजट घाटा कम होगा और घरेलू उत्पादन को बल मिलेगा। लेकिन विशेषज्ञ चेताते हैं – यह 'घरेलू उत्पादन' का सपना महंगाई के भूत को जगा सकता है। फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने तो पहले ही आगाह कर दिया था कि वस्तुओं की ऊंची कीमतें इस साल महंगाई का मुख्य कारण बनी हुई हैं।
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भारत पर क्यों पड़ेगा गहरा असर?
भारत के लिए अमेरिका दवाओं का सबसे बड़ा बाजार है – एक ऐसा बाजार जहां हमारी सस्ती जेनेरिक दवाएं लाखों जिंदगियों को बचाती हैं। 2024 में भारत से अमेरिका को 3.6 अरब डॉलर (करीब 31,626 करोड़ रुपये) की दवाओं का निर्यात हुआ था। आश्चर्यजनक रूप से, 2025 के पहले छह महीनों में ही यह आंकड़ा 3.7 अरब डॉलर (32,505 करोड़ रुपये) तक पहुंच गया। लेकिन अब 100 फीसदी टैरिफ से ये सस्ती दवाएं अमेरिका में दोगुनी महंगी हो जाएंगी।
फार्मा कंपनियों के लिए यह झटका ऐसा है जैसे सिर पर हथौड़ा। डॉ. रेड्डीज़, सन फार्मा, लुपिन जैसी दिग्गज कंपनियां सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी। कर्मचारी होंगे चिंतित – क्या नौकरियां सुरक्षित रहेंगी? क्या रिसर्च पर ब्रेक लगेगा? चौंकाने वाली बात यह है कि ट्रंप का फोकस ब्रांडेड या पेटेंट दवाओं पर ज्यादा है, लेकिन जेनेरिक दवाओं को लेकर भी अनिश्चितता बरकरार है। अमेरिकी जनगणना ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में अमेरिका ने कुल 233 अरब डॉलर की दवाएं आयात कीं। अगर इनकी कीमतें दोगुनी हो गईं, तो मेडिकेयर और मेडिकेड जैसी स्वास्थ्य योजनाओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, और आम अमेरिकी परिवारों का स्वास्थ्य खर्च आसमान छू लेगा।
एक राहत, लेकिन अधूरी
ट्रंप ने एक छोटी सी राहत दी है – जो कंपनियां अमेरिका में विनिर्माण संयंत्र बना रही हैं या शुरू कर चुकी हैं, उन्हें यह टैरिफ नहीं चुकाना पड़ेगा। लेकिन सवाल यह है: पहले से अमेरिका में प्लांट लगाने वाली भारतीय कंपनियों को यह छूट मिलेगी या नहीं? यह स्पष्ट नहीं है। इससे कई कंपनियां अमेरिकी बाजार में निवेश बढ़ाने पर विचार कर सकती हैं, लेकिन छोटे-मझोले उद्योगों के लिए यह आसान नहीं होगा।
व्यापक असर: कपड़े से आभूषण तक
ट्रंप के टैरिफ सिर्फ दवाओं तक सीमित नहीं। कपड़े, आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टर्स पर भी 50 फीसदी तक शुल्क का खतरा मंडरा रहा है। भारत जैसे निर्यात-निर्भर देश के लिए यह चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बिगड़ेगी, और आर्थिक विकास धीमा पड़ सकता है। लेकिन कुछ सेक्टर्स जैसे आईटी सर्विसेज या सॉफ्टवेयर, जो आयात पर निर्भर नहीं, अपेक्षाकृत बेअसर रह सकते हैं।
ट्रंप का यह फैसला राजनीतिक भी लगता है – घरेलू वोटरों को खुश करने का। लेकिन सच्चाई यह है कि महंगाई का बोझ अंततः आम आदमी पर ही गिरेगा। भारत सरकार को अब फार्मा कंपनियों का साथ देना होगा – शायद नए बाजार तलाशें या घरेलू उत्पादन को मजबूत करें। वरना, यह टैरिफ सिर्फ व्यापारिक झटका नहीं, बल्कि लाखों जिंदगियों का सवाल बन सकता है।
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