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    बिहार चुनाव 2025: प्रियंका गांधी की धमाकेदार एंट्री, मोतिहारी से फूंकेंगी चुनावी बिगुल

    बिहार चुनाव 2025: प्रियंका गांधी की धमाकेदार एंट्री, मोतिहारी से फूंकेंगी चुनावी बिगुल


    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » 

    पटना, 26 सितंबर 2025 (विशेष संवाददाता): बिहार की राजनीतिक धरती पर आज एक नया सूरज उगा है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने विधानसभा चुनाव 2025 के मैदान में कदम रख दिया है। आज दोपहर पटना के ऐतिहासिक सदाकत आश्रम में महिलाओं के साथ संवाद के बाद वे पूर्वी चंपारण के मोतिहारी पहुंचेंगी, जहां गांधी मैदान में 'हर घर अधिकार रैली' को संबोधित करेंगी। यह उनकी बिहार में पहली चुनावी सभा है, जो महागठबंधन के लिए एक बड़ा संदेश देने वाली साबित हो सकती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रियंका का यह 'ट्रिपल-एम' फॉर्मूला (महिलाएं, मिथिला, मेमोरी) एनडीए के किले को हिला पाएगा? आइए, इसकी गहराई से पड़ताल करें।



    प्रियंका का आज का 'डबल डोज': महिलाओं का संवाद, फिर जनसभा का धमाका

    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने बताया कि प्रियंका दोपहर करीब 12 बजे पटना पहुंचेंगी। यहां वे आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, जीविका समूहों और महिला स्वयं सहायता समूहों के साथ 'महिला संवाद' करेंगी। यह आयोजन सदाकत आश्रम में होगा, जो महात्मा गांधी की यादों से जुड़ा है। उसके बाद दोपहर 3 बजे मोतिहारी के लिए रवाना होकर वे गांधी मैदान में विशाल जनसभा को संबोधित करेंगी। पार्टी का दावा है कि 20 हजार से अधिक महिलाएं इसमें शामिल होंगी।



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    यह प्रियंका का बिहार का दूसरा दौरा है। पिछली बार अगस्त में वे भाई राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' में शामिल हुई थीं, जहां मिथिलांचल के बीजेपी-जेडीयू के गढ़ों में घूमीं। लेकिन आज की सभा चुनावी रंग की है। पूर्णिया से शुरू होने वाली योजना में आखिरी वक्त बदलाव कर मोतिहारी चुना गया, जो रणनीतिक रूप से स्मार्ट मूव है। यहां चंपारण सत्याग्रह की धरती है—जहां से बापू ने 1917 में अंग्रेजों के खिलाफ पहला बड़ा विद्रोह छेड़ा। कांग्रेस इसी विरासत को भुनाने की कोशिश में है, ताकि 'गांधी परिवार' का भावनात्मक कनेक्शन मजबूत हो।



    जातिगत समीकरण: यादव-कुर्मी-दलित-मुस्लिम को साधने का 'सॉफ्ट पावर'

    बिहार चुनाव हमेशा जाति की राजनीति का मैदान रहा है। पूर्वी चंपारण और आसपास के जिलों—गोपालगंज, सीवान, पश्चिम चंपारण—में यादव (लगभग 14%), कुर्मी (4%), दलित (16%) और मुस्लिम (17%) वोटरों की अच्छी-खासी तादाद है। ये महागठबंधन के कोर वोट बैंक हैं। प्रियंका की सभा इन्हें सीधे टारगेट करेगी। महिलाओं पर फोकस से दलित और पिछड़ी महिलाओं को जोड़ा जाएगा, जबकि गांधी मैदान का ऐतिहासिक महत्व ब्राह्मण और अन्य ऊपरी जातियों को आकर्षित कर सकता है।

    विश्लेषकों का मानना है कि प्रियंका का 'ह्यूमन टच'—जिसमें वे आम महिलाओं की जुबान में बात करती हैं—यहां काम आएगा। राहुल की यात्रा ने EBC (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) को निशाना बनाया था, लेकिन प्रियंका का फोकस महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर है। अगर यह रैली सफल रही, तो महागठबंधन में कांग्रेस की सीट शेयरिंग की मांग (2020 में 70 सीटें मिली थीं, अब 80-90 की कोशिश) मजबूत हो जाएगी। लेकिन चुनौती भी कम नहीं—मोतिहारी आरजेडी का गढ़ है, और तेजस्वी यादव को न्योता न देने से गठबंधन में खटास की आशंका है।



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    एनडीए vs महागठबंधन: बाजी कौन मार लेगा?

    बिहार के 243 विधानसभा सीटों पर सियासत गर्म है। एनडीए (बीजेपी-जेडीयू-हम) 2020 की 125 सीटों वाली जीत को दोहराने की फिराक में है, जबकि महागठबंधन (कांग्रेस-आरजेडी-वाम) 'वोट चोरी' और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर हमलावर है। प्रियंका की एंट्री से कांग्रेस को नई ऊर्जा मिली है, लेकिन X (पूर्व ट्विटर) पर बहस छिड़ी है—क्या यह RJD पर प्रेशर टैक्टिक है? CWC की 24 सितंबर की बैठक में सीट बंटवारे पर चर्चा हुई, जहां प्रियंका ने महिलाओं के लिए 33% आरक्षण और SC/ST जैसा EBC कानून का वादा किया।



    बिहार की धरती पर गांधी परिवार का 'कमबैक'

    प्रियंका का आगमन सिर्फ चुनावी नहीं, भावनात्मक भी है। चंपारण की मिट्टी से जुड़कर वे बापू की विरासत को जीवंत करेंगी। लेकिन सवाल वही—क्या यह 'इंदिरा की बेटी' वाला नैरेटिव एनडीए के मोदी-नीतीश जुगाड़ को तोड़ पाएगा? आने वाले दिनों में प्रियंका की रैलियां पूरे बिहार में फैलेंगी, खासकर मिथिलांचल और शाहाबाद में। अगर जातिगत समीकरण सध गए, तो महागठबंधन को फायदा हो सकता है। वरना, यह सिर्फ एक चमकदार शुरुआत साबित हो सकती है।

    बिहार की जनता अब देख रही है—क्या प्रियंका लहर चलेगी, या पुरानी हवाएं ही बहेंगी? चुनावी घड़ी टिक-टिक कर रही है।


     


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