आइये जानते है क्यों मनाया जाता है धनतेरस, पढ़ें ये पौराणिक कथा
धर्म/कर्म
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह 5 अक्टूबर को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन समुद्र मंथन के दौरान, अमृत का कलश लेकर धनवंतरी प्रकट हुए थे। इस वजह से इस दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा। मान्यता है कि इस दिन समुद्र मंथन के दौरान, अमृत का कलश लेकर धनवंतरी प्रकट हुए थे। इस कारण इस दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन स्वास्थ्य रक्षा के लिए धनवंतरी देव की उपासना की जाती है। इस दिन को कुबेर का दिन भी माना जाता है और धन संपन्नता के लिए कुबेर की पूजा की जाती है।
धनतेरस की पौराणिक कथा
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक राजा बलि के भय से देवताओं को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था, जिसके बाद वह यग स्थल पर जा पहुंचे थे। लेकिन असुरों के गुरु शुक्राचार्य पहचान गए थे कि वामन के रूप में भगवान विष्णु ही हैं। इसलिए उन्होंने राजा बलि से कहा कि वामन जो भी मांगे वो उन्हें ना दिया जाए। साथ ही उन्होंने कहा कि वामन के रूप में भगवान विष्णु हैं, जो देवताओं की सहायता करने के लिए यहां आए हैं।
लेकिन राजा बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं सुनी और वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि दान करने के लिए तैयार हो गए। लेकिन शुक्राचार्य ऐसा नहीं चाहते थे, इसलिए राजा बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य ने उनके कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर लिया था। लेकिन भगवान वामन भी शुक्राचार्य के छल को समझ गए थे, जिसके बाद उन्होंने अपने हाथों में मौजूद कुशा को कमंडल में इस तरह रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई।
कहा जाता है कि इसके बाद भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि को बलि ने दान करने का निर्णय ले लिया। उस समय भगवान वामन ने अपने एक पैर से पूरी धरती को नापा और दूसरे पैर से अंतरिक्ष को नाप लिया। लेकिन तीसरा पैर रखने के लिए कुछ स्थान नहीं बचा था, जिसके बाद बलि ने वामन भगवान के चरणों में अपना सिर रख दिया था। देवताओं को बलि के भय से इस तरह मुक्ति मिल गई थी। इसी जीत की खुशी में धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
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