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    आइये चलते हैं धर्म नगरी उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर ,यहां माता शक्ति के रूप में है पितंग त्रिशूल ,दक्षिण की ओर झुका हुआ है शिवलिंग

     

    आइये चलते हैं धार्मिक नगरी उत्तरकाशी, जानते हैं जानते है काशी विश्वनाथ मंदिर के प्राचीन कथा और कहानी के बारे में


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    We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र / एडिटर एंड चीफ दीपक कुमार 

    उत्तरकाशी :- नमस्कार दोस्तों आज हम आपको उत्तराखंड दर्शन की इस पोस्ट में उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित प्रसिद्ध लोकप्रिय धार्मिक स्थल काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में पूरी जानकारी देने वाले है तो इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़े |


    उत्तरकाशी उतराखंड राज्य के मुख्य धर्म स्थली में से एक है जन्हा माता गंगा की अविरल धारा बहती है जो ऋषिकेश हरिद्वार होते बंगाल में जाकर सागर समाहित हो जाती है जिसे हम गंगा सागर के नाम से जानते है .  उत्तरकाशी का महत्तव भी इसलिए अहम् है की चार धाम में दो धाम  गंगोत्री और यमनोत्री जाने के आपको यंही से जाना पड़ेगा .तो चलिए आइये जानते है उत्तरकाशी के बारे में ऋषिकेश से तक़रीबन 154 किलोमीटर की दूरी पर ऋषिकेश-गंगोत्री  यमनोत्री मार्ग पर स्थित है। इस क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन पवित्र स्थल  है विश्वनाथ मंदिर वैसे तो उत्तरकाशी में और कई मंदिर है .लेकिन इन सभी में भगवान विश्वनाथ का मंदिर अद्भुत औरअनोखा है .

    आइये चलते हैं धार्मिक नगरी उत्तरकाशी, जानते हैं जानते है काशी विश्वनाथ मंदिर के प्राचीन कथा और कहानी के बारे में


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    विश्वनाथ मंदिर के प्रागण में  ठीक  सामने, शक्ति मंदिर, ये मंदिर शक्ति की देवी को समर्पित है। इस मंदिर में एक बड़े पितंग त्रिशूल हैं . ये त्रिशूल ये दर्शाता है की  विश्वनाथ मंदिर कैसे बनाया गया था  मंदिर का निर्माण राजा गणेश्वर द्वारा किया गया था, जिसका बेटा गुह, एक महान योद्ने  त्रिशूल का निर्माण किया।  

    आइये चलते हैं धार्मिक नगरी उत्तरकाशी, जानते हैं जानते है काशी विश्वनाथ मंदिर के प्राचीन कथा और कहानी के बारे में


    यह मंदिर उत्तरकाशी के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है | उत्तरकाशी को प्राचीन समय में विश्वनाथ की नगरी कहा जाता था एवम् कालांतर में इस स्थान को “उत्तरकाशी” कहे जाने लगा | केदारखंड और पुराणों में उत्तरकाशी के लिए ‘बाडाहाट’ शब्द का प्रयोग किया गया है और पुराणों में इसे ‘सौम्य काशी’ भी कहा गया है । 12 ज्योतिर्लिगों में से एक उत्तराखण्ड के काशी विश्वनाथ मंदिर की स्‍थापना भगवान परशुराम द्वारा की गई थी एवम्  ज्योतिलिंग के अतर्गत मंदिर में विश्वनाथ भगवान प्रकट हुए थे | विश्वनाथ मंदिर हिंदूओं के भगवान शिव को समर्पित है , तथा आप यहां भक्त द्वारा मंत्रों का सस्वर पाठ हर समय सुन सकते हैं | 

    आइये चलते हैं धार्मिक नगरी उत्तरकाशी, जानते हैं जानते है काशी विश्वनाथ मंदिर के प्राचीन कथा और कहानी के बारे में


    विश्वनाथ मंदिर आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है | मान्यताओं के अनुसार लगभग पत्थरों के ढाँचे के रूप में इस मंदिर का निर्माण गढ़वाल नरेश प्रद्युम्न शाह ने करवाया था , बाद में उनके बेटे महाराजा सुदर्शन शाह  की पत्नी महारानी कांति ने 1857 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया एवम् ऐसा भी माना जाता है कि यह मंदिर राजा ज्ञानेश्वर द्वारा बनाया गया था, जबकि भगवान शिव का त्रिशूल गूह द्वारा बनवाया गया था | विश्वनाथ मंदिर में एक आश्चर्यचकित कर देने वाला एक त्रिशूल है | उस त्रिशूल की लम्बाई 8 फूट , 9 इंच है तथा इसकी उंचाई 26 फीट है |

    आइये चलते हैं धार्मिक नगरी उत्तरकाशी, जानते हैं जानते है काशी विश्वनाथ मंदिर के प्राचीन कथा और कहानी के बारे में


     विश्वनाथ मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग भी उपस्थित है, जो कि 56 सेमी ऊंचा और दक्षिण की ओर झुका हुआ है | एक अन्य लोकप्रिय धार्मिक स्थल, शक्ति मंदिर (को समर्पित हिंदू देवी सती), विश्वनाथ मंदिर के सामने स्थित है । ऐसी मान्यता है की  उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर या वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा अर्चना किये बिना गंगोत्री धाम की यात्रा के पूरी नहीं होती विश्वनाथ मंदिर के महत्व को और भी अधिक बढ़ा देती है | मंदिर परिसर के गर्भगृह में देवी पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित है और साथ ही साथ भगवान साक्षी गोपाल और बाबा मार्कंडे मंदिर भी हैं | भगवाण शिव के वाहन “नंदी बैल” मंदिर के बाहरी कक्ष में उपस्थित है | इस  मंदिर को कत्युरी शैली में बनाया गया है | ऐसी मान्यता है कि उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन का फल वाराणसी के काशी विश्वनाथ के बराबर है | माना जाता है की कलियुग में उत्तरकाशी ही एक मात्र ऐसा तीर्थ स्थल है , जहां भगवान स्वयं स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं और ये स्वयंभू शिवलिंग काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थित है | यह मंदिर साल भर भक्तो के लिए खुला रहता है | काशी विश्वनाथ मंदिर में शिवरात्रि की रात जलता दीपक हाथ में लेकर भगवान आशुतोष की आराधना करने वाले निसंतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है ।

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    पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्तरकाशी में ही राजा भागीरथ ने तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि भगवान शिव धरती पर आ रही गंगा को धारण कर लेंगे । तब से यह नगरी विश्वनाथ की नगरी कही जाने लगी और कालांतर में इसे उत्तरकाशी कहा जाने लगा । 

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