एक नाथ शिंदे का मुख्यमंत्री पद का मोहभंग, बीजेपी ने बदल दिया पूरा खेल
We News 24 Hindi / रिपोर्टिंग सूत्र / दीपक कुमार
नई दिल्ली :- महाराष्ट्र की राजनीति में हाल ही में आए इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा ने विधानसभा चुनावों में प्रचंड जीत के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर किसी प्रकार का समझौता करने का मन नहीं बनाया है। एकनाथ शिंदे, जो पिछले चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन करके मुख्यमंत्री बने थे, इस बार फिर से मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी को लेकर दबाव बना रहे थे।
अगर राजनीतिक विश्लेषण करें, तो शिंदे के भाजपा के साथ गठबंधन और शिवसेना में विभाजन के बाद मुख्यमंत्री बनने का सफर विवादों और चुनौतियों से भरा रहा है। कई बार उन पर आलोचनाएं हुईं कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए उद्धव ठाकरे का विरोध किया। लेकिन उनकी सरकार की कार्यशैली और हालिया बयान दर्शाते हैं कि वह अब राज्य के विकास और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
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ऐसे में यह कहना कि उनकी 'लालसा' खत्म हो गई है, शायद उनकी वर्तमान भूमिका और जनता के प्रति जवाबदेही को सही संदर्भ में दर्शाता है। लेकिन राजनीति में संभावनाएं और महत्वाकांक्षा पूरी तरह खत्म नहीं होतीं, इसलिए उनके भविष्य के कदमों पर भी नजर रखना जरूरी होगा।
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शिंदे की दावेदारी और भाजपा का रुख
चुनाव परिणामों के बाद शिंदे खेमे ने यह संकेत दिया कि अगर एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद नहीं दिया गया, तो आगामी बीएमसी चुनाव में भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। यह दबाव बनाकर भाजपा को सहमति के लिए मजबूर करने की कोशिश की गई। हालांकि, भाजपा ने शुरुआत से ही इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की और अपनी रणनीति पर कायम रही।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने शिंदे से स्पष्ट रूप से कह दिया कि इस बार मुख्यमंत्री पद भाजपा के ही पास रहेगा और यह फैसला अटल है। भाजपा का यह रुख उनकी चुनावी सफलता और बढ़ते जनाधार को देखते हुए स्वाभाविक भी है।
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शिंदे का प्रेस कॉन्फ्रेंस
इसके बाद, एकनाथ शिंदे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के निर्णय का सम्मान करेंगे। उन्होंने कहा, "मेरी वजह से महाराष्ट्र में सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी।" यह बयान इस बात का संकेत है कि शिंदे अब भाजपा के मुख्यमंत्री को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं।
भाजपा की ताकत और शिंदे की मजबूरी
भाजपा की ताकत: भाजपा ने विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करते हुए महायुति को सत्ता में बनाए रखा। इस जीत ने भाजपा को यह विश्वास दिलाया कि अब वह अपनी शर्तों पर सरकार बना सकती है।
शिंदे की स्थिति: शिंदे गुट का समर्थन सीमित है, और उनके पास भाजपा का साथ छोड़ने का कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं है। भाजपा के समर्थन के बिना उनका राजनीतिक भविष्य अनिश्चित हो सकता है।
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क्या आगे होगा?
यह स्पष्ट है कि महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा अब प्रमुख खिलाड़ी है और एकनाथ शिंदे की भूमिका सहयोगी की हो सकती है, न कि निर्णायक। शिंदे के इस कदम से यह भी तय हो गया है कि भाजपा अब किसी भी स्थिति में समझौता नहीं करेगी और नेतृत्व के मामले में अपना वर्चस्व बनाए रखेगी।
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