निचिरेन शोशु संप्रदाय की अवैध गतिविधियां भाग-2,निचिरेन शोशू के भिक्षु जो बार-बार भयानक यौन अपराध करते हैं
आज हम आपसे जो जानकारी साझा कर रहे , वह निचिरेन शोशू संप्रदाय के कुछ भिक्षुओं और सदस्यों के आपराधिक और अनैतिक व्यवहार को उजागर करती है। इस प्रकार की घटनाओं ने इस धार्मिक संप्रदाय की साख को गहराई से प्रभावित किया है और समाज में धर्म और नैतिकता की छवि को भी कलंकित किया है।
निचिरेन शोशू संप्रदाय, जो जापान में बौद्ध धर्म का एक प्रमुख पंथ है, पर यदि ऐसे आरोप लगते हैं, तो यह न केवल धर्म के प्रति आस्था को कमजोर करता है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित करता है।
पुनः गिरफ्तारी की टीवी समाचारों पर व्यापक रूप से रिपोर्ट की गई |
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मामला 26 मई, 1998 को शिज़ुओका प्रीफेक्चरल पुलिस ने शिनवा गोटो को गिरफ्तार किया, जो उस समय 31 वर्ष के थे और ताइसेकिजी मंदिर में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। गोटो निचिरेन शोशू संप्रदाय की पत्रिका "दैनिचिरेन" के संपादकीय कार्यालय में दूसरे स्थान पर थे।
गोटो को तथाकथित अभद्र आचरण अध्यादेश का उल्लंघन करने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था, जो "18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के प्रति अभद्र कृत्यों" को प्रतिबंधित करता है। आरोप है कि गोटो ने एक टेलीक्लब में मिले दो जूनियर हाई स्कूल की लड़कियों को एक होटल में ले जाकर उनके साथ अभद्र कृत्य किए।
इस गिरफ्तारी ने निचिरेन शोशू संप्रदाय और उसके सदस्यों की नैतिकता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इस घटना ने संप्रदाय की साख को नुकसान पहुँचाया और समाज में आक्रोश उत्पन्न किया।
जैसे-जैसे शिनवा गोटो के खिलाफ जांच आगे बढ़ी, नए तथ्य सामने आए। गोटो पर एक और गंभीर आरोप लगाया गया, जिसमें उन्होंने कुछ महीने पहले एक हाई स्कूल की लड़की को उसके घर जाते समय जबरन अपनी कार में बिठाया और एक मोटल में ले जाकर उसके साथ मारपीट की। इस घटना में लड़की को ऐसी चोटें आईं जिनके ठीक होने में दो सप्ताह का समय लगा।
जब गोटो को फ़ूजी पुलिस स्टेशन से रिहा किया गया, तो उन्हें तुरंत नुमाज़ू पुलिस स्टेशन में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। गोटो ने इन आरोपों को स्वीकार कर लिया, जिससे उनकी स्थिति और भी गंभीर हो गई।
एक खेल अखबार ने कहा, ``मछली जैसी गंध भिक्षुओं के लिए आरक्षित है।'' |
प्रमुख घटनाओं का सारांश:
1. शिनवा गोटो का मामला (1998):
- आरोप: गोटो, जो निचिरेन शोशू की पत्रिका दैनिचिरेन के संपादकीय कार्यालय में एक प्रमुख पद पर थे, पर नाबालिग लड़कियों के साथ अश्लील हरकतें करने और हिंसा करने का आरोप लगा।
- पहली घटना: उन्होंने टेलीफोन क्लब (टेलीक्लब) के माध्यम से दो जूनियर हाई स्कूल की लड़कियों को होटल बुलाकर उनके साथ अभद्र कृत्य किए।
- दूसरी घटना: उन्होंने एक हाई स्कूल की लड़की को घर जाते समय जबरन अपनी कार में बैठाया और उसे मोटल ले जाकर मारपीट की। लड़की को ऐसी चोटें आईं जिनके ठीक होने में दो सप्ताह का समय लगा।
- पुनः गिरफ्तारी: फ़ूजी पुलिस स्टेशन से रिहा होते ही उन्हें नुमाज़ू पुलिस स्टेशन में फिर से गिरफ्तार किया गया।
- स्वीकारोक्ति: गोटो ने इन सभी आरोपों को स्वीकार किया, जिससे उनकी स्थिति और गंभीर हो गई।
2. दोशिन ताकेतोमी का मामला (2004):
- गिरफ्तारी: यामागुची प्रांत के शिमोनोसेकी शहर में स्थित कोहोनजी मंदिर के मुख्य पुजारी, दोशिन ताकेतोमी को 27 सितंबर 2004 को गिरफ्तार किया गया।
- आरोप: ताकेतोमी ने एक 17 वर्षीय हाई स्कूल की लड़की के साथ अश्लील हरकतें कीं। वह इस लड़की से टू शॉट डायल सेवा (अजनबियों से मिलने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक प्रणाली) के माध्यम से मिले थे।
- अन्य घटना: लड़की की माँ ने ताकेतोमी को अपनी कार के पास बुलाया, लेकिन ताकेतोमी ने उसे अपनी कार से टक्कर मार दी।
धर्म और नैतिकता पर प्रभाव:
धर्म की साख पर दाग:
- धार्मिक संगठनों का उद्देश्य समाज में नैतिकता और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देना होता है। लेकिन जब ऐसे संगठन और उनके नेता स्वयं आपराधिक गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं, तो यह समाज के लिए एक बड़ा झटका होता है।
- इन घटनाओं ने निचिरेन शोशू की प्रतिष्ठा को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया है और उनके अनुयायियों के विश्वास को कमजोर किया है।
नाबालिगों की सुरक्षा पर खतरा:
- इन घटनाओं से नाबालिगों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। धार्मिक पद पर बैठे लोगों द्वारा ऐसा आचरण बेहद निंदनीय है और यह समाज के कमजोर वर्गों के लिए खतरे की घंटी है।
धार्मिक संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी:
- इन मामलों से पता चलता है कि ऐसे धार्मिक संस्थानों में पारदर्शिता और निगरानी का अभाव है। उनके सदस्यों की गतिविधियों पर नजर रखने और जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
समाधान और दृष्टिकोण:
कानूनी सख्ती:
- ऐसे मामलों में अपराधियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए और उन्हें किसी भी प्रकार की विशेष छूट नहीं दी जानी चाहिए, चाहे वे किसी भी धार्मिक पद पर हों।
धार्मिक सुधार:
- धार्मिक संस्थानों को अपनी गतिविधियों की पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए और अपने सदस्यों के नैतिक आचरण की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
समाज में जागरूकता:
- नाबालिगों और उनके अभिभावकों को उनके अधिकारों और सुरक्षा के बारे में जागरूक करना चाहिए, ताकि वे शोषण का शिकार न हों।
प्रमुख बिंदु:
धर्म की आड़ में गलत गतिविधियां:
ऐसे मामले दर्शाते हैं कि कुछ धार्मिक संगठनों या उनके सदस्यों द्वारा अपने पद और प्रतिष्ठा का दुरुपयोग किया जा सकता है। यदि धार्मिक नेता या पुजारी नाबालिगों के साथ अभद्र आचरण जैसे गंभीर अपराध करते हैं, तो यह धार्मिक संस्थाओं की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल खड़े करता है।फर्जी कल्याणकारी गतिविधियां:
दक्षिण कोरिया में फर्जी मंदिरों के निर्माण और धर्म के नाम पर आर्थिक या सामाजिक शोषण का आरोप, इस बात को उजागर करता है कि कैसे कुछ लोग धर्म को अपने स्वार्थों के लिए उपयोग करते हैं। यह न केवल धार्मिक संस्थाओं की साख को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि उन लोगों को भी प्रभावित करता है, जो सही मार्गदर्शन की तलाश में होते हैं।नाबालिगों की सुरक्षा:
ऐसे मामलों में नाबालिगों की सुरक्षा और उनके अधिकार सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। यह दर्शाता है कि समाज में मजबूत कानूनी और सामाजिक सुरक्षा तंत्र की आवश्यकता है, ताकि कमजोर वर्गों को शोषण से बचाया जा सके।
व्यापक प्रभाव:
- इन घटनाओं से धार्मिक संस्थानों की साख पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और अनुयायियों के विश्वास में कमी आती है।
- इससे समाज में धर्म और नैतिकता की छवि धूमिल होती है।
- न्याय व्यवस्था और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सक्रियता पर भी सवाल उठता है, खासकर जब ऐसी घटनाएं सार्वजनिक रूप से सामने आती हैं।
समाधान और दृष्टिकोण:
पारदर्शिता और निगरानी:
धार्मिक संगठनों की गतिविधियों की नियमित निगरानी और उनके आर्थिक लेनदेन में पारदर्शिता लाना आवश्यक है।कानूनी सख्ती:
ऐसे अपराधों के लिए सख्त कानून और उनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए।शिक्षा और जागरूकता:
समाज में बच्चों और अभिभावकों को उनके अधिकारों और सुरक्षा के बारे में जागरूक करना चाहिए।धार्मिक सुधार:
धार्मिक संस्थानों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और अपने सदस्यों की गतिविधियों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
निष्कर्ष:
निचिरेन शोशू संप्रदाय और इसके सदस्यों से जुड़े ये आपराधिक मामले न केवल उस संप्रदाय की साख को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि समाज में धर्म की भूमिका और नैतिकता की धारणा को भी कमजोर करते हैं। धार्मिक संस्थानों को अपने सदस्यों के आचरण पर नियंत्रण रखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी गतिविधियाँ समाज के लिए अनुकरणीय हों।
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