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    संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) ने वक्फ संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है, विवादित संपत्ति वक्फ की नहीं हो सकती

    संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) ने वक्फ संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है, विवादित संपत्ति वक्फ की नहीं हो सकती






    We News 24 Hindi / विवेक श्रीवास्तव 


    नई दिल्ली :- वक्फ संशोधन विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) द्वारा की गई सिफारिशें और संशोधन एक महत्वपूर्ण कानूनी और प्रशासनिक बदलाव की ओर इशारा करते हैं। इस विधेयक में किए गए संशोधनों का मुख्य उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता लाना है। आइए इस पर चर्चा करें:



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    मुख्य संशोधन और उनके प्रभाव:

    1. वक्फ संपत्तियों की जानकारी वेबसाइट पर अपलोड करना:
      वक्फ संपत्तियों की जानकारी छह महीने के भीतर सार्वजनिक पोर्टल पर डालना अनिवार्य होगा। यह संशोधन पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा और वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने में मदद करेगा।

    2. मुतवल्ली के अधिकार में बदलाव:
      मुतवल्ली को वक्फ न्यायाधिकरण की संतुष्टि के आधार पर अपनी अवधि बढ़ाने का अधिकार मिलेगा। इससे प्रबंधन में न्यायाधिकरण का नियंत्रण बढ़ेगा, जिससे संभावित गड़बड़ियों पर लगाम लगाई जा सकेगी।

    3. मुस्लिम कानून का ज्ञान रखने वाले व्यक्ति की नियुक्ति:
      न्यायाधिकरण में मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र का ज्ञान रखने वाले व्यक्ति को सदस्य के रूप में शामिल करना सुनिश्चित करेगा कि निर्णय इस्लामी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर किए जाएं।

    4. कलेक्टर की भूमिका:
      राज्य सरकार अब कलेक्टर या कलेक्टर से ऊपर के अधिकारियों को वक्फ संपत्तियों की जांच के लिए नामित कर सकती है।


    5. विवाद: मुस्लिम संगठनों ने कलेक्टर को अधिकार देने पर सवाल उठाए हैं, क्योंकि कलेक्टर राजस्व रिकॉर्ड के प्रमुख होते हैं और यह निर्णय पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो सकता है। हालांकि, सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि कलेक्टर का निर्णय अंतिम नहीं होगा और उच्च अधिकारियों का भी हस्तक्षेप रहेगा।

    6. इस्लाम का पालन करने की शर्त:
      वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि वह पिछले पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहा है। यह नियम वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए लाया गया है।

    7. वक्फ ट्रिब्यूनल में तीन सदस्य:
      वक्फ ट्रिब्यूनल में इस्लामी विद्वान को शामिल करना, न्यायिक प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्रासंगिक बनाएगा।

    8. विवादित संपत्ति वक्फ नहीं हो सकती:
      कोई भी विवादित संपत्ति वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित नहीं की जा सकती। इससे यह सुनिश्चित होगा कि वक्फ बोर्ड को केवल कानूनी रूप से विवाद मुक्त संपत्तियों का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी दी जाए।

    9. वक्फ बोर्ड काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्य:
      काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल करने का उद्देश्य बोर्ड के कामकाज में विविधता और निष्पक्षता लाना है।



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    सकारात्मक पहलू:

    1. पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।
    2. प्रशासनिक सुधार से वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन होगा।
    3. कलेक्टर और उच्च अधिकारियों की भूमिका से जांच में निष्पक्षता आएगी।
    4. इस्लामी कानून का ज्ञान रखने वाले व्यक्ति की नियुक्ति निर्णय प्रक्रिया को प्रासंगिक बनाएगी।

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    चुनौतियां और चिंताएं:

    1. कलेक्टर को अधिकार देना:
      मुस्लिम संगठनों की यह चिंता वाजिब है कि कलेक्टर के अधिकार पूर्वाग्रहपूर्ण हो सकते हैं। हालांकि, सरकार द्वारा कलेक्टर के ऊपर के अधिकारियों को शामिल करने का प्रावधान इसे कुछ हद तक संतुलित करता है।

    2. इस्लाम का पालन साबित करने की शर्त:
      यह प्रावधान कानूनी जटिलताओं को जन्म दे सकता है, क्योंकि यह साबित करना कठिन हो सकता है कि कोई व्यक्ति पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहा है।

    3. गैर-मुस्लिम सदस्यों की भागीदारी:
      वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल करना एक विवादास्पद कदम हो सकता है, क्योंकि यह धार्मिक स्वायत्तता के मुद्दों को जन्म दे सकता है।


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    निष्कर्ष:

    वक्फ संशोधन विधेयक पारदर्शिता और जवाबदेही लाने का एक प्रयास है, लेकिन इसे लागू करते समय संभावित विवादों और चिंताओं को दूर करना आवश्यक है। कलेक्टर की भूमिका और इस्लाम के पालन की शर्त जैसे प्रावधानों को लागू करते समय सरकार को बेहद सतर्क रहना होगा।

    आप इस विधेयक और इसके प्रावधानों पर क्या राय रखते हैं? क्या आपको लगता है कि ये संशोधन वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार लाने के लिए पर्याप्त हैं? 

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