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    "‘हर घर जल’ से ‘हर घर टैंकर’ तक – दिल्ली की जल-त्रासदी पर एक पत्रकार की बेबाक कविता"

    कविता: "पानी-पानी है दिल्ली – सरकार की कहानी" –



    दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

    पानी की बूँदें अब सवाल पूछती हैं,

    टपकती छतों से, उम्मीदें रूठती हैं।


    नल सूखे हैं, पर नेता के भाषण बहते हैं,

    हर वादे में सपने सस्ते ही रहते हैं।


    हालत ये है, ना लाइन है,

    ना पानी आने का वक्त तय है।


    छत्तरपुर का हर घर था 'जलयुक्त' सपना,

    पर नेता करतार जी का वादा निकला बस अपना।


    कहते थे – "हर घर में साफ पानी देंगे,"

    आज हालत ये – टैंकर तक नहीं मिलेंगे।


    करतार सिंह ने मंच से किया था पानी देने का वादा,

    पर वो पानी अब बह रहा है अवैध फ्लैटों के रास्ता।


    अवैध निर्माण में बहती है धार,

    जनता के हिस्से में बस रह गया पानी का इंतज़ार।


    छत्तरपुर के पक्के मकानों के नल हैं वीरान,

    पर नए अवैध फ्लैटों में है जल की शान।


    पक्के मकानों में नल हैं सूखे,

    बिलखते बुज़ुर्ग, बच्चे भूखे।


    लोगों के घरों में है पानी का अकाल,

    अवैध फ्लैटों में है जल का साम्राज्य।


    जल बोर्ड के एक्शन, जेई, एई सब है चुप,

    हर बार कहते हैं, "बजट नहीं है।"


    दिल्ली सरकार कहती – "हमसे गलती नहीं,"

    फिर भी हर गलती की सजा जनता को ही सहनी!


    पानी के टैंकर आए, रिश्वत के संग,

    प्यासे लोग देखें – ये कैसा है रंग?


    छत्तरपुर की गलियों में नमी नहीं रही,

    सिर्फ कागज़ों में 'नीति' सजी रही।


    जनता पूछे – "वो वादा किया वो गया कहाँ?"

    नेता जी बोले – "अभी बजट तो आया ही कहाँ!"


    न्याय नहीं, बस प्रेस कॉन्फ्रेंसों की कहानी,

    "पानी-पानी है दिल्ली" – यही है असली राजधानी।



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