कोलेजियम या कनेक्शन? जानिए कैसे कुछ परिवारों ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को ‘अपना’ बना लिया"
"क्या भारत की सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में केवल गिने-चुने परिवारों का ही वर्चस्व है? जानिए 53 परिवारों के प्रभुत्व, कोलेजियम सिस्टम की आलोचना, और न्यायिक पारदर्शिता की मांग पर आधारित विस्तार से रिपोर्ट।"
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📝 लेखक : दीपक कुमार सीनियर पत्रकार
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भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में न्यायपालिका को 'न्याय का मंदिर' माना जाता है, लेकिन क्या हो अगर उस मंदिर में सिर्फ कुछ ही परिवारों का राज हो? हाल ही में आई रिपोर्ट्स और RTI से ये खुलासा हुआ है कि भारत की सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जज बनने वाले अधिकांश लोग सिर्फ 53 परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। यह सवाल उठाता है — क्या भारतीय न्यायपालिका भी परिवारवाद की गिरफ्त में है?
आंकड़ों के साथ हकीकत: सिर्फ 53 परिवार क्यों?
एक स्वतंत्र RTI एक्टिविस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2022 के बीच भारत के सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट्स में नियुक्त जजों में से 40% से ज्यादा जज ऐसे थे जिनके परिवार पहले से ही न्यायिक या कानूनी क्षेत्र में थे।
केस स्टडी:2018 में, इलाहाबाद HC के एक वरिष्ठ वकील ने RTI दायर कर पूछा कि क्यों 80% नियुक्तियाँ केवल 15 लॉ फैमिलीज से होती हैं? जवाब में मिला – "यह जानकारी गोपनीय है।"
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उदाहरण:
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ – पिता: यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (पूर्व CJI)
जस्टिस इंदिरा बनर्जी – बंगाल के नामी वकील परिवार से
जस्टिस रोहिंटन नरीमन – प्रसिद्ध सीनियर एडवोकेट फिरोज नरीमन के बेटे
जस्टिस संजीव खन्ना (भाई: पूर्व जस्टिस जे.एस. खन्ना)
जस्टिस हृषिकेश रॉय (पुत्र: गुवाहाटी HC जज)
📚 एक रिपोर्ट Vidhi Centre for Legal Policy की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार: 65% हाई कोर्ट जजों के परिवार में कोई न कोई वरिष्ठ वकील/जज रहा 78% सुप्रीम कोर्ट जजों के बच्चे/रिश्तेदार बड़ी लॉ फर्म्स में
न्यायपालिका में परिवारवाद की प्रवृत्ति को एक 'systemic bias' माना जा सकता है। इस बायस के चलते नया टैलेंट, जो छोटे शहरों या साधारण पृष्ठभूमि से आता है, न्यायिक सिस्टम में घुस नहीं पाता।"
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सामान्य वर्ग के वकीलों की चुनौतियाँ
दिल्ली HC के एक वरिष्ठ अधिवक्ता (नाम न छापने की शर्त पर) बताते हैं:
"मैंने NLU से गोल्ड मेडल जीता, लेकिन HC जज बनने के लिए 12 साल लगे। जबकि मेरे सहपाठी (एक पूर्व CJI के भतीजे) को 5 वर्ष में ही पद मिल गया।"
अवसर असमानता के कारण:
बड़े केसों तक पहुँच न मिलना मेंटरशिप का अभाव जजों के सामने पेश होने के कम मौके
1. कोलेजियम सिस्टम (Collegium System):
भारत में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति कोलेजियम सिस्टम के तहत होती है, जहाँ सीनियर जज खुद ही नए जजों की सिफारिश करते हैं। इसमें पारदर्शिता की कमी के कारण सिफारिशें अक्सर जान-पहचान या प्रतिष्ठित कानूनी परिवारों से आने वाले लोगों तक सीमित रह जाती हैं।
2. लीगल नेटवर्क और एक्सपोज़र:
जो परिवार पहले से ही न्यायपालिका या वकालत में हैं, उनके बच्चों को शुरुआत से ही सही मार्गदर्शन, अनुभव, और संपर्क मिलते हैं। इससे उन्हें आसानी से न्यायिक करियर में आगे बढ़ने का मौका मिल जाता है।
3. अप्रोच और अवसर की असमानता:
ग्रामीण क्षेत्रों या साधारण परिवारों से आने वाले होनहार वकीलों को अक्सर बड़े केस, बड़े मंच या प्रभावशाली जजों तक पहुंच नहीं मिल पाती, जिससे उनकी प्रतिभा होते हुए भी उन्हें न्यायपालिका में जगह नहीं मिलती।
4. राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव:
कई बार राजनीतिक या सामाजिक प्रभाव वाले परिवारों के सदस्य भी जज बन जाते हैं, क्योंकि उनके पास वह "सिस्टम" को प्रभावित करने की ताकत होती है।
आंकड़े और उदाहरण:
कई RTI और रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि सुप्रीम कोर्ट के अनेक जजों के पिता, ससुर, या रिश्तेदार पहले से हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में किसी न किसी पद पर रह चुके हैं। जैसे
कोलेजियम सिस्टम पर सवाल
कोई पारदर्शिता नहीं
कोई जवाबदेही नहीं
इंटरव्यू या स्कोरकार्ड जैसा कोई आधार नहीं
समाधान: अब क्या किया जाए?
NJAC (National Judicial Appointments Commission) को दोबारा लागू करने पर चर्चा न्यायिक ट्रेनिंग के लिए ज्यादा सरकारी स्कॉलरशिप और इंटर्नशिप
📢 निष्कर्ष (Conclusion):
जब तक न्यायपालिका में पारदर्शिता और बराबरी नहीं होगी, तब तक ‘न्याय’ सिर्फ एक विशेषाधिकार बना रहेगा। परिवारवाद को खत्म करने के लिए सिस्टम को खुद सुधार की ज़रूरत है – ताकि हर होनहार व्यक्ति को मौका मिले, न कि सिर्फ 'हाई प्रोफाइल सरनेम' वालों को।
**Disclaimer**: यह लेख सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रिपोर्ट्स, RTI और विशेषज्ञ राय पर आधारित है। इसका उद्देश्य भारत की न्यायिक प्रणाली में सुधार और पारदर्शिता की आवश्यकता पर जनचर्चा को बढ़ावा देना है। यह किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं है।
📢 पाठकों से अपील:
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