बलूचिस्तान की आज़ादी अब दूर नहीं? बलूच नेता का दावा - पाक सेना 70% इलाकों से खदेड़ी गई
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🆆🅴🅽🅴🆆🆂 24 ब्यूरो रिपोर्ट
वाशिंगटन/क्वेटा।बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना की स्थिति दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है — यह दावा किया है बलूच अमेरिकी कांग्रेस के महासचिव रज्जाक बलूच ने। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि आज बलूचिस्तान का 70-80 प्रतिशत क्षेत्र पाक सेना के लिए निषिद्ध हो चुका है। उन्होंने भारत और अमेरिका से अपील की है कि यदि वे बलूच स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करें, तो बलूचिस्तान की आज़ादी की घोषणा जल्द ही संभव है।
शाम 5 बजे के बाद पाक सेना क्वेटा से बाहर नहीं निकलती: रज्जाक बलूच
रज्जाक बलूच ने दावा किया कि बलूचिस्तान के हालात इतने बदल चुके हैं कि पाकिस्तानी सेना अब शाम 5 बजे के बाद क्वेटा से बाहर निकलने में भी डरती है। उन्होंने कहा,
“शाम पांच बजे से सुबह पांच बजे तक सेना सड़कें खाली कर देती है। चौनी और क्वेटा जैसे इलाकों में भी उन्हें अब चुनौती दी जा रही है।”
उन्होंने यह भी कहा कि बलूच नेता मारंग बलूच अब भी जेल में हैं और पूरे बलूचिस्तान में बड़े पैमाने पर जनविरोध और प्रदर्शन जारी हैं।
भारत से मांगा खुला समर्थन, कहा- अब नहीं तो कभी नहीं
बलूच नेता ने खास तौर पर भारत से समर्थन की अपील करते हुए कहा:
"अगर भारत बलूचिस्तान की आजादी का समर्थन करता है, तो बलूचिस्तान के दरवाजे भारत के लिए खुल जाएंगे।"
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि लोकतंत्र समर्थक देश विलंब करते हैं, तो इससे "बर्बर पाकिस्तानी सेना" को बल मिलेगा, जिसका असर पूरे दक्षिण एशिया पर पड़ेगा।
सरदार अख्तर मेंगल जैसे नेताओं की कोशिशों को सराहा
रज्जाक बलूच ने बलूचिस्तान में सक्रिय राजनीतिक नेताओं जैसे सरदार अख्तर मेंगल के प्रयासों की सराहना की, लेकिन यह भी जोड़ा कि सिर्फ भीतरूनी संघर्ष से पाकिस्तान की सैन्य पकड़ कमजोर नहीं की जा सकती। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप और समर्थन की आवश्यकता है।
बलूचिस्तान: एक नया बांग्लादेश बनने की ओर?
रज्जाक बलूच का सबसे बड़ा दावा यह रहा कि
"पाकिस्तानी सेना को उसी तरह खदेड़ना होगा जैसे 1971 में बांग्लादेश में हुआ था। इससे पहले कि हालात और बिगड़ें, बेहतर होगा कि पाकिस्तानी सेना खुद गरिमा के साथ पीछे हट जाए।”
लोकतंत्र समर्थक देशों से अपील: बलूच प्रतिनिधियों को मान्यता दें
बलूच नेता ने अमेरिका, यूरोपीय देशों और भारत से अपील की कि वे बलूच प्रतिनिधियों की सार्वजनिक स्तर पर मेजबानी करें, और इस संघर्ष को एक लोकतांत्रिक स्वतंत्रता आंदोलन के रूप में मान्यता दें।
बलूचिस्तान की आज़ादी अब महज़ सपना नहीं
बलूचिस्तान की स्थिति अब केवल मानवाधिकार संकट नहीं रही, बल्कि यह एक अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक अवसर बन चुका है। यदि भारत और अन्य लोकतांत्रिक शक्तियाँ समय रहते आगे बढ़ती हैं, तो बलूचिस्तान दूसरा बांग्लादेश बन सकता है।
📌 नोट:
यह लेख स्वतंत्र पत्रकारिता और मानवाधिकार समर्थन के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें प्रस्तुत विचार बलूच प्रतिनिधियों के हैं। किसी भी समुदाय, देश या संगठन के खिलाफ घृणा फैलाना इसका उद्देश्य नहीं है।
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