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    रोहिंग्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: "देश मुश्किल दौर से गुजर रहा है और आप काल्पनिक याचिकाएं ला रहे हैं"

    रोहिंग्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: "देश मुश्किल दौर से गुजर रहा है और आप काल्पनिक याचिकाएं ला रहे हैं"


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    🆆🅴🅽🅴🆆🆂 24 रिपोर्टिंग बाय ,गौतम कुमार  


    नई दिल्ली, :- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को रोहिंग्या शरणार्थियों को कथित तौर पर जबरन म्यांमार वापस भेजे जाने और उन्हें समुद्र में छोड़ने के आरोपों को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर कड़ी नाराज़गी जताई। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “जब देश कठिन दौर से गुजर रहा है, ऐसे में इस तरह की काल्पनिक कहानियों पर आधारित याचिकाएं दाखिल करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।”


    क्या था मामला?

    वरिष्ठ वकील कोलिन गोंसाल्विस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर यह दावा किया कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत सरकार जबरन म्यांमार के युद्ध क्षेत्र (War Zone) में निर्वासित कर रही है। उन्होंने कहा कि कई रोहिंग्या नागरिकों को समुद्र में छोड़ दिया गया है, जिससे उनकी जान को खतरा है।



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    कोर्ट ने कहा – "यह कहानी है या सबूत?"

    सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने बेहद सख्त रुख अपनाते हुए याचिकाकर्ता से सवाल किया –

    “क्या आपके पास इन गंभीर आरोपों का कोई प्रमाण है? हर बार आपके पास एक नई कहानी होती है। फोटो-वीडियो कौन ले रहा है, वह वापस कैसे आया, यह जानकारी कहां है?”

    कोर्ट ने याचिका को "कहानीनुमा" बताते हुए कहा कि इस तरह की याचिकाएं देश की संप्रभुता और कानूनी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती हैं।


    ‘फोन म्यांमार से आया’— इस दावे पर भी उठे सवाल

    वकील गोंसाल्विस ने दावा किया कि याचिकाकर्ता को म्यांमार से उसके किसी रिश्तेदार ने फोन कर पूरी जानकारी दी थी। इस पर कोर्ट ने पलटकर सवाल किया:

    “किसने जांचा कि फोन म्यांमार से ही आया था? आज के समय में साइबर अपराधी झारखंड से फोन करते हैं और नंबर दुबई का दिखता है।”


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    अंतरिम रोक लगाने से इंकार

    कोर्ट ने फिलहाल रोहिंग्याओं को निर्वासित करने पर अंतरिम रोक लगाने की मांग को ठुकरा दिया। साथ ही यह निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता अगर वास्तव में कोई साक्ष्य रखता है, तो वह उसे भारत के अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल के कार्यालय में प्रस्तुत करे।


    यूएन रिपोर्टों पर कोर्ट का रुख

    जब वकील ने संयुक्त राष्ट्र (UN) की रिपोर्टों का हवाला देना चाहा तो कोर्ट ने कहा कि जब यह मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष जाएगा, तब इन रिपोर्टों को देखा जाएगा। अभी के लिए सिर्फ ठोस भारतीय कानूनी साक्ष्य ही मान्य हैं।


    लंबित याचिका के साथ किया गया मर्ज

    सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका रोहिंग्याओं से संबंधित पहले से लंबित मामलों के साथ जोड़ दी है और इसे तीन सदस्यीय पीठ के सामने सुनवाई के लिए भेज दिया गया है।


    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह स्पष्ट रुख एक अहम संदेश देता है कि भारत की न्यायपालिका बिना प्रमाण किसी भी अंतरराष्ट्रीय संवेदनशील मुद्दे पर कोई राय या आदेश नहीं देती। जनहित याचिकाओं का उद्देश्य समाज के लिए न्याय मांगना होना चाहिए, न कि भावनात्मक कहानियों के ज़रिए कोर्ट पर दबाव बनाना। 

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