भारत कोई धर्मशाला नहीं है- सुप्रीम कोर्ट ने तमिल शरणार्थी को फटकार लगाई, निर्वासन रोकने की याचिका खारिज की
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🆆🅴🅽🅴🆆🆂 24 डिजिटल डेस्क
अपडेट: 17 मई 2025 | 🖊 लेखक: काजल कुमारी |
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए स्पष्ट कर दिया कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां पूरी दुनिया के शरणार्थियों को जगह दी जाए। यह टिप्पणी उस याचिका को खारिज करते हुए की गई जिसमें एक श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी ने अपनी सजा पूरी होने के बाद भारत से निर्वासन के आदेश को चुनौती दी थी।
क्या है मामला?
याचिकाकर्ता को 2015 में यूएपीए (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया था। आरोप था कि वह LTTE से जुड़ा हुआ था। ट्रायल कोर्ट ने उसे 10 साल की सजा सुनाई, जिसे बाद में मद्रास हाईकोर्ट ने घटाकर तीन साल कर दिया। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सजा पूरी होने के बाद उसे भारत छोड़ना होगा।
वहीं, याचिकाकर्ता के वकील का तर्क था कि वह एक शरणार्थी है, और अगर उसे श्रीलंका भेजा गया तो उसकी जान को खतरा है। उसका परिवार – पत्नी और बेटा – भी भारत में हैं और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं।
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सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख:
"क्या भारत दुनिया भर के शरणार्थियों को शरण देने के लिए है?"
सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा:
"भारत कोई धर्मशाला नहीं है जहां हम हर जगह से आए विदेशी नागरिकों को शरण दें। हम पहले से ही 140 करोड़ की आबादी से जूझ रहे हैं।"
न्यायमूर्ति दत्ता ने साफ कहा कि अनुच्छेद 19 के तहत भारत में बसने का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता को अपने देश में जान का खतरा है, तो वह किसी तीसरे देश में जा सकता है।
शरणार्थियों को लेकर भारत की नीति पर बड़ा संकेत
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत सरकार और न्यायपालिका अब शरणार्थी नीति को लेकर ज्यादा सख्ती बरतने को तैयार हैं। खासकर जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा, UAPA और आतंकवादी संगठनों से संबंध का हो।
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मुख्य बातें (Key Takeaways)
- श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी की निर्वासन पर रोक की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की।
- कोर्ट ने कहा: भारत कोई धर्मशाला नहीं है।
- याचिकाकर्ता 2015 में LTTE से संबंध के शक में गिरफ्तार हुआ था।
- कोर्ट ने कहा, भारत में बसने का अधिकार केवल भारतीयों को है।
- परिवार की बीमारी या जान के खतरे के आधार पर राहत नहीं दी जा सकती।
समाप्ति टिप्पणी
इस फैसले ने भारत की शरणार्थी नीति की दिशा को स्पष्ट कर दिया है – अब मानवीय आधार से ज्यादा कानूनी और सुरक्षा पहलुओं को तरजीह दी जाएगी। यह एक बड़ा संकेत है कि अब राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी नागरिक को सिर्फ भावनात्मक आधार पर भारत में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
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