🛑 'महाकुंभ में भी तो 50-60 लोग मरे थे': बेंगलुरु भगदड़ पर सीएम सिद्धारमैया का विवादित बयान, उठे सवाल
✍️ रिपोर्ट: अजित कुमार गौड़, We News 24
बेंगलुरु। 5 जून 2025 :- 4 जून को रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) की जीत के जश्न में जो उत्सव होना था, वह अब मातम में बदल चुका है। चिन्नास्वामी स्टेडियम में मची भगदड़ ने अब तक 11 लोगों की जान ले ली है, जबकि 33 घायल अस्पतालों में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। इस दर्दनाक हादसे के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं, और पूरे देश में इस पर गहरा शोक व्यक्त किया जा रहा है।
लेकिन इसी बीच कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का एक बयान गहरी राजनीतिक और सामाजिक बहस का कारण बन गया है।
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🗣️ CM सिद्धारमैया ने भगदड़ पर क्या कहा?
मीडिया द्वारा जब इस हादसे पर सवाल पूछे गए तो CM सिद्धारमैया ने चौंकाने वाला जवाब दिया:
“ऐसी घटनाएं कई जगह होती हैं, कुंभ मेले में भी तो 50-60 लोग मर गए थे। उस समय हमने कोई आलोचना नहीं की।”
इस बयान के बाद न सिर्फ राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है बल्कि सोशल मीडिया पर भी लोग इसे "संवेदनहीनता" की मिसाल बता रहे हैं।
⚠️ कौन है जिम्मेदार? सरकार या क्रिकेट एसोसिएशन?
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस हादसे की जिम्मेदारी सरकार पर आने से साफ इनकार करते हुए कहा कि,
“क्रिकेट एसोसिएशन ने स्टेडियम का कार्यक्रम आयोजित किया था। हमें इसकी जानकारी नहीं दी गई थी। विधानसभा के सामने जो कार्यक्रम हुआ वह पूरी तरह शांतिपूर्वक हुआ।”
सरकार ने हादसे की पूरी जिम्मेदारी क्रिकेट एसोसिएशन और RCB पर डाल दी है, जबकि विपक्ष ने इसे सरकारी नाकामी और सुरक्षा चूक करार दिया है।
🎤 विपक्ष का तीखा हमला: "बयान शर्मनाक"
BJP और अन्य विपक्षी नेताओं ने CM के बयान को "संवेदना की हत्या" करार दिया है।
कर्नाटक BJP अध्यक्ष ने कहा:
"जब लोग अपनों की लाशों के सामने टूट रहे हैं, तब मुख्यमंत्री तुलना कर रहे हैं महाकुंभ से? क्या यही है संवेदनशीलता?"
📷 हादसे की भयावह तस्वीरें
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा गया कि भारी भीड़ के कारण लोग गिरते-पड़ते कुचले जा रहे थे।
आरसीबी की जीत के बाद जो "विक्ट्री परेड" एक जश्न बननी थी, वह प्रशासनिक लापरवाही के कारण त्रासदी में बदल गई।
🕯️ निष्कर्ष: क्या यह सिर्फ हादसा था या सिस्टम की विफलता?
प्रश्न अब सिर्फ हादसे का नहीं है, बल्कि उस मानसिकता का है, जो इसे सामान्य बताकर तुलना में तर्क खोजती है।
क्या एक जनप्रतिनिधि से संवेदना की उम्मीद करना भी अब "राजनीति" हो गया है?
जब लोकतंत्र के सर्वोच्च पद पर बैठा व्यक्ति ऐसी घटनाओं की तुलना कर गंभीरता को हल्का बना दे, तो सवाल उठते ही हैं — क्या हमारी संवेदना भी भीड़ में कुचल गई है?
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