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    "शिक्षक विवेक जोशी का अनशन का आठवाँ दिन : क्या बच्चों की पढ़ाई के लिए भी अब बलिदान जरूरी है?"

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    नई दिल्ली :- दिल्ली के सबसे संवेदनशील और चर्चित क्षेत्रों में से एक – महरौली। जहां कभी देश की राजधानी का इतिहास लिखा गया था, आज वहां एक शिक्षक इतिहास दोहराने की कोशिश कर रहा है – लेकिन इस बार कलम से नहीं, भूख से।

    शिक्षक विवेक जोशी, एक नाम जो न तो किसी दल का एजेंट है, न किसी संगठन का प्रवक्ता। वे बस एक संवेदनशील शिक्षक, एक जागरूक नागरिक और एक जिम्मेदार समाजसेवी हैं, जो आठवें दिन भी पेड़ के नीचे इस भीषण गर्मी में अनशन पर बैठे हैं। उनका दोष क्या है? सिर्फ इतना कि वो 1500 बच्चों के लिए पक्की छत, टॉयलेट और बुनियादी शिक्षा की मांग कर रहे हैं।



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    ❓ क्या इतनी बड़ी है ये मांग?

    • क्या बच्चों के लिए पक्के क्लासरूम माँगना गुनाह है?

    • क्या बच्चों को शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा देना संविधान का उल्लंघन है?

    • क्या कंप्यूटर शिक्षा 21वीं सदी की कल्पना नहीं, ज़रूरत है?

    तो फिर विवेक जोशी की ये माँग "अनदेखी" क्यों हो रही है?


    🏫 स्कूल की हालत – राजधानी में ऐसा?

    • 1500 बच्चे,

    • सिर्फ 6 टॉयलेट,

    • 1 कंप्यूटर,

    • टीन की छत,

    • गर्मी में आग जैसी तपिश,

    • बारिश में जान का खतरा

    जिस दिल्ली में नेताओं के लिए वातानुकूलित वाहन और कार्यालय हैं, वहां बच्चे पसीने और धूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।



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    🏛️ सवाल कानून व्यवस्था पर भी है

    जब स्कूल के बगल में रेस्टोरेंट, बार, पब और शोरूम ASI के नियमों के खिलाफ नहीं हैं, तो फिर स्कूल क्यों रोक दिया गया?

    क्या भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की मंजूरी सिर्फ वाणिज्यिक भवनों के लिए खुली है, बच्चों की शिक्षा के लिए नहीं?


    🧑‍⚖️ कानून अंधा है या हम?

    जब कानून, समाज के सबसे जरूरतमंद वर्ग की आवाज़ को नहीं सुनता, तो वह 'न्याय' नहीं, 'नियंत्रण' बन जाता है।
    कभी-कभी लगता है कि हमारा कानून अंधा ही नहीं, बहरा भी हो गया है।


    📣 सवाल जनप्रतिनिधियों से भी है

    • क्या स्थानीय पार्षद को स्कूल की हालत की खबर नहीं है?

    • क्या विधायक ने कभी दौरा किया है?

    • क्या सांसद ने इस विषय को संसद में उठाया है?

    महरौली के बच्चे किससे उम्मीद करें?


    🤝 स्थानीय लोगों की चुप्पी – एक चिंता

    विवेक जोशी अकेले हैं, पर क्या उनका मुद्दा अकेला है?
    यह लड़ाई सिर्फ उनके लिए नहीं, पूरे समाज के लिए है।
    यदि स्थानीय लोग, अभिभावक, सामाजिक संगठन, शिक्षक और बुद्धिजीवी वर्ग उनके साथ खड़े नहीं होंगे, तो यह एक अन्याय के प्रति सामूहिक चुप्पी होगी।


    🔥 वी न्यूज 24 की सीधी बात:

    जब एक शिक्षक को अनशन पर बैठना पड़े, वो भी दिल्ली जैसे शहर में, तब यह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का आइना है — और वह आइना आज बहुत ही धुंधला है।

    विवेक जोशी की मांग कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21A – “शिक्षा का अधिकार” – की पुकार है।


    🛑 अब देर नहीं…

    यदि प्रशासनMCDविधायकसांसदशिक्षा विभाग और जनता – सभी विवेक जोशी को अनसुना करते रहे, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ नहीं करेंगी।
    क्योंकि तब उन्हें सिखाना पड़ेगा कि इस देश में शिक्षा मांगने पर भूखा रहना पड़ता है।


    (लेखक दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार हैं और शिक्षा, नागरिक अधिकार और सामाजिक न्याय से जुड़े विषयों पर गहरी पकड़ रखते हैं।) 

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