"आपातकाल के 50 वर्ष: मीसा, डीआईआर कानून जिसने लोकतंत्र का गला घोंटा और एक लाख से अधिक नागरिकों को जेल में डाला
✒️ कैसे शुरू हुआ यह अंधकार युग?
ये भी पढ़े-याद रखें आपातकाल का वो 50 साल – 25 जून 1975 के दिन भारत के लोकतंत्र पर मंडराए थे काले साए
🔌 सेंसरशिप और दमन की पहली रात
दिल्ली में रामलीला मैदान में जेपी आंदोलन की ऐतिहासिक रैली के ठीक बाद, इंदिरा सरकार ने देशभर में मीडिया का गला घोंटने की योजना को अंजाम दिया। दिल्ली के बहादुर शाह ज़फर मार्ग पर मौजूद तमाम अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई ताकि लोग न जान सकें कि देश में क्या चल रहा है। उसी रात संजय गांधी, ओम मेहता और आरके धवन द्वारा उन लोगों की लिस्ट तैयार की जा रही थी जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था – नेताओं से लेकर छात्रों और पत्रकारों तक।
⚖️ आपातकाल की जड़ें: एक अदालती फैसला
इस पूरे आपातकाल की बुनियाद एक अदालती निर्णय में थी। 1971 में लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने राजनारायण को हराया था। राजनारायण ने चुनाव में धांधली के आरोप लगाए और 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित करते हुए छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। बजाय इस्तीफा देने के, इंदिरा गांधी ने कोर्ट के फैसले को नकारते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील की और उसी रात देश को बंधक बना लिया गया।
🔒 लोकतंत्र का गला घोंटने वाले कानून
आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार ने संविधान के 42वें संशोधन के ज़रिए संसद को निरंकुश अधिकार दे दिए। धारा 352 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित, मीडिया पर सेंसरशिप, चुनाव स्थगित, और विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी की खुली छूट मिल गई।
🗞️ प्रेस की आज़ादी पर प्रहार
संजय गांधी के कहने पर वीसी शुक्ला को सूचना प्रसारण मंत्री बनाया गया, जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता को एक झटके में खत्म कर दिया। जो भी सरकार की आलोचना करता, उसे जेल में डाल दिया जाता। कई अखबारों ने विरोध में अपने संपादकीय कॉलम रिक्त छोड़ दिए – यह भारतीय पत्रकारिता के साहस का प्रतीक था।
👨👩👦 संजय गांधी का 'नया भारत'
ये भी पढ़े-सम्पादकीय: क्या भारत में हिंदुओं के विरुद्ध चल रही है सुनियोजित साजिश?
🏘️ तुर्कमान गेट – 'सुंदर भारत' के नाम पर बेघर
दिल्ली के तुर्कमान गेट की झुग्गियों को 'सौंदर्यीकरण' के नाम पर बुलडोज़ कर दिया गया। पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गए। यह विकास नहीं, क्रूरता थी – सत्ता का भयावह चेहरा।
🏛️ न्यायपालिका और संस्थाओं पर कब्ज़ा
सरकार ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को दबाने की पूरी कोशिश की। जस्टिस एचआर खन्ना, जिन्होंने ADM जबलपुर केस में नागरिक अधिकारों की बात की थी, उन्हें मुख्य न्यायाधीश न बनाकर एक जूनियर को पद दे दिया गया। यही वह समय था जब संविधान की मूल भावना को तोड़ने-मरोड़ने की खुली कोशिश हुई।
🗳️ जनता की ताकत और लोकतंत्र की जीत
आइये जानते है धारा 352 क्या है
धारा 352 संविधान के अंतर्गत राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त है कि यदि भारत सरकार को ऐसा विश्वास हो कि देश में या किसी भाग में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि देश का संपूर्ण या कोई भाग संविधान द्वारा स्थापित सरकार चलाने में कठिनाई हो रही है, तो वह राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर सकते हैं। इसे "राष्ट्रीय संकट" या "राष्ट्रीय आपातकाल" कहा जाता है।
प्रावधान का प्रमुख उद्देश्य:
- देश की संप्रभुता, अखंडता या सुरक्षा के खतरे के समय सरकार को अतिरिक्त शक्तियां देना।
- सरकार को यह अधिकार देना कि वह आवश्यकतानुसार स्वतंत्रता, अधिकार और शासन के सामान्य नियमों को स्थगित या संशोधित कर सके।
धारा 352 के मुख्य बिंदु:
आवश्यकता का आधार:
- यदि प्रधानमंत्री या केंद्रीय मंत्रिमंडल को विश्वास हो कि देश में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि सरकार का कार्य करना कठिन हो गया है।
- यह विश्वास राष्ट्रपति को सूचित किया जाता है। राष्ट्रपति यदि सहमत होते हैं, तो वे राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर सकते हैं।
राष्ट्रपति की घोषणा:
- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मंत्रिमंडल की सलाह पर, एक अधिसूचना के माध्यम से, देश या उसके किसी भाग पर आपातकाल घोषित कर सकते हैं।
- यह अधिसूचना संसद के अधीन होती है और संसद की मंजूरी के बिना अधिक समय तक नहीं रह सकती।
अधिभार और शक्तियों का विस्तार:
- आपातकालीन स्थिति में, राष्ट्रपति को अधिक शक्तियां मिल जाती हैं।
- सरकार को अधिकार होता है, नागरिक स्वतंत्रताओं को प्रतिबंधित करने, न्यायपालिका को नियंत्रित करने और सामान्य नियमों को स्थगित करने का।
संसद की मंजूरी:
- आपातकाल की अवधि अधिकतम 6 महीने की होती है।
- फिर भी, संसद की मंजूरी आवश्यक है, यदि आपातकाल को अधिक समय तक जारी रखना है।
आवश्यकता का आधार:
- यदि प्रधानमंत्री या केंद्रीय मंत्रिमंडल को विश्वास हो कि देश में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि सरकार का कार्य करना कठिन हो गया है।
- यह विश्वास राष्ट्रपति को सूचित किया जाता है। राष्ट्रपति यदि सहमत होते हैं, तो वे राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर सकते हैं।
राष्ट्रपति की घोषणा:
- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मंत्रिमंडल की सलाह पर, एक अधिसूचना के माध्यम से, देश या उसके किसी भाग पर आपातकाल घोषित कर सकते हैं।
- यह अधिसूचना संसद के अधीन होती है और संसद की मंजूरी के बिना अधिक समय तक नहीं रह सकती।
अधिभार और शक्तियों का विस्तार:
- आपातकालीन स्थिति में, राष्ट्रपति को अधिक शक्तियां मिल जाती हैं।
- सरकार को अधिकार होता है, नागरिक स्वतंत्रताओं को प्रतिबंधित करने, न्यायपालिका को नियंत्रित करने और सामान्य नियमों को स्थगित करने का।
संसद की मंजूरी:
- आपातकाल की अवधि अधिकतम 6 महीने की होती है।
- फिर भी, संसद की मंजूरी आवश्यक है, यदि आपातकाल को अधिक समय तक जारी रखना है।
संविधान में प्रावधान का महत्व:
- यह प्रावधान देश की रक्षा के लिए बनाया गया है ताकि जब देश को व्यापक खतरा हो, तो सरकार आवश्यक कदम उठा सके।
- परंतु, इसका दुरुपयोग भी हो सकता है, इसलिए इसे नियंत्रित रखने के लिए संविधान में कडे़ प्रावधान भी हैं।
सारांश:
विशेषता | विवरण |
---|---|
प्रावधान का नाम | धारा 352 (Article 352) |
उद्देश्य | राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता या अखंडता के खतरे के समय सरकार को शक्तियाँ देना |
आवश्यक तत्व | विश्वास कि देश में या किसी भाग में संकट है, जिसे सरकार का कार्य करना कठिन हो रहा है |
निर्णय लेने का प्राधिकारी | राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सलाह पर |
अवधि | अधिकतम 6 महीने (संसद की मंजूरी के साथ अधिक समय तक) |
संबंधित टिप्पणियाँ:
- भारत में आपातकाल की घोषणा का प्रयोग अक्सर विवादित रहा है, खासकर 1975 के आपातकाल के दौरान।
- यह संविधान के अंतर्गत बहुत ही गंभीर और आवश्यक प्रावधान है, जिसका सही उपयोग देश की सुरक्षा के लिए जरूरी है।
आपातकाल भारत के इतिहास का वह अध्याय है जिसे भूलना नहीं, याद रखना जरूरी है – बार-बार, ताकि हम यह न भूलें कि जब सत्ता बेलगाम हो जाए और जनता मौन – तब लोकतंत्र का दम घुटता है।
(लेखक दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार हैं और लोकतंत्र की रक्षा में सक्रिय जन-लेखन से जुड़े हुए हैं।)
📢 We News 24 / वी न्यूज 24
📲 वी न्यूज 24 को फॉलो करें और हर खबर से रहें अपडेट!
👉 ताज़ा खबरें, ग्राउंड रिपोर्टिंग, और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जुड़ें हमारे साथ।
कोई टिप्पणी नहीं
कोमेंट करनेके लिए धन्यवाद