🏗️ दिल्ली के लाल डोरा क्षेत्र में उगते अवैध फ्लैट्स, और पानी की चोरी: विकास या कानून की चुपके से हत्या ?
✍️ लेखक: वरिष्ठ दीपक कुमार,वी न्यूज 24
नई दिल्ली:- जहां कभी गांव था, वहां अब अवैध फ्लैट्स की कतार है. दिल्ली के वे लाल डोरा क्षेत्र, जहाँ कभी किसान की बैलगाड़ी की चरमराहट, बच्चों की किलकारियां और पेड़ों की छांव में गुजरती दोपहरें दिखती थीं — आज वहां सीमेंट, सरियों और बेच दिए गए आकाश की ऊंची दीवारें खड़ी हैं।
छत्तरपुर, सुल्तानपुर, किशनगढ़, मेहरौली और घिटोरनी जैसे गांव अब पहचान खो चुके हैं — और एक नई पहचान ओढ़ चुके हैं:
“अवैध फ्लैटों की मंडी”।
🏚️ फ्लैट्स बिक रहे हैं... लेकिन क्या ये वैध हैं?
दिल्ली के लाल डोरा क्षेत्र में नक्शा पास कराना तकनीकी रूप से अनिवार्य नहीं है — यह कानूनी रूप से सही है। लेकिन क्या इसी छूट का लाभ उठाकर बिल्डरों को यह अधिकार मिल जाता है कि वे 50, 100 या 200 गज की ज़मीन पर 5 मंज़िला इमारत खड़ी करें और उसे 5 से 15 फ्लैटों में बाँटकर बेच दें?
यह सवाल अब सिर्फ अवैध निर्माण का नहीं, बल्कि प्रशासनिक सिस्टम और कानून की आत्मा की हत्या का है।
"जहाँ सरकारी नियमों की सीमाएं खत्म होती हैं, वहाँ रिश्वत और राजनीतिक संरक्षण की छाया शुरू हो जाती है।"
स्थानीय लोगों का आरोप है कि:
रजिस्ट्रियां होती हैं, कुछ विभागीय अधिकारी और कर्मचारी रिश्वत लेकर अवैध निर्माण को वैध दस्तावेज़ों की शक्ल दे देते हैं।बिजली और पानी जैसे मूलभूत कनेक्शन भी 'अनौपचारिक सहमति' से जारी हो जाते हैं।
❗ यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, यह सिस्टम का दीमक है।
जब एक आम नागरिक अपने वैध प्लॉट पर एक मंज़िल के लिए भी नक्शा पास करवाने के लिए महीनों चक्कर लगाता है, तब ऐसे अवैध फ्लैट्स का रातों-रात उग आना ये दर्शाता है कि:
- या तो नियम जमीन पर लागू नहीं होते,
- या फिर नियमों को तोड़ा नहीं, बिकाया जाता है।
रजिस्ट्री भी हो जाती है, बिजली-पानी के कनेक्शन भी लग जाते हैं, लेकिन क्या कोई सरकारी एजेंसी यह देखती है कि इन फ्लैट्स का आधार क्या है?
बहुत बार, यह फ्लैट्स बिना MCD नक्शा, बिना DDA की मंज़ूरी, और बिना प्लानिंग परमिशन के बना दिए जाते हैं — और फिर बेच दिए जाते हैं।
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🔍 रजिस्ट्री का मतलब मालिकाना हक नहीं होता
दिल्ली में संपत्ति की रजिस्ट्री हो जाना जरूरी नहीं कि वह वैध हो। रजिस्ट्री एक दस्तावेज़ है, न कि कोई वैधता की गारंटी। अगर जमीन का उपयोग अनधिकृत है, या निर्माण बायलॉज के खिलाफ है, तो संपत्ति पर कार्रवाई हो सकती है — चाहे रजिस्ट्री हो चुकी हो।
🔴 लाल डोरा क्या है — संक्षेप में:
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"लाल डोरा" शब्द 1908 में पहली बार ब्रिटिश काल में आया था, जब ग्रामीण क्षेत्रों की "अभ्यासिक सीमा" तय की गई थी।
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यहां गांव की आबादी भूमि पर नियम शिथिल होते हैं — यानी कृषि भूमि पर निजी आवासीय निर्माण को कुछ हद तक छूट होती है।
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लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बहु-मंजिला फ्लैट या वाणिज्यिक निर्माण बगैर अनुमति के किया जा सकता है।
🏗️ बिल्डिंग बायलॉज लागू होते हैं या नहीं?
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लाल डोरा क्षेत्र में DDA के मास्टर प्लान लागू होते हैं, लेकिन मकान मालिक एकल आवासीय निर्माण तक सीमित होते हैं।
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बहु-इकाई फ्लैट, बेसमेंट+4 फ्लोर + टेरेस पर दुकानें – ये सब MCD और DDA के बायलॉज के उल्लंघन हैं।
"लाल डोरा" का तात्पर्य है ग्रामीण क्षेत्र में एक सीमा, जिसके भीतर कुछ निर्माण छूटें दी गई थीं। लेकिन यह छूट बहु-मंजिला फ्लैट निर्माण और व्यवसायिक बिक्री की अनुमति नहीं देती। फ्लैट निर्माण, MCD या DDA से अनुमोदन के बिना किया गया हो तो वह निर्माण उपयुक्त कानूनों का उल्लंघन माना जाएगा, चाहे उसके दस्तावेज़ तैयार करवा लिए गए हों।
🚰 नाजायज़ फ्लैट्स, और पीने के पानी की चोरी
छत्तरपुर की एक गली में — रामलीला चौक से छोटी मस्जिद की ओर — एक स्थानीय निवासी की शिकायत है कि अवैध रूप से बने फ्लैट्स और घरो में दो-दो तिन-तिन से ज्यादा अवैध कनेक्शन लगाए गए हैं। मोटरें एक साथ चलती हैं, और जिनका घर आखिरी छोर पर है, उन्हें पानी की एक बूँद भी नसीब नहीं होती। और ना जाने और कितने गलियों और मोहल्लो में इस तरह की व्यवस्था होगी .
विशेष कपूर रेस्टुरेंट के पास बने लगभग सौ फ्लैटों में 18 से 20 अवैध पानी के कनेक्शन हैं, जो बिल्डर द्वारा जनता के हक का पानी लूट रहे हैं।
यह कैसे संभव है?
इन अवैध कनेक्शनों का होना प्रशासनिक लापरवाही, राजनीतिक संरक्षण और भ्रष्टाचार का ही परिणाम है। बिना नक्शा पास किए और नियमों का उल्लंघन कर इन फ्लैट्स में पानी की आपूर्ति की जा रही है, जो न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि जनता के मूल अधिकार का भी हनन है। जबकि नियम है एक घर एक कनेक्शन
🔥 मुंडका अग्निकांड (2022): लाल डोरा की जमीन पर मौत का गोदाम
मई 2022 में दिल्ली के मुंडका इलाके में एक अवैध फैक्ट्री में लगी आग में 27 लोग जिंदा जल गए।
जांच में सामने आया कि:
- इमारत लाल डोरा क्षेत्र में अवैध रूप से बनी थी
- न फायर एनओसी ली गई थी
- न ही कोई नक्शा पास कराया गया था
यह घटना इस बात की जीती-जागती मिसाल है कि कैसे लाल डोरा क्षेत्र में अवैध निर्माण ने इंसानी जान की कीमत पर कारोबार को खड़ा किया।
“अगर उस इमारत का नक्शा और फायर एनओसी होती — शायद 27 जिंदगियां बच जातीं।”
📌 लाल डोरा की ज़मीनें क्यों आकर्षित करती हैं?
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कीमत कम होती है: 2 BHK फ्लैट 30 लाख से कम में मिल जाते हैं
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मेट्रो स्टेशनों के नज़दीक: आवाजाही आसान
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कागज़ी झंझट कम: कोई नक्शा पास नहीं कराना पड़ता
लेकिन इसी 'आसान रास्ते' ने दिल्ली को आज नकली और असुरक्षित शहरीकरण में ढकेल दिया है।
🧍♂️ प्रशासनिक चुप्पी: जिम्मेदार कौन?
प्रशासनिक एजेंसियां — चाहे वो दिल्ली जल बोर्ड, SDM कार्यालय, या नगर निगम (MCD) हों — अक्सर ऐसे मामलों में चुप्पी साध लेती हैं। शिकायतें दर्ज होती हैं, दौरे भी होते हैं, लेकिन स्थायी समाधान की बजाय फाइलें ही घूमती रहती हैं।
कई बार स्थानीय लोगों का आरोप होता है कि:
- फील्ड में तैनात कर्मचारी या जेई मौके पर जाकर अवैध कनेक्शन देखकर भी अनदेखी करते हैं,
- रिश्वत के बदले में कनेक्शन वैध करार दे दिए जाते हैं,
- और कई बार राजनीतिक संरक्षण की आड़ में अवैध निर्माण और जल चोरी को संरक्षण मिल जाता है।
❝एक आम नागरिक को पानी के एक कनेक्शन के लिए महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं,लेकिन अवैध फ्लैटों में पाइप और मोटर रातों-रात जुड़ जाते हैं... यह कैसा सिस्टम है?❞— छत्तरपुर निवासी की पीड़ा
🚿 DJB के अनुसार – पानी कनेक्शन लेने की सही दूरी कितनी होनी चाहिए?
दिल्ली जल बोर्ड के नियमानुसार:
शर्त विवरण
वैध दूरी DJB के 2020 के सर्कुलर के अनुसार, अधिकतम दूरी 5 मीटर ही निर्धारित है।जल कनेक्शन आपके मकान से अधिकतम 5 मीटर (16.5 फीट) की दूरी से लिया जा सकता है
पाइपलाइन नजदीक नहीं हो कॉलोनीवासी सामूहिक आवेदन से DJB से लाइन बिछवाने की मांग कर सकते हैं
5 मीटर से अधिक दूरी से कनेक्शन अवैध माना जाएगा – इसके लिए जुर्माना या FIR भी हो सकती है
मल्टीपल कनेक्शन एक ही संपत्ति पर कई कनेक्शन अवैध माने जाते हैं
❗जो लोग 50 फीट दूर से रोड से या अन्य फ्लैट की पाइपलाइन से अवैध रूप से जोड़ते हैं, वे DJB नियमों का सीधा उल्लंघन कर रहे हैं।
💬 समाधान क्या है?
RTI के ज़रिए जानकारी मांगी जानी चाहिए कि कितने कनेक्शन वैध हैं?
DJB और MCD को अवैध कनेक्शनों को स्थायी रूप से हटाने के लिए आदेशित किया जाना चाहिए।
लाल डोरा क्षेत्र में फ्लैट निर्माण और बिक्री पर एक स्पष्ट नीति बनाई जाए।
विजिलेंस और एंटी करप्शन ब्यूरो को इस पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए।
🔚 निष्कर्ष: गांव में शहर घुसा है, लेकिन कानून को पीछे छोड़कर...
दिल्ली के लाल डोरा क्षेत्रों में जो कुछ हो रहा है, वह सिर्फ ज़मीन पर निर्माण नहीं — बल्कि कानून, न्याय और आम आदमी की उम्मीदों पर भी निर्माण (या कहें तो मलबा) है। अगर अब नहीं रोका गया, तो कल ये मूक-शहर कानून से पूरी तरह आज़ाद होंगे — और फिर सबसे बड़ा नुकसान उसी आम आदमी का होगा, जिसके घर तक पानी भी नहीं पहुंचता।
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📝 नोट: यह लेख स्थानीय लोगों की शिकायतों, सरकारी नियमों और जमीनी स्थिति के आधार पर तैयार किया गया है।
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