हिंदी से परहेज़ क्यों? क्या मराठी अस्मिता की आड़ में हो रहा है राजनीतिक ध्रुवीकरण?
✍️ लेखक: दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार | We News 24
नई दिल्ली :- महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर बार-बार विवाद क्यों? यह सवाल आज सिर्फ भाषाई विवाद का नहीं, बल्कि राष्ट्र की एकता, संविधानिक भावना और राजनीतिक मंशा से भी जुड़ा हुआ है।
जब एक ही छात्र मराठी और अंग्रेजी दोनों पढ़ता है, तो हिंदी पढ़ने या बोलने में आखिर आपत्ति क्यों?
🔤 भाषा नहीं, मानसिकता का संघर्ष?
हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं — यह भारत की आत्मा, संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त राजभाषा, और देश के करोड़ों लोगों की अभिव्यक्ति है। फिर भी कुछ संगठनों और नेताओं द्वारा बार-बार इसे "बाहरी भाषा" कहकर विरोध करना किस दिशा में इशारा करता है?
क्या यह भाषा का मामला है, या राजनीति का नया खेल?
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🎭 मराठी अस्मिता बनाम राष्ट्रीय एकता
महाराष्ट्र में “मराठी अस्मिता” के नाम पर हिंदी का विरोध करना, न सिर्फ़ संविधान की भावना के विपरीत है, बल्कि यह एक खतरनाक मानसिक विभाजन पैदा करने की कोशिश है।
कोई यह क्यों नहीं बताता कि अंग्रेज़ी स्कूलों में मराठी बच्चे बड़ी सहजता से अंग्रेज़ी पढ़ते हैं?फिर हिंदी से डर, घृणा या विरोध किसलिए?
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⚠️ क्या है इसके पीछे की राजनीति?
कुछ क्षेत्रीय पार्टियों को यह डर है कि अगर हिंदी सामान्य जन की भाषा बन गई, तो उनकी भाषाई पहचान की राजनीति खत्म हो जाएगी। इसलिए वे हर चुनाव से पहले हिंदी का हौवा खड़ा कर देते हैं।
यह रणनीति:
- लोकल बनाम बाहरी का झूठा विमर्श खड़ा करती है
- युवाओं के भविष्य को भाषाई राजनीति की भेंट चढ़ा देती है
- और राष्ट्रीय एकता को कमजोर करती है
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📖 संविधान क्या कहता है?
भारत का संविधान हिंदी को राजभाषा (न कि राष्ट्रभाषा) घोषित करता है। वहीं राज्यों को अपनी मातृभाषा में काम करने की आज़ादी है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि कोई राज्य हिंदी का विरोध करने लगे।
हिंदी विरोध का यह चलन, संविधान के अनुच्छेद 343 और 351 की आत्मा के खिलाफ है।
🧠 भाषाई विविधता हमारी ताकत है, हथियार नहीं
भारत में 121 भाषाएं और 19,500 बोलियाँ हैं। अगर हम भाषा के नाम पर ही एक-दूसरे से कटेंगे, तो क्या हम 'भारत' रह पाएंगे?
तीनों को साथ लेकर चलना ही "भारतीय" होना है।
🗣️ सवाल जनता का: क्यों बन रही है हिंदी राजनीति का शिकार?
- क्या हिंदी बोलने वाला हर व्यक्ति उत्तर भारतीय है?
- क्या हर हिंदीभाषी को “बाहरी” कहना संवैधानिक रूप से सही है?
- क्या भाषाई टकराव से महाराष्ट्र को कोई फायदा मिलेगा?
👉 नहीं। नुकसान होगा — सामाजिक समरसता का, छात्र के कैरियर का और राष्ट्रीय एकता का।
📢 निष्कर्ष: हिंदी विरोध नहीं, संवाद की ज़रूरत
आज जब भारत वैश्विक मंच पर खड़ा है, तो हमें संवाद, सम्मान और सहयोग की संस्कृति अपनानी चाहिए। हिंदी को हिकारत से नहीं, अपनेपन से देखिए। यह किसी की पहचान मिटाने नहीं, जोड़ने आई है।
🔚 अंत में एक सवाल:
क्या हिंदी से असली दिक्कत है, या उससे जुड़ी राजनीति से?
📢 साझा करें — अगर आप भाषा नहीं, भारत को महत्व देते हैं।
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