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    क्या हो गया है भारत की न्यायपालिका को? 19 साल बाद 2006 मुंबई ब्लास्ट के 12 दोषी बरी, कोर्ट ने कहा – “सबूत नाकाफ़ी हैं”

    क्या हो गया है भारत की न्यायपालिका को? 19 साल बाद 2006 मुंबई ब्लास्ट के 12 दोषी बरी, कोर्ट ने कहा – “सबूत नाकाफ़ी हैं”



    ✍️  पत्रकार अनिल पाटिल रिपोर्टिंग: मुंबई  | We News 24


    मुंबई :- "कभी-कभी इंसाफ़ इतना देर से आता है कि वो इंसाफ़ नहीं, एक तमाचा लगने लगता है उस समाज के मुंह पर जो सच्चाई और न्याय की उम्मीद में जीता है।" 11 जुलाई 2006 — वो मनहूस दिन, जब मुंबई की लोकल ट्रेनें खून से लाल हो गई थीं। RDX से भरे सात धमाके, सिर्फ़ 11 मिनट में।189 लोग मारे गए। 800 से ज़्यादा ज़ख़्मी। पूरे देश ने टीवी स्क्रीन पर वो तस्वीरें देखीं, जिसने हमें हिला कर रख दिया था। लेकिन 19 साल बाद, जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस केस में अपना फैसला सुनाया, तो लोग फिर से सन्न रह गए। 12 आरोपी, जिनमें से 5 को मौत की सज़ा और बाकी को उम्रकैद दी गई थी — उन्हें बरी कर दिया गया। कोर्ट ने कहा, "अभियोजन पक्ष साबित नहीं कर सका कि ये आरोपी ही दोषी थे।"



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    ⚖️ न्यायपालिका से उठते सवाल:

    क्या भारत की न्यायपालिका में इतना लंबा समय और इतनी कमज़ोर जांच एक नए "अंधेरे युग" की तरफ इशारा कर रही है?

    क्या 189 निर्दोष जानें यूँ ही बेवजह गईं?

    क्या धमाकों में मारे गए लोगों के परिवारों को अब ये बताया जाएगा कि "किसी को दोष नहीं दे सकते"?


    🧑‍⚖️ कोर्ट ने क्या कहा?

    गवाह अविश्वसनीय निकले — धमाके के 100 दिन बाद पहचान पर कोर्ट को शक।

    सबूत अधूरे पाए गए — नक्शा, बम, बंदूक – किसी की पुष्टि नहीं हो पाई।

    बम की किस्म तक साबित नहीं कर पाए — ये कहना कि RDX था, भी पर्याप्त नहीं माना गया।


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    न्यायमूर्ति अनिल किलोर और श्याम चांदक की पीठ ने स्पष्ट किया:

    “किसी को सज़ा देना तब तक संभव नहीं, जब तक पुख़्ता सबूत न हों। यह केस अनुमान और विरोधाभासी गवाहियों से भरा हुआ था।”


    🔥 जनता की भावनाएँ:

    मुंबई में, सोशल मीडिया पर और शहीदों के परिवारों में न्याय के इस रूप को लेकर गुस्सा है।

    लोग पूछ रहे हैं —

    "कन्हैया लाल का हत्यारा बेल पर है, और अब मुंबई बमकांड के दोषी बरी?"


    🕯️ एक सवाल देश से:

    कानून की बारीकियाँ समझ में आती हैं, लेकिन क्या हमें "वास्तविक दोषी" कभी मिलेंगे?

    क्या देश के लोगों की याददाश्त से ये धमाके मिट जाएंगे, जैसे सबूतों के पन्ने फट गए?


    📢 आपकी राय क्या है?

    क्या आप इस फैसले से सहमत हैं?

    क्या आपको लगता है कि न्याय में देरी, अन्याय है?



     

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