रूस से व्यापार बंद करें वरना सेकेंडरी सैंक्शन झेलेंगे भारत-चीन-ब्राजील: नाटो महासचिव मार्क रूट की कड़ी चेतावनी
🕊️ शांति वार्ता या आर्थिक सज़ा: पुतिन पर दबाव डालें, नहीं तो भुगतें
📍 WE News 24 | संवाददाता,विवेक श्रीवास्तव
📅 नई दिल्ली | 16 जुलाई 2025 :- रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच वैश्विक भू-राजनीति में एक और बड़ा मोड़ आया है। नाटो के नवनियुक्त महासचिव मार्क रूट ने भारत, चीन और ब्राजील को दो टूक चेतावनी दी है कि अगर ये देश रूस के साथ व्यापार जारी रखते हैं, तो उन्हें "सेकेंडरी सैंक्शंस" का गंभीर परिणाम झेलना पड़ सकता है।
🗣️ "अगर आप दिल्ली, बीजिंग या ब्रासीलिया में हैं, तो आपको गंभीरता से सोचना होगा। पुतिन को कॉल करें और कहें कि अब युद्ध खत्म होना चाहिए। वरना आर्थिक प्रतिबंध बहुत गहरे असर डालेंगे।"
— मार्क रूट, महासचिव, NATO
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🔴 क्या कहा NATO महासचिव ने?
वॉशिंगटन में अमेरिकी सीनेटरों के साथ मीटिंग में मार्क रूट ने कहा कि:
रूस के साथ व्यापार को लेकर ब्राजील, भारत और चीन को चेतावनी दी जाती है।
अमेरिका इन देशों पर सेकेंडरी सैंक्शंस लागू कर सकता है जो उनकी अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर डालेंगे।
इन देशों को अब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर शांति वार्ता के लिए दबाव डालना चाहिए।
💣 ट्रंप की धमकी: 100% टैरिफ और 50 दिन की डेडलाइन
इससे पहले, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन को नए हथियार देने की घोषणा की और चेतावनी दी कि:
अगर 50 दिनों में रूस और यूक्रेन के बीच कोई शांति समझौता नहीं होता, तो रूस से व्यापार करने वालों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा।
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🌍 भारत, चीन और ब्राजील के लिए क्या है संदेश?
मार्क रूट का यह बयान स्पष्ट करता है कि अब तटस्थ रहना भी महंगा पड़ सकता है। न केवल कूटनीतिक रूप से, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी ये देश मुश्किल में आ सकते हैं।
📞 "पुतिन को कॉल करें और कहें — शांति जरूरी है। वरना अगला झटका आपकी अर्थव्यवस्था को लगेगा।"
📌 क्या हैं सेकेंडरी सैंक्शंस?
सेकेंडरी सैंक्शंस का मतलब है कि अगर कोई तीसरा देश (जैसे भारत) उस देश (जैसे रूस) से व्यापार करता है जिस पर पहले से प्रतिबंध लगे हैं, तो उसे भी अमेरिका या यूरोपीय देशों से प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
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🧠 विश्लेषण: भारत के लिए क्या रणनीति हो सकती है?
भारत रूस से तेल, हथियार और उर्वरक जैसे महत्वपूर्ण सामान खरीदता है। ऐसे में यह चेतावनी भारत के लिए आर्थिक दबाव का संकेत हो सकती है।
भारत को कूटनीति के माध्यम से संतुलन साधना होगा — रूस से रणनीतिक साझेदारी और पश्चिम से व्यापार संबंधों के बीच।
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