⚡"अगर फॉर्म में त्रुटि थी तो 26 जून को लॉटरी की तारीख क्यों घोषित हुई? सिमडेगा नगर परिषद पर उठे गंभीर सवाल"
सिमडेगा,नई दिल्ली > नगर परिषद की दुकान आवंटन योजना गरीबों के लिए एक रोजगार का अवसर बनकर सामने आई थी।लेकिन अब यह योजना धोखा, अनियमितता और प्रशासनिक लापरवाही का प्रतीक बनती जा रही है।
इस योजना के तहत मात्र 42 दुकानों के लिए आवेदन मांगे गए थे, लेकिन नगर परिषद ने दो हजार से अधिक फॉर्म में बेच दिए। इस योजना में करीब 2,105 आवेदकों से भी ज्यादा लोगो ने एक हजार फॉर्म शुल्क + बीस हजार का डिमांड ड्राफ्ट के रूप में कुल इक्कीस हजार जमा किये गए। इसके आलावा भी डिमांड ड्राफ्ट का कमिशनएफिडेविट (नोटरी शपथ पत्र) होल्डिंग टेक्स तक़रीबन अलग से हजार रूपये से अधिक की लागत
🧾 कुल फॉर्म फीस से हुई कमाई: ₹21,05,000 वर्तमान आकड़े के हिसाब से ये बढ़ भी सकता है💰 डिमांड ड्राफ्ट के ज़रिये लगो का फंसा पैसा: ₹4.21 करोड़ (लगभग)
लेकिन 26 जून को प्रस्तावित लॉटरी अचानक स्थगित कर दी गई। इसके बाद से प्रशासन मौन है, और हजारों लोगों की मेहनत की कमाई अधर में लटकी हुई है।
🔥 We News 24 की रिपोर्ट का असर: नगर परिषद ने आनन-फानन में जारी किया नोटिस
30 जून को We News 24 की रिपोर्ट ने जब इस पूरे मामले को उजागर किया, तो 1 जुलाई को नगर परिषद ने एक ‘आम सूचना’ जारी कर दी:
“आवेदनों में आंशिक त्रुटि पाई गई है। सभी आवेदक 5 जुलाई तक नोटरी शपथ पत्र के साथ सुधार करें।”
❓ सवाल उठता है –
👉 अगर फॉर्म में त्रुटि या कमी थी तो फॉर्म जमा कैसे हो गया ?,
👉और लॉटरी की तारीख 26 जून को कैसे घोषित कर दी गई थी?
👉क्या इस सम्बन्ध में नगर परिषद् ने आवेदन कर्ता को सुचना दिया ?
👉इस बात किम जम्मेदारी किसकी है ?
👉क्या ये नगर परिषद का चुक है ,या जनता के साथ धोखा ?
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❗ क्या यह जनता के नाम पर सरकारी कमाई का खेल था?
🧾 “आज भी सिमडेगा में ₹1,000 का मतलब है दो दिन की मजदूरी।”🛠️ मजदूरों ने दुकान के लालच में होल्डिंग टैक्स तक जमा कर दिया, जिसकी राशि भी लाखों में जा रही है।
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🧨 जनता के साथ छल या प्रशासनिक चूक?
- होल्डिंग रसीद में आवेदक और होल्डिंगधारी का संबंध स्पष्ट नहीं
- स्व-घोषणा पत्र नहीं दिया गया
- दुकान चयन की प्रक्रिया अस्पष्ट
तो जब ये सारी खामियाँ थीं, तब आवेदन लेते समय क्यों नहीं रोका गया?
✅ जनता की स्पष्ट मांगें
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लॉटरी की नई तारीख तुरंत घोषित की जाए।
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जिन्हें दुकान नहीं मिलेगी, उनका ₹20,000 ब्याज सहित लौटाया जाए।
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₹1,000 का नॉन-रिफंडेबल शुल्क भी वापस किया जाए।
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होल्डिंग टैक्स जमा करने वालों को भी राहत दी जाए।
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लॉटरी की पूरी प्रक्रिया सार्वजनिक मंच पर घोषित की जाए।
🔍 निष्कर्ष: क्या यह विकास का सपना था या धोखे की स्कीम?
सवाल बहुत हैं –
- क्या गरीबों से ₹21 लाख सिर्फ फॉर्म बेचने के नाम पर लेना कितना सही है?
- क्या ‘त्रुटिपूर्ण फॉर्म’ सिर्फ बहाना है, असल वजह सेटिंगबाजी है?
📢 We News 24 ने इस खबर को सबसे पहले उजागर किया, और अब यह जिम्मेदारी जिला प्रशासन और झारखंड सरकार की है कि वह जनता को जवाब दें।
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