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    "सिमडेगा नगर परिषद ने किया गरीबों से 'दुकान आवंटन' के नाम पर खेल ,वसूले 21-21 हजार, लॉटरी रद्द, पैसा फंसा

    "सिमडेगा नगर परिषद ने किया गरीबों से 'दुकान आवंटन' के नाम पर खेल ,वसूले 21-21 हजार, लॉटरी रद्द, पैसा फंसा


    ✍️ लेखक: दीपक कुमार  ,वरिष्ठ  पत्रकार | We News 24

    सिमडेगा, झारखंड (30 जून 2025,  सिमडेगा नगर परिषद की ओर से शुरू की गई दुकान आवंटन स्कीम शुरू में इलाके के गरीब परिवारों के लिए एक उम्मीद बनकर आई थी। लेकिन अब यह योजना सवालों के घेरे में है। 42 दुकानों के लिए निकाली गई इस योजना की लॉटरी 26 जून को होनी थी, जिसे अचानक स्थगित कर दिया गया, और अभी तक न कोई नई तारीख घोषित हुई है, न ही पारदर्शी जवाब सामने आया है। इस बीच, सैकड़ों लोगों के 21-21 हजार रुपये फंसे हुए हैं, और प्रशासन मौन है।


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    क्या था स्कीम का प्लान और क्यों टूटी गरीबों की उम्मीद?

    नगर परिषद ने आवेदन प्रक्रिया के तहत 1,000 रुपये का फॉर्म बेचा, और उसके साथ 20,000 रुपये का डिमांड ड्राफ्ट जमा करवाया। यानी हर आवेदक से कुल 21,000 रुपये की मांग की गई। स्कीम की अंतिम तिथि पहले 5 जून थी, जो कई बार बढ़ाकर 18 जून तक की गई।

    26 जून को लॉटरी होनी थी, लेकिन उस दिन कुछ नहीं हुआ। बिना किसी नई तारीख के स्थगन की घोषणा ने लोगों को गहरी चिंता में डाल दिया है।


    गरीबों की मेहनत का पैसा लटका, कोई जवाब नहीं

    एक स्थानीय निवासी साहू बताते हैं:

    “हमने जैसे-तैसे पैसा जोड़ा, कर्ज भी लिया, ताकि दुकान मिल जाए और परिवार चल सके। अब पैसा अटक गया, और कोई अधिकारी जवाब नहीं दे रहा।”

    इसी तरह स्थानीय महिला कहती हैं:

    “हम रोज कमाने-खाने वाले लोग हैं। हमारे लिए ₹21,000 बहुत बड़ी रकम है। स्कीम से उम्मीद थी, अब सिर्फ धोखा मिल रहा है।”



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    एक हजार रुपये का नॉन-रिफंडेबल फॉर्म—क्या यह शोषण नहीं?

    सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर ₹1,000 में बेचा गया आवेदन फॉर्म 
    नॉन-रिफंडेबल क्यों रखा गया?

    सिमडेगा जैसे पिछड़े इलाके में एक दिहाड़ी मजदूर दिनभर काम करके मुश्किल से ₹500 कमाता है। ऐसे में दो दिन की मेहनत की कमाई सिर्फ एक फार्म के लिए खर्च करना – और वो भी बिना गारंटी के – क्या यह गरीबों का शोषण नहीं है?


    अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित दुकानें—फिर भी भेदभाव की आशंका

    हालांकि नगर परिषद ने कुछ दुकानें अनुसूचित जातियों (SC/ST) के लिए आरक्षित रखी थीं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कुल कितने आवेदन आए और किस वर्ग से कितने आवेदनकर्ता थे।

    एक सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं:

    “अगर नगर परिषद सही डेटा और जानकारी सार्वजनिक नहीं करती, तो ये पारदर्शिता के साथ धोखा है। कमजोर वर्गों के अधिकारों को नजरअंदाज करना भारी अन्याय होगा।”


    लोगों का आरोप: क्या सेटिंग के कारण रोकी गई लॉटरी?

    स्थानीय चर्चा के अनुसार, कुछ प्रभावशाली लोगों के दबाव में लॉटरी को रोका गया है, और पूरा सिस्टम पहले से सेट कर दिया गया है।
    रामदेव उरांव, एक बुजुर्ग निवासी, कहते हैं:

    “गरीबों का पैसा फंसा है और अमीरों की सेटिंग चल रही है।  क्या  ये सब दिखावे की लॉटरी है ?


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    अब क्या चाहिए जनता को?

    1. स्थगन का सार्वजनिक कारण बताए नगर परिषद।

    2. लॉटरी की नई तारीख तत्काल घोषित हो।

    3. जिन्हें दुकान आवंटित नहीं होगी, उनका ₹20,000 ब्याज समेत लौटाया जाए।

    4. ₹1,000 के नॉन-रिफंडेबल फॉर्म शुल्क पर पुनर्विचार किया जाए—या उसे भी लौटाया जाए।


    निष्कर्ष:

    क्या सिमडेगा नगर परिषद की यह योजना विकास का वादा थी या एक सुनियोजित शोषण?
    क्या ₹1,000 में आवेदन फॉर्म बेचना सही है जब नतीजा ही सामने न आए?
    क्या लोगों की मेहनत की कमाई का ब्याज समेत वापसी की गारंटी नहीं होनी चाहिए?

    सवाल गंभीर हैं, और जवाब अब प्रशासन को देने होंगे।


    📢 अगर आप भी इस मुद्दे से प्रभावित हैं या इसकी सच्चाई बाहर लाना चाहते हैं, तो इस खबर को शेयर करें और अपनी राय ज़रूर दें।

    📍 सिमडेगा के जिला अधिकारी महोदय से अनुरोध है कि वे जनता की इस पीड़ा का संज्ञान लें और जवाबदेही सुनिश्चित करें।

    ✍️ लेखक: दीपक कुमार  ,वरिष्ठ  पत्रकार | We News 24

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