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    पीएम मोदी का जापान-चीन दौरा: ट्रंप के टैरिफ के बीच भारत की डिप्लोमेसी ने दबाया 'पावर बटन'

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    सारांश: पीएम मोदी की जापान-चीन यात्रा अमेरिकी टैरिफ के बीच भारत की डिप्लोमेसी का पावर मूव है। जापान से 68 अरब डॉलर का निवेश और मेक इन इंडिया को बूस्ट, जबकि चीन में SCO के जरिए रिश्ते सुधारने की कोशिश।


    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » लेखक: अनन्या मेहरा, विशेष संवाददाता  - प्रकाशित: 29 अगस्त 2025


    नई दिल्ली, भारत – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान और चीन यात्रा ने वैश्विक सुर्खियां बटोर ली हैं। अमेरिका के 50% टैरिफ की मार से जूझ रही दुनिया में भारत की यह डिप्लोमेसी मेक इन इंडिया को बूस्ट करने और भू-राजनीतिक रिश्तों को नया आकार देने का मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकती है। जेन Z, जो भारत की 40% आबादी है, के लिए ये खबर सिर्फ हेडलाइंस नहीं—ये अर्थव्यवस्था, जॉब्स और ग्लोबल पावर गेम की स्टोरी है, जो उनकी स्क्रॉलिंग स्क्रीन पर ट्रेंड कर रही है।



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    जापान: मेक इन इंडिया का नया इंजन

    पीएम मोदी की यात्रा का पहला पड़ाव जापान है, जहां भारत के साथ पहले से ही गहरे रिश्ते हैं। जापान क्वाड का हिस्सा है और भारत का भरोसेमंद पार्टनर। ऐसे में जब अमेरिकी टैरिफ भारतीय निर्यात को चोट पहुंचा सकते हैं, मोदी जापान से मेक इन इंडिया को रफ्तार देने के लिए बड़ा निवेश और टेक्नोलॉजी मांग सकते हैं। 


    क्या होने वाला है?  

    100+ आपसी सहमति पत्रों (MoUs) पर हस्ताक्षर की उम्मीद।  

    क्रिटिकल मिनरल्स और हाई-वैल्यू मैन्युफैक्चरिंग में जापानी निवेश पर फोकस।  

    भारत में रेयर अर्थ माइनिंग के लिए जापानी टेक्नोलॉजी की जरूरत।  

    जापानी कंपनियां अगले दशक में भारत में 68 अरब डॉलर का निवेश करेंगी।  

    सुजुकी मोटर अगले 6 साल में 8 अरब डॉलर निवेश करेगी।  

    पिछले 5 साल में 25,000 भारतीय प्रोफेशनल्स जापान की वर्कफोर्स का हिस्सा बने।


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    स्थानीय स्टूडेंट रिया, जो दिल्ली में इकोनॉमिक्स पढ़ती है, कहती है, "जापान का निवेश मतलब ज्यादा जॉब्स। मेक इन इंडिया से मेरे जैसे स्टूडेंट्स को टेक और मैन्युफैक्चरिंग में मौके मिल सकते हैं।" ये जेन Z की आवाज है, जो जॉब्स और इनोवेशन चाहता है। 



    चीन: तनाव के बाद दोस्ती की नई कोशिश

    यात्रा का दूसरा चरण है शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) सम्मेलन, जो रविवार से चीन में शुरू हो रहा है। 2020 के गलवान संघर्ष के बाद भारत-चीन रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं, लेकिन अमेरिकी टैरिफ की चुनौती ने दोनों देशों को करीब ला दिया है। पीएम मोदी 7 साल बाद चीन जा रहे हैं, जहां राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी मुलाकात रिश्तों को नया मोड़ दे सकती है। 

    विदेश सचिव विक्रम मिसरी कहते हैं, "यह यात्रा सहयोग बढ़ाने और उभरती चुनौतियों का सामना करने का मौका है।" चीन ने अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ भारत का समर्थन किया है, और दोनों देश कारोबारी रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं। SCO में भारत-चीन बातचीत वैश्विक व्यापार और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए गेम-चेंजर हो सकती है।


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    • जॉब्स और स्किल्स: जापानी निवेश से टेक और मैन्युफैक्चरिंग में मौके बढ़ेंगे।  
    • ग्लोबल स्टैंड: भारत का चीन और जापान के साथ बैलेंस्ड रुख ट्रंप की पॉलिसी को जवाब है।  
    • क्लाइमेट कनेक्शन: रेयर अर्थ माइनिंग सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी को बूस्ट करेगी, 



    क्यों है ये बड़ा डील?

    अमेरिका के टैरिफ से भारत को सालाना अरबों का नुकसान हो सकता है। ऐसे में जापान का 68 अरब डॉलर का निवेश और चीन के साथ कारोबारी सहयोग भारत की अर्थव्यवस्था को बूस्ट कर सकता है। ये दौरा न सिर्फ डिप्लोमेसी का मास्टरस्ट्रोक है, बल्कि नई पीढ़ी  के लिए जॉब्स, इनोवेशन और ग्लोबल स्टैंडिंग की राह खोलता है। जैसे एक X यूजर ने लिखा, "मोदी का ये मूव ट्रंप को जवाब है—भारत अब सिर्फ फॉलो नहीं करता, लीड करता है।"


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