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    बाहुबलियों के साये में बिहार की सियासत: मोकामा हत्याकांड के बाद जाति से ऊपर उठेगा वोटर, या अपराध का पुराना चक्र फिर चलेगा?




    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » 

    संवाददाता,अमिताभ मिश्रा 

    Updated: Fri, 31 Oct 2025 01:14 PM (IST)

     पटना। बिहार की धरती, जहां जाति की लकीरें कभी जिंदगियां बांटती रहीं, आज अपराध की छाया में सिसक रही है। दिवाली की रोशनी बुझते ही मोकामा में गोलीबारी की गूंज ने पूरे राज्य को झकझोर दिया। एक निर्दोष कार्यकर्ता की जान चली गई, और सवाल फिर वही पुराना – क्या बिहार का मतदाता इस बार जाति के बंधन से ऊपर उठकर अपराधियों को ठुकरा देगा? या फिर बाहुबलियों का 'रॉबिन हुड' वाला जादू फिर चल जाएगा? भाजपा के वरिष्ठ नेता आरके सिंह की अपील – "अपराधी को वोट मत दो, चाहे अपनी जाति का ही क्यों न हो" – सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, लेकिन हकीकत में बदलाव आएगा या नहीं, ये तो 20 नवंबर के नतीजों पर निर्भर है।



    मोकामा हत्याकांड: अपराध की आग में जल रही चुनावी जंग

    बुधवार (30 अक्टूबर) को मोकामा ताल क्षेत्र में जो हुआ, वो कोई साधारण क्लैश नहीं था – ये बिहार के 'जंगल राज' की याद दिलाने वाला खौफनाक मंजर था। जन सुराज पार्टी के कार्यकर्ता दुलारचंद यादव को गोली मार दी गई, जबकि उम्मीदवार प्रियदर्शी पीयूष का काफिला हमले का शिकार हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हमलावरों ने गाड़ी से कुचलने की कोशिश भी की। पुलिस ने शव बरामद किया, लेकिन मौत की वजह – गोली या कुचलना – पोस्टमॉर्टम पर निर्भर है। जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने इसे "लोकतंत्र पर हमला" बताया, और जेडीयू के बाहुबली अनंत सिंह पर इल्जाम लगाया। अनंत सिंह ने इनकार किया, लेकिन मोकामा की ये सीट उनकी और आरजेडी की वीणा देवी (सूरजभान सिंह की पत्नी) के बीच 'दो डॉन' की जंग का मैदान है।



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    वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र कहते हैं, "मुद्दाविहीन चुनाव में अपराध की आंच हमेशा सुलगती रहती है। मोकामा ने इसे फिर साबित कर दिया।" पुलिस और चुनाव आयोग पर सवाल उठ रहे हैं – बाहुबलियों के इलाकों में शांतिपूर्ण वोटिंग कैसे?


    आरके सिंह की अपील: NOTA से बेहतर चुल्लू भर पानी में डूबना

    दिवाली पर भाजपा सांसद आरके सिंह का बयान आज सुर्खियों में है। उन्होंने कहा, "जाति से ऊपर उठो, अपराध और भ्रष्टाचार को वोट मत दो। अगर सभी उम्मीदवार खराब हैं, तो NOTA दबाओ – ये चुल्लू भर पानी में डूबने से बेहतर है।" सिंह ने NDA और महागठबंधन दोनों पर निशाना साधा, नाम गिनाए: 



    ये सिर्फ नमूना है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट कहती है: 423 उम्मीदवारों (32%) पर आपराधिक केस, 354 (27%) पर गंभीर आरोप – 33 हत्या, 86 हत्या प्रयास के।


    जाति vs अपराध: वोटर का इम्तिहान

    राजनीतिक दलों का दोहरा चरित्र साफ है – चुनावी घोषणापत्रों में अपराध के खिलाफ 'वेद वचन', लेकिन टिकट वितरण में बाहुबलियों को खुला खेल। पुष्यमित्र की चेतावनी: "सलेक्टिव विरोध का कोई मतलब नहीं।" सोशल मीडिया पर आरके सिंह का बयान शेयर हो रहा है, लोग गुस्से में हैं। मनीकंट्रोल हिंदी ने ट्वीट किया: "मोकामा हत्याकांड के बाद सूरजभान सिंह का बड़ा बयान..." लेकिन क्या ये गुस्सा वोट तक पहुंचेगा?

    वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद मुकेश पूछते हैं, "बिहार का रक्तरंजित चुनावी इतिहास दोहराना चाहते हैं? वोटर अब जागा है – बच्चों के भविष्य के लिए अपराधमुक्त बिहार चुनो।" पहली फेज की वोटिंग 6 नवंबर को, लेकिन चुनौती बड़ी: क्या बिहार जाति की जंजीर तोड़कर विकास चुन लेगा?


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    "जाति तोड़ो, अपराध को नकारो – वोट तुम्हारा, भविष्य हमारा।" – एक युवा वोटर की पुकार


    चुनाव आयोग को कड़े कदम उठाने होंगे। बिहार बदलाव की दहलीज पर है – क्या हम इसे पार कर पाएंगे? आपकी राय क्या है?


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