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    दिल्ली में NGT का प्राइवेट टैंकर पर फरमान: पानी संकट की आग में घी डालने वाला कदम या जरूरी कदम?

    दिल्ली में NGT का प्राइवेट टैंकर पर फरमान: पानी संकट की आग में घी डालने वाला कदम या जरूरी कदम?



    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क »वी न्यूज 24,  

    लेखक वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार

    नई दिल्ली, 12 अक्टूबर 2025: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के 28 मई 2025 के उस फैसले ने दिल्लीवासियों के गले की हड्डी बनकर फंस गया है, जिसमें शहर में प्राइवेट वाटर टैंकरों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया। गर्मियों की तपिश और यमुना की घटती धारा के बीच यह फरमान 'तुगलकी' बताकर सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रहा है। लेकिन क्या वाकई एनजीटी का यह कदम दिल्ली के पानी संकट को और गहरा रहा है? या यह अवैध पानी चोरी पर लगाम कसने की कोशिश है? आइए, आंकड़ों, भौगोलिक हकीकत और मानवीय दर्द के साथ इस मुद्दे की परतें खोलें।



    पानी संकट की काली सच्चाई: आंकड़े जो चेतावनी दे रहे हैं

    दिल्ली, जहां 3.4 करोड़ से ज्यादा आबादी रहती है, वहां पीने के पानी की कमी अब महामारी जैसी हो चुकी है। 2025 में जारी एक वाटर ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, शहर के 34 प्रतिशत निवासी प्राइवेट वाटर सप्लायर्स पर निर्भर हैं, जबकि 29 प्रतिशत दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) के टैंकरों पर आश्रित हैं। लेकिन एनजीटी के बैन के बाद प्राइवेट टैंकर गायब हो गए, जिससे वसंत कुंज जैसे पॉश इलाकों में शॉपिंग सेंटर्स तक सूख चुके हैं। पुलिस ने इन टैंकरों को रोका क्योंकि ये अवैध बोरवेलों से 'चुराया' पानी ला रहे थे।



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    डीजेबी की हालत तो और भी खराब है। जुलाई 2025 में एनजीटी ने डीजेबी पर जुर्माना लगाया क्योंकि बोर्ड ने ग्राउंडवाटर एक्सट्रैक्शन केस में बार-बार देरी की। सितंबर में यमुना की बाढ़ से रॉ वाटर कंटेमिनेट हो गया, जिससे दक्षिण और उत्तर-पूर्व दिल्ली में सप्लाई ठप हो गई। दिल्ली हाई कोर्ट ने तो जुलाई में डीजेबी को फटकार लगाई, "क्या आप नागरिकों को सीवेज मिक्स्ड पानी पीने को मजबूर करना चाहते हैं?" रिपोर्ट्स बताती हैं कि जनकपुरी जैसे इलाकों में टैप वाटर में ई.कोलाई बैक्टीरिया पाया गया, जो मानव और पशु अपशिष्ट से आता है।


    राष्ट्रीय स्तर पर, 2025 में 35 मिलियन दिल्लीवासी साफ पानी से वंचित हैं, और गर्मी की लहरों ने डिमांड को 190 मिलियन लीटर प्रतिदिन बढ़ा दिया। तेजी से शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन ने इसे और जटिल बना दिया है।


    दिल्ली की भौगोलिक मजबूरी: यमुना पर निर्भरता और प्रदूषण का जाल

    दिल्ली की भौगोलिक स्थिति ही पानी संकट की जड़ है। शहर यमुना नदी के किनारे बसा है, जो गंगा की प्रमुख सहायक नदी है और यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलकर मुस्सोरी रेंज से होकर आती है। यमुना दिल्ली के पानी का 70 प्रतिशत स्रोत है, जिस पर 57 मिलियन लोग निर्भर हैं। लेकिन हिंदन, चंबल, सिंध, बेतवा और केन जैसी सहायक नदियां मिलने के बावजूद, दिल्ली में प्रवेश करते ही यमुना 'मर जाती' है—प्रदूषण से काली पड़ जाती है। शहर के 22 किलोमीटर लंबे हिस्से में ही 80 प्रतिशत प्रदूषण हो जाता है, क्योंकि सीवेज और इंडस्ट्रियल वेस्ट सीधे गिराया जाता है। ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, लेकिन मानसून की अनियमितता ने ग्राउंडवाटर को 80 प्रतिशत गिरा दिया।



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    अवैध निर्माण पर एनजीटी की नजर: क्या 'तुगलकी' फरमान का दोहरा मापदंड?

    यूजर की शिकायत सही लगती है—एनजीटी ने प्राइवेट टैंकरों पर रोक लगाई, लेकिन अवैध निर्माण पर चुप्पी क्यों? हकीकत यह है कि एनजीटी सक्रिय है। सितंबर 2025 में एनजीटी ने डीडीए को साकेत फॉरेस्ट में अतिक्रमित भूमि पर रिपोर्ट मांगी, जहां अवैध संरचनाएं हैं। अक्टूबर में यमुना फ्लडप्लेन्स पर अवैध रेत खनन रोकने के लिए दिल्ली-यूपी टास्क फोर्स गठित की। बाराबंकी वेटलैंड्स पर कोई अतिक्रमण न पाए जाने की रिपोर्ट आई, और दिल्ली के 22 वाटरबॉडीज को क्लियर किया। तो एनजीटी 'अंधा' नहीं, बल्कि बहुआयामी चुनौतियों से जूझ रहा है। लेकिन टैंकर बैन ने गरीबों को सबसे ज्यादा ठेस पहुंचाई।


    AAP सरकार की नीतियां: वादे vs हकीकत

    आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने 2013 से 'फ्री वाटर' पॉलिसी चलाई, जिसमें 20,000 लीटर मासिक फ्री पानी का वादा था। 2025 में अरविंद केजरीवाल ने महंगी बिल माफी का ऐलान किया, लेकिन केंद्र के हस्तक्षेप से लागू न हो सका। यमुना सफाई का 10 साल पुराना वादा '100 प्रतिशत सीवेज ट्रीटमेंट' अभी अधूरा है। मानसून में वाटरलॉगिंग पर BJP से ब्लेम गेम चल रहा, लेकिन गिरी नगर पंपिंग स्टेशन जैसी नाकामियां AAP की 'चार इंजन' सरकार पर सवाल उठाती हैं। सरकार की कोशिशें हैं—नई पाइपलाइनें और STP प्लांट्स—लेकिन क्रियान्वयन में कमी है।


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    मानवीय दर्द: एक मां की आंसू भरी कहानी

    उत्तर-पूर्व दिल्ली की रहने वाली राधा देवी (नाम बदला गया) कहती हैं, "बच्चों को स्कूल भेजने से पहले घंटों लाइन में लगना पड़ता है। एनजीटी का बैन आया तो प्राइवेट टैंकर वाले भाग गए। अब डीजेबी का पानी आता ही नहीं, जो आता है वो गंदा। मेरी बेटी को डायरिया हो गया—डॉक्टर ने बोतलबंद पानी कहा, लेकिन वो कहां से लाऊं?" राधा जैसी लाखों महिलाएं रोज इस जद्दोजहद से गुजर रही हैं। यह संकट सिर्फ आंकड़ों का नहीं, परिवारों का है।


     समाधान की राह कहां?

    एनजीटी का फरमान पर्यावरण बचाने का प्रयास है, लेकिन बिना वैकल्पिक व्यवस्था के यह नागरिकों पर बोझ। दिल्ली सरकार को डीजेबी सुधारने, यमुना रिवाइवल और अवैध बोरवेल पर सख्ती करनी होगी। वरना, 2025 का यह संकट 2030 तक महामारी बन सकता है। 

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