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    बिहार चुनाव 2025: 'जीविका दीदी' के 10,000 रुपये के दम पर NDA की प्रचंड जीत, चुनाव आयोग की चुप्पी पर उठे सवाल

    बिहार चुनाव 2025: 'जीविका दीदी' के 10,000 रुपये के दम पर NDA की प्रचंड जीत, चुनाव आयोग की चुप्पी पर उठे सवाल


    We News 24 :डिजिटल डेस्क » संवाददाता ,ललित भगत

    पटना, 15 नवंबर, 2025 (बिहार समाचार डेस्क): 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA ने 243 में से 180 से ज़्यादा सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। लेकिन हर किसी की जुबान पर यही सवाल है कि क्या यह जीत 'जीविका दीदी' के खाते में जमा हुए 10,000 रुपयों की बदौलत मिली। RJD और महागठबंधन का आरोप है कि यह पैसा वोटरों को लुभाने के लिए बांटा गया था, और अब NDA का कहना है कि यह पैसा केंद्र और बिहार सरकार का है और इसे वापस करने की ज़रूरत नहीं है। 20 साल से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति जनता में थोड़ी नाराज़गी होना लाज़मी है, लेकिन क्या इस 'महिला कार्ड' ने खेल बदल दिया? आइए इस मामले की गहराई से जाँच करें और सच्चाई सामने लाएँ और चुनाव आयोग की भूमिका का पता लगाएँ।


    जीविका दीदी के लिए 10,000 रुपये: सशक्तिकरण या वोट हथियाने का प्रयास?

    चुनाव से ठीक पहले, बिहार में लगभग 1.4 करोड़ जीविका दीदी (स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं) के खातों में 10,000 रुपये ट्रांसफर किए गए। यह राशि केंद्र सरकार की 'मुख्यमंत्री महिला उद्यमिता योजना' के तहत दी गई, जो एनडीए की कल्याणकारी योजना का हिस्सा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दरभंगा की एक रैली में राजद पर निशाना साधते हुए कहा, "जीविका दीदी से ये 10,000 रुपये कोई वापस नहीं ले सकता, तीन पीढ़ियों के बाद भी नहीं!" दूसरी ओर, तेजस्वी यादव ने 30,000 रुपये मासिक वेतन और ब्याज मुक्त ऋण का वादा किया था, लेकिन जनता ने एनडीए को चुना।



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    नतीजे साफ़ तौर पर दिखाते हैं कि महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से ज़्यादा थी—लगभग 40% महिला मतदाता जीविका से जुड़ी थीं। इस 'महिला कारक' ने एनडीए को भारी जीत दिलाई और राजद के वोट चोरी के दावों को खारिज कर दिया। आश्चर्य की बात नहीं कि 20 साल तक मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार के खिलाफ महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर कुछ नाराजगी थी। हालाँकि, मुफ्त बिजली, पेंशन में बढ़ोतरी और ₹10,000 की योजना ने महिला मतदाताओं का दिल जीत लिया।


    क्या बिहार में कोई 'खेल' चल रहा था? धांधली के आरोपों के पीछे का सच क्या है?

    राजद और कांग्रेस के नेताओं, खासकर अशोक गहलोत ने चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि जीविका योजना के जरिए मतदाताओं को लुभाया गया, जबकि चुनाव आयोग चुप रहा। राजद ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई कि यह पैसा आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करता है। हालाँकि, हकीकत यह है कि ये पैसे चुनाव से पहले ट्रांसफर किए गए थे और यह योजना नीतीश सरकार की लंबे समय से चली आ रही महिला सशक्तिकरण योजना का हिस्सा थी। विपक्ष का दावा है कि इस 'मुफ्त' ने जाति-आधारित गठबंधनों को तोड़ दिया और एनडीए की सोशल इंजीनियरिंग के लिए सफल साबित हुआ।

    कुछ रिपोर्टों में मतदाता सूची में फर्जी प्रविष्टियों और नाम हटाने की शिकायतें भी सामने आईं, जिनकी चुनाव आयोग द्वारा जाँच की जा रही है। फिर भी, बिहार में कोई बड़ा 'खेल' नहीं हुआ—जनता का मूड स्पष्ट रूप से महिला कल्याण के पक्ष में था।


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    चुनाव आयोग का रुख: 'स्वच्छ' चुनाव का दावा, लेकिन सवाल बरकरार

    चुनाव आयोग (ईसीआई) ने बिहार चुनाव के पहले चरण में 64.66% मतदान का दावा किया, जो 1951 के बाद से सबसे ज़्यादा है। ईसीआई ने कहा कि चुनाव 'प्रवेश-मुक्त' था और 'सबसे साफ़ मतदाता सूची' तैयार की गई थी। हालाँकि, जीविका योजना पर कोई सीधा बयान नहीं दिया गया। चुनाव आयोग ने विपक्ष की शिकायतों की जाँच का वादा किया, लेकिन नतीजों के बाद चुप रहा। पटना प्रशासन के 'मिशन 60' जैसे अभियानों ने मतदाता जागरूकता बढ़ाई, लेकिन मुफ़्त सुविधाओं के आरोपों पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया कमज़ोर दिखाई देती है।



    निष्कर्ष: महिला शक्ति की जीत, लेकिन पारदर्शिता पर सवाल

    यह चुनाव साबित करता है कि बिहार की महिला मतदाता अब फ़ैसले लेती हैं—साइकिल से लेकर पेंशन तक, नीतीश कुमार की योजनाएँ कारगर साबित हुई हैं। लेकिन 10,000 रुपये वापस करने पर बहस जारी है—एनडीए का कहना है कि यह सरकारी पैसा है, जबकि आरजेडी का कहना है कि यह वोट की कीमत है। नीतीश से असंतोष था, लेकिन जनता ने विकास को प्राथमिकता दी। बिहार अब एनडीए के नियंत्रण में है, लेकिन चुनाव आयोग की चुप्पी और मुफ्तखोरी का मामला पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।

    बिहारी न्यूज़ विशेष: यह रिपोर्ट एक गहन पड़ताल पर आधारित है। 


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