बिहार विधानसभा चुनाव 2025: जुमलों की राजनीति, विकास का अभाव और भविष्य का संकट
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लेखक :वरिष्ठ पत्रकार ,दीपक कुमार
संपादकीय, पटना | अपडेटेड: 1 नवंबर 2025, दोपहर 12:45 बजे (IST)
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मैदान में उतरते ही एक बार फिर वही पुरानी पटकथा दोहराई जा रही है। वोटरों के सामने मुद्दे कम, जुमले ज्यादा। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का घिसा-पिटा हथियार—लालू प्रसाद यादव के शासनकाल का 'जंगलराज'—फिर से सामने आ गया है, जो 25-30 साल पुरानी कहानी है। वहीं, महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) रोजगार और पलायन के वादों से जनता को लुभाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन सवाल वही है: चुनाव आते ही विकास, बेरोजगारी, शराबबंदी के काले अध्याय और राजनीतिक अवसरवादिता जैसे असली मुद्दे क्यों गुम हो जाते हैं? पिछले 20 वर्षों से नितीश कुमार मुख्यमंत्री हैं, फिर भी बिहार का परिदृश्य क्यों नहीं बदला? यह चुनाव न केवल सत्ता की लड़ाई है, बल्कि बिहारियों के भविष्य का फैसला भी। आइए, तथ्यों और आंकड़ों के आईने में झांकें।
जंगलराज का भूत: पुरानी किताब से नई राजनीति
NDA का मुख्य प्रचार—'जंगलराज' का डर—राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के 1990-2005 के शासन को निशाना बनाता है। अपराध, अपहरण और भ्रष्टाचार की यादें ताजा करना आसान है, लेकिन यह रणनीति अब थकावट भरी लगती है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हाल ही में कहा, "यह चुनाव RJD के अंधेरे जंगलराज और NDA के विकास की रोशनी के बीच की लड़ाई है।" लेकिन आंकड़े कुछ और कहते हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के अनुसार, 2025 के पहले चरण में 1,303 उम्मीदवारों में से 423 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें 354 पर हत्या, बलात्कार जैसे गंभीर आरोप हैं। यह NDA और महागठबंधन दोनों पर सवाल उठाता है।
नितीश कुमार के नेतृत्व में कानून-व्यवस्था में सुधार हुआ, लेकिन अपराध दर में वृद्धि जारी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 में बिहार में हत्या के मामले 2014 की तुलना में 20% बढ़े। विपक्ष का आरोप है कि 'जंगलराज' अब NDA के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। फिर भी, NDA का यह जुमला वोटरों को बांटने का हथियार बना हुआ है, जबकि असली मुद्दे—रोजगार और विकास—पीछे छूट जाते हैं।
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शराबबंदी: नैतिकता का जुमला या सामाजिक अभिशाप?
2016 में लागू शराबबंदी को नितीश कुमार की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया जाता है, लेकिन हकीकत कड़वी है। राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 2016 से अब तक 190 से अधिक मौतें नकली शराब से हो चुकी हैं, जिसमें सारण, सिवान, गया और भोजपुर जैसे जिले सबसे प्रभावित हैं। 2022 के सारण कांड में ही 70 से ज्यादा लोग मारे गए। हाल ही में, अक्टूबर 2025 में सारण में 25 मौतें हुईं, जब 250 छापों में 1,650 लीटर नकली शराब जब्त की गई।
यह नीति गरीब वर्ग को सबसे ज्यादा सताती है। जेलों में 1.43 लाख गिरफ्तारियां हुईं, ज्यादातर मजदूर और छोटे व्यापारी। राजस्व का नुकसान? 2015-16 में 3,142 करोड़ का एक्साइज कलेक्शन, अब महज 30 करोड़। अनुमान है कि सालाना 20,000 करोड़ का घाटा हो रहा है, जो विकास परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल हो सकता था। महिलाओं पर घरेलू हिंसा में कमी आई (40% से घटकर 25%), लेकिन नकली शराब की व्यापार ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। जन सुराज के प्रशांत किशोर ने वादा किया है कि सत्ता में आने पर बंदी हटाएंगे और शिक्षा पर खर्च करेंगे। क्या यह चुनाव में बड़ा मुद्दा बनेगा? ग्रामीण वोटरों में असंतोष साफ दिख रहा है।
विकास का दावा vs हकीकत: उद्योग और रोजगार का सूना चालान
नितीश कुमार के 20 सालों में बिहार की GSDP 11.42% की दर से बढ़ी, 2025-26 में 10.97 लाख करोड़ (130 बिलियन डॉलर) पहुंचने का अनुमान है। सड़कें, बिजली और इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार हुआ—100% विद्युतीकरण, 57 रेल परियोजनाएं (86,458 करोड़ की)। लेकिन उद्योग? 2019-20 में बिहार के कारखाने भारत के महज 1.32% हैं, और वैल्यू एडेड 0.5%। कोई बड़ा उद्योग नहीं लगा, जिससे बेरोजगारी बनी हुई है।
युवाओं का पलायन बिहार का सबसे बड़ा अभिशाप है। ILO की 2024 रिपोर्ट के अनुसार, 39% प्रवासी रोजगार के लिए जाते हैं। 2025 तक 3 करोड़ बिहारी दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं—एक चौथाई वयस्क आबादी। बेरोजगारी दर 3.4%, लेकिन युवाओं में 10.8%। प्रति व्यक्ति आय 32,174 रुपये—राष्ट्रीय औसत का एक-तिहाई। NDA का वादा: 1 करोड़ नौकरियां, स्किल सेंसस। महागठबंधन: हर परिवार को एक सरकारी नौकरी। लेकिन पिछले वादे कहां हैं? पलायन रुका नहीं, बिहारियों का सम्मान दूसरे राज्यों में घटा।
राजनीतिक अवसरवादिता: गठबंधनों का बाजार
नितीश कुमार का इतिहास ही अवसरवाद का आईना है। 2013 में BJP से अलगाव, 2015 में RJD से गठबंधन, 2017 में वापसी। 2022 में NDA छोड़कर महागठबंधन, फिर जनवरी 2024 में BJP के साथ। अमित शाह ने मंच से नितीश को 'पलटू राम' कहा, नितीश ने जवाब दिया 'मर जाएंगे लेकिन BJP से नहीं मिलेंगे'। नतीजा? फिर गठबंधन। RJD भी कम नहीं—परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोप। जनता को धोखा देने वाली यह राजनीति सत्ता के लिए कुछ भी कर लेती है।
चुनाव 2025: परिणाम क्या बताएंगे?
6 और 11 नवंबर को वोटिंग, 14 को रिजल्ट। NDA का संकल्प पत्र: 1 करोड़ नौकरियां, लाखपति दीदी। महागठबंधन का 'तेजस्वी प्रतिज्ञा प्रण': परिवार प्रति एक नौकरी, महिलाओं को 2,500 रुपये। जन सुराज का उभरता विकल्प: शराबबंदी हटाना, शिक्षा पर फोकस। लेकिन वोटर सतर्क हैं। बिहार का भविष्य दांव पर है—क्या यह जुमलों से ऊपर उठेगा
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